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Last Updated : सोमवार, 12 अगस्त 2024 (13:01 IST)

खतरे में है हिन्दू धर्म का अस्तित्व? भाग-1

Hindu religion | खतरे में है हिन्दू धर्म का अस्तित्व? भाग-1
कोई धर्म या समुदाय सुरक्षित कब माना जाता है? इस सवाल का उत्तर सभी जानते हैं लेकिन वे अपने-अपने तरीके से देना चाहेंगे। इसका एक जवाब यह हो सकता है कि यदि आपके धर्म का कोई राष्ट्र नहीं है तो आप इंतजार कीजिए अपने अस्तित्व को खोने का। दूसरा जवाब यह हो सकता है कि यदि आपके धर्म के लोगों की जन्मदर कम होती जा रही है तो निश्चित ही आपके पास लड़ने के लिए सैनिक नहीं होंगे। तीसरा जवाब यह है कि यदि आपका धर्म आपको अहिंसा और सहिष्णुता सिखा रहा है तो निश्‍चित ही आप एक दिन खुद को घिरा हुआ पाएंगे। इसका चौथा जवाब यह हो सकता है कि धर्म से बढ़कर है इंसानियत। खून-खराबे से कभी किसी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। इसका पांचवां जवाब यह हो सकता है कि जनसंख्या या राष्‍ट्र के होने से बढ़कर जरूरी है विकास और तकनीक में उक्त समुदाय का आगे होना। इसका छठा जवाब आपके पास है। आप किसी भी जवाब को अपना जवाब बना सकते हैं। वामपंथियों के पास सभवत: और भी अद्भुत जवाब हो। खैर...
दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसमें से 2.2 अरब ईसाई और सवा अरब मुसलमान हैं और लगभग इतने ही बौद्ध। पूरी दुनिया में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्तित्व में हैं। हालांकि प्रथम 2 ही धर्म की नीतियों के कारण उनका कई राष्ट्रों और क्षेत्रों पर दबदबा कायम है। उक्त धर्मों की छत्रछाया में कई जगहों पर अल्पसंख्‍यक अपना अस्तित्व खो चुके हैं या खो रहे हैं तो कुछ जगहों पर उनके अस्तित्व को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा भी ऐसे कई मामले हैं जिसमें उक्त धर्मों के दखल न देने के बावजूद वे धर्म अपना अस्तित्व खो रहे हैं। हालांकि एक अनप्रैक्टिकल लेकिन कथित रूप से समझदार जवाब यह भी हो सकता है कि इसमें धर्मों का कोई रोल नहीं है और ये स्थानीय और आर्थिक समस्या से जुड़े मामले हैं।
 
एक जानकारी के मुताबिक पूरी दुनिया में अब मात्र 13.95 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। नेपाल कभी एक हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था लेकिन वामपंथ के वर्चस्व के बाद अब वह भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कभी दुनिया के आधे हिस्से पर हिन्दुओं का शासन हुआ करता था, लेकिन आज कहीं भी उनका शासन नहीं है। अब वे एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां के कई हिस्सों से ही उन्हें बेदखल किए जाने का क्रम जारी है, साथ ही उन्हीं के उप संप्रदायों को गैरहिन्दू घोषित कर उन्हें आपस में बांटे जाने की साजिश भी जारी है। अब भारत में भी हिन्दू जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है। इसके कई कारण हैं क्योंकि जरूरी नहीं है कि यह एक धार्मिक समस्या ही हो, लेकिन इससे इककार भी नहीं किया जा सकता। आप तर्क द्वारा इसे धार्मिक समस्या से अलग कर सकते हैं।
 
ऐसे समय में जबकि एक ओर चर्च ने विश्व में ईसाईकरण का बिगुल बजा रखा है तो दूसरी ओर सुन्नी इस्लाम ने आतंक और कट्टरपंथ के जरिए अपने वर्चस्व और कब्जे वाले क्षेत्र से दूसरे धर्मों और समाज के लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया है। ऐसे में भारत में हिन्दू खुद को असुरक्षित महसूस न करने लगे तो क्या करें? यह बात संभवत: ऐसे हिन्दू भी स्वीकार नहीं करेंगे जिनका झुकाव वामपंथ और कथित रूप से कही जाने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की ओर ज्यादा है। लेकिन इस सच से हिन्दू सदियों से ही मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने को भी मिलते रहे हैं। इस समस्या के प्रति शुतुर्गमुर्ग बनी भारत की राजनीति निश्‍चित ही हिन्दुओं के लिए पिछले 100 साल में घातक सिद्ध हुई है और अब भी यह घातक ही सिद्ध हो रही है। आओ जानते हैं कि भारत और विश्व में हिन्दुओं की क्या स्थिति है।
 
