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धनुषकोटि : वाल्मीकि रामायण अनुसार जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया।
डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।
भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।
शास्त्रों अनुसार रामसेतु को धनुष के आकार का बनाया गया था। कहते हैं कि राम के प्रति श्रद्धा के कारण वानर सेना ने उनके धनुष 'सारंग' को अमर करने के लिए ही उसकी प्रतिकृति के रूप में पुल का निर्माण किया था। हालांकि नल और नील ने उसे समुद्री लहरों से बचाने के लिए ही यह आकार दिया था।
लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि भारतीय प्रायद्वीप से श्रीलंका के अलग होने के बाद दोनों ही ओर से एक दूसरे से पूरक 90 किलोमीटर की दूरी पर एक पतली सी रेखा छूट सी गई थी। इसी पूराने प्राकृतिक पुल को आधार बनाकर नए पुल का निर्माण किया गया।
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नल सेतु : वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण-6/22/76)।
वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए ते। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)
वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया था।
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।
अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1- 114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।
सेतु के होने के अन्य साक्ष्य अगले पन्ने पर..
विवाद के दौरान श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थानम् वाराणसी के अध्यक्ष परमहंस परिव्रजकाचार्य स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, रामकेर्ति (सर्ग 7), रामकियेन (अ.26) जैसे अनेक प्राचीन भारतीय ग्रंथों का तीन महीने तक गहराई से अध्ययन और अनुसंधान करने के बाद प्रयाग में अपना शोध पत्र जारी किया था। इसमें रामसेतु को लेकर वैदिक ग्रंथों में दी गई गणनाओं के अनुसार सही तथ्य और प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं।
रामसेतु की लंबाई-चौड़ाई को लेकर भारतीय धर्मशास्त्रों में दिए गए तथ्य इस प्रकार हैं-
दस योजनम विस्तीर्णम् शतयोजनमायतम् (वा.रा. 22/76) अर्थात श्रीराम सेतु 100 योजन (1200 किलोमीटर) लंबा और 10 योजन (120 किलोमीटर) चौड़ा था।
अन्य साक्ष्य
* शास्त्रीय साक्ष्यों के अनुसार इस विस्तृत सेतु का निर्माण शिल्प कला विशेषज्ञ विश्वकर्मा के पुत्र नल ने पौष कृष्ण दशमी से चतुर्दशी तिथि तक मात्र पांच दिन में किया था।
* सेतु समुद्र का भौगोलिक विस्तार भारत स्थित धनुष कोटि से लंका स्थित सुवेल पर्वत तक है।
* महाबलशाली सेतु निर्माताओं द्वारा विशाल शिलाओं और पर्वतों को उखाड़कर यांत्रिक वाहनों द्वारा समुद्र तट तक जाने का शास्त्रीण प्रमाण उपलब्ध है।
* भगवान श्रीराम ने प्रवर्षण गिरि (किष्किन्धा) से मार्गशीर्ष अष्टमी तिथि को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त में लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था।
अगले पन्ने पर क्या है सेतु समुद्रम परियोजना, जानिए...
क्या है सेतु समुद्रम परियोजना: 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया गया। भारत सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। इससे व्यापारिक फायदा उठाने की बात कही जा रही है।
इसके तहत रामसेतु के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के लायक बनाया जाएगा। सरकार अनुसार इसके लिए सेतु की चट्टानों को तोड़ना जरूरी है। इस परियोजना से रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा। तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के कोस्टल इलाकों में कम से कम 13 छोटे एयरपोर्ट बन जाएंगे।
माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे।
मार्ग छोटा होने से सफर का समय और लंबाई तो छोटी होगी ही, संभावना है कि जलपोतों का 22 हजार करोड़ का तेल बचेगा। 19वें वर्ष तक परियोजना 5000 करोड़ से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी जबकि इसके निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है।
परियोजना से नुकसान : रामसेतु को तोड़े जाने से ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगली सुनामी से केरल में तबाही का जो मंजर होगा उससे बचाना मुश्किल हो जाएगा। हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे।
इस क्षेत्र में मिलने वाले दुर्लभ शंख व शिप जिनसे 150 करोड़ रुपए की वार्षिक आय होती है, से लोगों को वंचित होना पड़ेगा। जल जीवों की कई दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी। भारत के पास यूरेनियम के सर्वश्रेष्ठ विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार है। यदि रामसेतु को तोड़ दिया जाता है तो भारत को थोरियम के इस अमूल्य भंडार से हाथ धोना पड़ेगा।
अगले पन्ने पर रामसेतु पर विवाद के कुतर्क..
