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नई कविता - तारीख

नई कविता - तारीख - Hindi Poem Tareekh
तारीखें, आती हैं-जाती हैं 
फिर-फिर आती हैं 
पर समाया रहता है इनमें
सृष्टि का, हम सबका
कहा / अनकहा 
वह हिसाब, जो 
चलता है जन्म-जन्मांतर तक।
 
बच नहीं सकता 
इन तारीखों से कोई ।
 
इसलिए जरूरी है -
रखें यह ध्यान 
हर तारीख में हो वही दर्ज
जिससे जब भी मिले 
प्रतिफल हमको, हो वह सुखद
और पछतावे से रहित।
 
दें जो वह सुखानुभूति 
जिसमें समाहित हो 
इंसानियत का हर रंग।
 
बनाएंगे न अब से हम 
हर तारीख को ऐसी ही तारीख।