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Written By WD

क्या मोदी विरोधी प्रचार में कोई दम है?

क्या मोदी विरोधी प्रचार में कोई दम है? -
क्या यह कहना भी उचित होगा कि मोदी का चुनावी भाग्य पूरी तरह से सुस्पष्ट है? हालांकि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी आम आदमी के लिए उम्मीदें लेकर आए हैं, लेकिन उनके काम करने की शैली से लोगों में चिंता होना स्वाभाविक है। हालांकि बहुत अधिक आत्मविश्वास से भरे दिल्ली के भाजपा प्रमुख हर्षवर्द्धन कहते हैं कि अब तो देवता भी मोदी को प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकते हैं।

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डेलीमेल ऑन लाइन में प्रसिद्ध पत्रकार विनोद मेहता का कहना है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोई ईश्वरीय ताकत ही रोक सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञ, चुनाव विशेषज्ञ और मीडिया से जुड़े लोग मानते हैं कि मोदी का प्रधान मंत्री बनना लगभग तय है।

इनमें से बहुत से लोग ऐसे भी हैं जोकि मोदी के आलोचकों के तौर पर जाने जाते हैं। लेकिन अगर एक बार हम यह मान लें कि मोदी अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं तब क्या हमें कोई चिंता करने की जरूरत है। कोई भी नीर-क्ष‍ीर विवेक रखने वाला व्यक्ति जानता होगा कि मोदी को लेकर जो अच्छी और बुरी बातें कही जा रही हैं उनमें कहीं ना कहीं थोड़ी सच्चाई भी है।

पिछले कुछेक वर्षों के दौरान मोदी ने बड़ी सावधानी से अपनी छवि एक प्रगतिशील, विकासोन्मुखी नेता के तौर पर विकसित की है। इसका बहुत अधिक श्रेय उनकी पीआर मशीनरी को जाता है, लेकिन इन सारी बातों के अलावा मोदी की छवि एक धर्म‍निरपेक्ष और समावेशी नेता की नहीं बन सकी है। भाजपा में बहुत से लोग ऐसे हैं जोकि उनकी तानाशाहीपूर्ण कार्यशैली का शिकार हुए हैं। फिलहाल याद करें कि वाजपेयी युग के महत्वपूर्ण नेताओं, जैसे यशवंत सिन्हा, जसवंतसिंह और मुरली मनोहर जोशी को हाशिए पर पहुंचा दिया गया है।

अब तो स्थिति यहां तक हो गई है कि शुरुआत में सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री पद के लायक लोगों में गिना जाता था, लेकिन अब स्थिति यह है कि पार्टी फोरम पर ही सुषमा की आवाज को दबाया जा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री के बारे में एक गोपनीय अमेरिकी संदेश में कहा गया था, 'वह भय और धमकी के सहारे काम करते हैं और उनके फैसलों में सामंजस्य और सर्वसमावेश का अभाव रहता है।' यह संदेश 2006 में भेजा गया था, लेकिन नहीं लगता है कि अब भी स्थिति बहुत बदली है।

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में करीब दो हजार मुस्लिम मारे गए थे, लेकिन मोदी ने इसके लिए एक बार भी पछतावा जाहिर नहीं किया।

वे हिंसक घटनाओं से जुड़े थे या नहीं, यह एक कानूनी मुद्दा हो सकता है लेकिन कांग्रेस को 1984 के दंगों की याद दिलाकर वे अपनी नैतिक और आचार संबंधी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने के बाद मोदी में सकारात्मक परिवर्तन दिखे लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो देश के लोगों को इस बारे में चिंता करनी चाहिए।