सेतु समुद्रम पर विवाद : भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।
केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए गए एक हलफनामें कहा था कि रामसेतु को खुद भगवान राम ने अपने एक जादुई बाण से तोड़ दिया था, इसके सुबूत के तौर पर सरकार ने 'कंबन रामायण' और 'पद्मपुराण' को पेश किया। सरकार ने रामसेतु के वर्तमान हिस्से के बारे में कहा कि यह हिस्सा मानव निर्मित न होकर भौगोलिक रूप से प्रकृति द्वारा निर्मित है। इसमें रामसेतु नाम की कोई चीज नहीं है।
विवाद का कारण : इससे पूर्व सरकार के इशारे पर जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सितंबर 2007 में उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामें में रामायण में उल्लेखित पौराणिक चरित्रों के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे, जिसे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाना माना गया।
एएसआई के हलफनामें में उसके निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी ने कहा था कि राहत की मांग कर रहे याचिकाकर्ता मूल रूप से वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की रचित राम चरित्र मानस और पौराणिक ग्रंथों पर विश्वास कर रहे हैं, जो प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता और उनमें वर्णित चरित्रों तथा घटनाओं को भी प्रामाणिक सिद्ध नहीं किया जा सकता।
इससे पूर्व अहमदाबाद के मैरीन ऐंड वाटर रिसोर्सेज ग्रुप स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने कहा कि माना जाता है कि एडम्स ब्रिज या रामसेतु भगवान राम ने समुद्र पारकर श्रीलंका जाने के लिए बनाया था, जो मानव निर्मित नहीं है। सरकार और एएसआई ने भी इस मामले में इसी अध्ययन से मिलते जुलते विचार प्रकट किए हैं।
गौरतलब है कि रामसेतु की रक्षार्थ याचिकाकर्ता ने अदालत से रामसेतु को संरक्षित एवं प्राचीन स्मारक घोषित करने का अनुरोध किया था। यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि रामेश्वरम को श्रीलंका से जोड़ने वाले सेतु समुद्रम के निर्माण के समय रामसेतु को नष्ट न किया जाए। इस याचिका पर 14 सितम्बर 20007 को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई।
नया हलफनाम : विवाद के चलते भारत सरकार ने हलमनामें को वापस लेते हुए 29 फरवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में नया हलफनामा पेश कर कहा कि रामसेतु के मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक बनावट सुनिश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक विधि मौजूद नहीं है।
इस विवाद के चलते उधर तमिलनाडु की हिन्दू विरोधी करुणानिधि सरकार ने रामसेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कमर कस ली थी। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि खनन गतिविधियों के दौरान रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो, लेकिन इस आदेश का पालन किस हद तक किया जा रहा है यह राज्य सरकार ही बता सकती है।
अगले पन्ने पर सरकारी दावें का झूठ किसने किया उजागर...
सरकारी दावे का खंडन : रामकथा के लेखक नरेंद्र कोहली के अनुसार, सरकार यह झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था। जबकि रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, तो सोचे वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे। रामायण में सेतु निर्माण का जितना जीवंत और विस्तृत वर्णन मिलता है, वह कल्पना नहीं हो सकता। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया, मगर इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।
लालबहादुर शास्त्री विद्यापीठ के लेक्चरर डॉ. राम सलाई द्विवेदी का कहना है कि वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। इसलिए यह कहना गलत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था।
भारतीय नौ सेना की चिंता : सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर चल रही राजनीति के बीच कोस्ट गार्ड के डायरेक्टर जनरल आर.एफ. कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि यह परियोजना देश की सुरक्षा के लिए एक खतरा साबित हो सकती है।
वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि इसकी पूरी संभावना है कि इस चैनल का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं। वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर का इशारा श्रीलांकाई तमिल उग्रवादियों तथा अन्य आतंकवादियों की ओर है, जो इसका इस्तेमाल भारत में घुसने के लिए कर सकते हैं।
अगले पन्ने पर शंकराचार्य का मत...
