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लेसिक लेजर : इस तकनीक से हटेगा आंखों का चश्मा

लेसिक लेजर
डॉ. संजय गोकुलदास
आंखों की समस्याओं के लिए लेसिक लेजर एक उच्चतम और सफल तकनीक है। इसका पूरा नाम लेजर असिस्टेड इनसीटू केरेटोमिलीएसिस है, जो मायोपिया के इलाज की सबसे बेहतरीन एवं यू.एस.एफ.डी.ऐ. ये मान्यता प्राप्त तकनीक है। खास तौर से इस तकनीक का प्रयोग दृष्ट‍ि दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है, और इसका प्रयोग उन लोगों के लिए भी बेहद प्रभावी है जो चश्मा कॉन्टेक्ट लेंस लगाते हैं। 
कैसे काम करती है लेसिक लेजर तकनीक - इस तकनीक का प्रयोग दोनों प्रकार के दृष्ट‍ि दोषों के लिए होता है, जिसमें दूर दृष्ट‍िदोष, पास का दृष्ट‍ि दोष शामिल एवं ऐस्टि‍गमेटिज्म शामिल है। आंखों की इन समस्याओं में हमारे द्वारा देखी जाने वाली प्रकाश की किरणें आंखों के रेटिना पर फोकस होने के बजाए, रेटिना के आगे या पीछे फोकस होती हैं, जिसके कारण पास एवं दूर के दृष्ट‍ि दोष पैदा होते हैं। लेसिक लेजर प्रक्रिया के बाद प्रकाश का फोकस रेटिना पर होने लगता है और हम दृश्यों को बिना चश्में के भी साफ तौर पर देख सकते हैं। 
किसे करवाना चाहिए लेसिक लेजर - सामान्यत: लेसिक लेजर की सलाह उन लोगों को दी जाती है, जिन्हें सामान्य दृष्ट‍िदोष होता है। जैसे 40 से 45 वर्ष की आयु में आंखों की फोकस क्षमता कम हो जाती है और पास की चीजें देखने में परेशानी होती है। इस स्थ‍िति में मरीजों में केवल दूर का नंबर निकाला जा सकता है एवं पास के लिए चश्मा लगाना पड़ता है।
 
इसके अलावा वे लोग जिन्हें चश्मा पहनने और कॉन्टेक्ट लेंस के रखरखाव में परेशानी हो, खेल प्रतियोगिता या मार्केटिंग के क्षेत्र में काम करने वाले लोग, जो सरकारी नौकरी हेतु प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हों इन परीक्षाओं में नजर 6/6 होना अनिवार्य है), या फिर जिन लोगों को गाड़ी चलाते समय या अन्य कामों में चश्में व लेंस से परेशानी हो, इस तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं। यह तकनीक उच्चतम कार्यप्रणाली पर आधारित है ओर इसके परिणाम बेहतरीन हैं।  इसेक बाद आप बिना चश्मे या लेंस के, सामान्य दृष्टि पा सकते हैं।  
लेसिक लेजर विशेषताएेंजानें अगले पेज पर... 




कब करवाएं लेसिक लेजर - लेसिक लेजर करवाने से संबंधित कुछ नियम हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है। इस ऑपरेशन के लिए नियम यह है कि - 
 
1 इसे करवाने से पहले मरीज की आयु 18 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
2  मरीज का चश्मे का नंबर कम से कम 6 माह तक स्थाई होनाप चाहिए।
3 आप इसे तभी करवा सकते हैं, जब आपकी आंखों में कोई अन्य समस्या जैसे - मोतियाबिंद, कांचबिंद, सूखापन, केरेटोकोनस न हो। 
 
विशेषता : 
1 लेसिक लेजर तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसे करवाने में आपको कम से कम 15 मिनट और अधिक से अधिक मात्र आधे घंटे तक का समय लगता है। 
2  इस इलाज के दौरान मरीज को किसी भी प्रकार का दर्द महसूस नहीं होता। 
3 इसे करवाने के बाद कुछ असुविधा, दर्द या पानी आने की संभावना को दवाईयों के द्वारा समाप्त कर दिया जाता है। 
4 इसके बाद ज्यादातर मरीजों का आंखों का नंबर शून्य के स्तर पर या उसके आसपास आ जाता है और चश्मे व लेंस से निर्भरता पूरी तरह समाप्त हो जाती है। 
5  लेसिक लेसर द्वारा -1 से -14 और +1 से +4 तक दूरदृष्ट‍ि दोष को दूर किया जा सकता है।
6 इसका प्रभाव 24 घंटों में ही नजर आ जाता है और पुतली की सतह ठीक हो जाती है। इसेक बाद दृष्ट‍ि ठीक होने पर उसमें 3 महीने में स्थिरता आ जाती है।
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