शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. पुस्तक-समीक्षा
  4. Book Review/ Marudhara su nipajya geet
Written By

पुस्तक समीक्षा : मरुधरा सूं निपज्या गीत

पुस्तक समीक्षा : मरुधरा सूं निपज्या गीत - Book  Review/ Marudhara su nipajya geet
‘मरुधरा सूं निपज्या गीत’ विख्यात गीतकार इकराम राजस्थानी के रसीले राजस्थानी गीतों का नजराना है। राजस्थानी मिट्टी और संस्कृति से आत्मीय लगाव के चलते इन्होंने अपना उपनाम ही ‘राजस्थानी’ रख लिया है। इन्होंने स्वीकार भी किया है - 
 
‘राजस्थानी’ हो गयो, अब म्हारो उपनाम।
मैं मायड़ रो लाडलो, जग जोणे ‘इकराम’।।
 
‘मरुधरा सूं निपज्या गीत’ में संकलित गीत राजस्थानी भाषा की मिठास के साथ-साथ राजस्थान की मिट्टी-पानी-हवा की सोंधी गंध से भी सुवासित हैं। इन गीतों में राजस्थान की क्षेत्रीय विशेषताओं का आत्मीय चित्रण किया गया है और वैयक्तिक शैली में वहां की प्राकृतिक-भौतिक संपदा के बारे में लिखा गया है। जैसे एक गीत में राजस्थान की धरती को संबोधित करते हुए कहा गया है - 
 
थारी भूरी भूरी रेत,
थारे कण कण मांही हेत,
म्हारे काकना की लागे तू तो कोर माटी
म्हारे हिवड़ा मांही नाचे, मीठा मोर माटी।
 
‘मरुधरा सूं निपज्या गीत’ में कुछ ऐसे गीत भी हैं जो पुरुष और स्त्री के संवादों के रूप में रचे गए हैं। इनमें लोकगीत की जानी-पहचानी शैली का आभास मिलता है। गीत संग्रह में ‘गाथा पन्ना धाय री’ जैसे लंबे गीत भी हैं जो गायन के साथ-साथ मंचन की खूबियों से युक्त हैं। कुल मिलाकर इन रचनाओं में लक्षित की जाने वाली अन्यतम विशेषता है जातीयता का उभार और लोकगीत की प्रचलित शैली का पुनराविष्कार।
 
 
पुस्तक : मरुधरा सूं निपज्या गीत
लेखक : इकराम राजस्थानी  
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 
पृष्ठ संख्या : 142