विवाद के दौरान श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थानम् वाराणसी के अध्यक्ष परमहंस परिव्रजकाचार्य स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, रामकेर्ति (सर्ग 7), रामकियेन (अ.26) जैसे अनेक प्राचीन भारतीय ग्रंथों का तीन महीने तक गहराई से अध्ययन और अनुसंधान करने के बाद प्रयाग में अपना शोध पत्र जारी किया था। इसमें रामसेतु को लेकर वैदिक ग्रंथों में दी गई गणनाओं के अनुसार सही तथ्य और प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं।
रामसेतु की लंबाई-चौड़ाई को लेकर भारतीय धर्मशास्त्रों में दिए गए तथ्य इस प्रकार हैं-
दस योजनम विस्तीर्णम् शतयोजनमायतम् (वा.रा. 22/76) अर्थात श्रीराम सेतु 100 योजन (1200 किलोमीटर) लंबा और 10 योजन (120 किलोमीटर) चौड़ा था।
इस शोध पत्र को स्वामी ज्ञानानंद सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु की सत्यता के पुख्ता प्रमाण के रूप में पेश करेंगे। शोध पत्र में स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने बताया है कि भगवान श्रीराम ने 41 वर्ष की आयु में 1 करोड़ 81 लाख 58 हजार 117 विक्रम संवत पूर्व (18158060 ईसा पूर्व) पौष कृष्ण दशमी तिथि को सेतु का निर्माण शुरू किया था। इस संबंध में अग्निवेश रामायण में कहा गया है 'सेतोर्दशम्यामारम्भः'।
इसका दूसरा प्रमाण मिलता है जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा ढाई हजार साल पहले रचित द्वादश ज्योतिर्लिंगम् स्तोत्र में। इसमें कहे गए 'सुताम्रपर्णी जलराशियोगे निबध्यसेतुत' से श्रीराम द्वारा सेतु बनाने के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग साक्षात प्रमाण : शोध में कहा गया है कि श्रीराम सेतु भगवान श्रीराम द्वारा ही निर्मित होने का ज्वलंत और साक्षात प्रमाण स्वयं रामेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यही कारण है कि यह ज्योतिर्लिंग सेतुबंध रामेश्वरम कहा जाता है। इस शास्त्रीय मीमांसा के अनुसार श्री रामसेतु निर्विवाद सत्य है और साथ ही हिन्दू आस्था का केंद्र है। स्वामी ज्ञानानंद ने लिखा है कि धर्मग्रंथों में वर्णित पुरातात्विक प्रमाणों को दरकिनार कर विवाद सुलझाने का प्रयास मिथ्याभिमान पूर्ण प्रयास है।
काल गणना के अनुसार : भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार ब्रह्म संवत सबसे प्राचीन काल गणना है, जो ब्रह्मा की उत्पत्ति अर्थात सृष्टि के आरंभ से ब्रह्मा की समाप्ति अर्थात सृष्टि प्रलय तक होती है। यह 1 करोड़ 24 लाख मानव वर्ष यानी ब्रह्मा का एक पल होता है। इसी तरह घटी, दिन, रात्रि, पक्ष, मास तथा वर्ष के अनुसार ब्रह्मा की द्विपरार्ध आयु होती है।
एक, दश, शत, सहस्र, अयुत लक्ष्य, प्रयुत, कोटि, अर्वुद, अब्ज, खर्व, निखर्व, महापदम, शंकु, समुद्र अल्पपरार्ध, द्विपरार्ध संख्या होती है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। ब्रह्मा का एक दिन 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्षों के बराबर होता है। उसमें संधि सहित चौदह मनवन्तर होते हैं। एक मनुवन्तर में 71 महायुग (चतुर्युग) होते हैं।
वर्तमान में इस सृष्टि के छः मनवन्तर बीत चुके हैं और सातवें मनवन्तर वैवस्वत का 28वें चतुर्युगीय वर्ष में कलियुग का 5109वां वर्ष चल रहा है। श्रीराम का प्राकट्य इसी वैवस्वत मन्वन्तर के 24वें त्रेता में, सृष्टि वर्ष के 1 अरब 94 करोड़ 26 लाख, 93 हजार वर्ष व्यतीत होने पर रावण के वध के लिए दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ था।
चतुर्विशे युगे रामो वसिष्ठेन पुरोधसा। सप्तमो रावणस्यार्थे जज्ञे दशरथात्मजः॥ (वायु पुराण 18/72)