पाकिस्तान में हिन्दू : 
19वीं सदी के प्रारंभ से 1948 तक भारत का विभाजन चलता रहा। पूर्व के विभाजन न भी मानें तो 1947 के विभाजन ने उस काल की 30 करोड़ आबादी वाले भारत में 1.50 करोड़ हिन्दुओं को दर-ब-दर कर दिया। 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ। हजारों बच्चों को कत्ल कर दिया गया।
विभाजन की सबसे ज्यादा त्रासदी सिन्धी, पंजाबी और बंगालियों ने झेली। 1947 में अंग्रेजी शासन से आजाद होने के बाद करीब 1.50 करोड़ लोग अपनी जड़ों से उखड़ गए। महीनों तक चले दंगों में कम से कम 10 लाख लोगों की मौत हुई। हिंसा, भारी उपद्रव और अव्यवस्था के बीच पाकिस्तान से सिख और हिन्दू भारत की ओर भागे।
वर्तमान में धर्म के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान की 20 करोड़ की आबादी में अब मात्र 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे हैं जबकि आजादी के समय कभी 22 प्रतिशत होते थे। 1941 की जनगणना के मुताबिक भारत में तब हिन्दुओं की संख्या 29.4 करोड़, मुस्लिम 4.3 करोड़ और बाकी लोग दूसरे धर्मों के थे। पाकिस्तान की जनगणना (1951) के मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी में 22 फीसदी हिन्दू थे, जो 1998 की जनगणना में घटकर 1.6 फीसदी रह गए हैं। 1965 से अब तक लाखों पाकिस्तानी हिन्दुओं ने भारत की तरफ पलायन किया है। देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं का प्रतिशत 29.63 से घटकर 28.44 रह गया है।
 
सिन्धी और पंजाबी हिन्दुओं ने तो अपना प्रांत ही खो दिया। क्या इस पर कभी किसी ने सोचा? सिन्धी भाषा और संस्कृति लुप्त हो रही है और जो सिन्धी मुसलमान है अब वे ऊर्दू बोलते हैं, जो उनकी मात्र भाषा नहीं है। देश की आजादी के 70 साल बाद भी सिन्धी हिन्दू समाज विस्थापितों की तरह जीवन यापन कर रहा है।
 
अफगानिस्तान में हिन्दू :
अफगानिस्तान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में बौद्ध वर्चस्व वाला राष्ट्र बना और इसके बाद खलिफाओं के नेतृत्व में इसका इस्लामिकरण हुआ। पठान पख्तून होते हैं। पठान को पहले पक्ता कहा जाता था। ऋग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन 'पक्त्याकय' नाम से मिलता है। इसी तरह तीसरे खंड का 91वें श्लोक आफरीदी कबीले का जिक्र 'आपर्यतय' के नाम से करता है। दरअसल, अंग्रेजी शासन में पिंडारियों के रूप में जो अंग्रेजों से लड़े, वे विशेषकर पठान और जाट ही थे। पठान जाट समुदाय का ही एक वर्ग है।
 
कभी हिंदू और सिख अफगान समाज का समृद्ध तबका हुआ करता था और देश में उनकी आबादी लगभग 25 प्रतिशत से ज्यादा हुआ करती थी। अब मुट्ठीभर ही बचे हैं। 1992 में काबुल में तख्तापलट के वक्त तक काबुल में कभी 2 लाख 20 हजार हिंदू और सिख परिवार थे। अब 220 रह गए हैं। पूरे अफगानिस्तान में अब लगभग 1350 हिन्दू परिवार रही बचे हैं। कभी ये पूरे अफगानिस्तान में फैले हुए थे लेकिन अब बस नांगरहार, गजनी और काबुल के आसपास ही बचे हैं और वहां से सुरक्षित जगह निकलने का प्रयास कर रहे हैं। अफगान सरकार, यूएनओ और अंतरराष्ट्रीय वर्ग ने कभी इन्हें बचाने या इन अफगानी हिन्दू औ सिखों के अधिकार की बात कभी नहीं की जिसके चलते इनका अस्तित्व लगभग खत्म होने की कगार पर ही है। हालांकि आज जो अफगानी मुस्लिम हैं वे कभी हिन्दू, सिख या बौद्ध ही हुआ करते थे।

(इनपुट एजेंसियां)
 
जारी...