मैं तुम्हें पुकारता हूँ
प्रेम कविता
मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में पागलों की तरह भटकती रहती हैमैं तुम्हें पुकारता हूँ औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुईएक नदी में डूब जाती है मैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकरएक गहरी खाई में खो जाती हैमैं तुम्हे पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ मैं तुम्हें पुकारता हूँ पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही होमैं तुम्हें पुकारता हूँ और मेरा गला रूंधा हुआ हैतुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन मेरे आवाज रुक जाएगीऔर मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगातुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगीमेरे मौन में खिला हुआ एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।