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कविता : राम नवमी की महिमा अद्भुत

कविता : राम नवमी की महिमा अद्भुत - Poem on ram navami
मानव-वानर गले मिले हैं, बजा दिया है जग में डंका,
धर्म धरा पर फिर से उतरा, नष्ट किए दुष्टों की लंका।
 
धर्म सत्य पर आधारित हों, ज्ञान हो निर्मल गंगा जैसा,
भूख प्यास की पीड़ा न हो, हर मानव हो मानव जैसा।
 
नवराते में शक्ति पूजें, हर तन बने बज्र के जैसा,
राज करे चाहे कोई भी, राजा हो श्रीराम के जैसा।
 
हर शबरी के द्वार चलें हम, जहां अहिल्या दीप जलाएं,
राम तत्व है सबके अंदर, आओ फिर से उसे जगाएं।
 
शुभ-अवसर है राम-जन्म का, आओ सब मिल शीश झुकाएं,
अंदर बैठे तम को मारें, आओ मिलजुल खुशी मनाएं।
 
होने को बहुतेरी नवमी, इस नवमी की छटा निराली,
नवराते जग शक्ति पूजे, शीतल, ज्वाला, गौरी, काली।
 
राम जन्म जिस नवमी होता, उस नवमी की महिमा अद्भुत,
सृष्टि भी होती मतवाली, दिन में होली रात दिवाली।
 
राम नवमी पर भगवान श्री राम को समर्पित...।

- कैलाश यादव ‘सनातन’
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