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Written By DW

घास-फूस से रासायनिक ईंधन

घास-फूस से रासायनिक ईंधन -
- उज्ज्वल भट्टाचार्य
रोजमर्रे की बहुत सी चीजों में खनिज तेल का इस्तेमाल होता है और खनिज तेल का भंडार खत्म होता जा रहा है। इसलिए रासायनिक उद्योग की कोशिश है कि कच्चे माल के रूप में जैव पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।

वनस्पति तेल और मांड़ी से बायो-एथानोल और बायो-डीजल का उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन जैव पदार्थों में इनकी मात्रा सिर्फ एक प्रतिशत है। इसलिए शोधकर्ताओं की नजर अन्य जैव पदार्थों पर है। वे लकड़ी के कचरे, भूसे, सोया के अवशेष और गन्ने के सीरे से रासायनिक पदार्थों का उत्पादन करना चाहते हैं।

जैव पदार्थों की एक खासियत यह है कि उनमें हमेशा एक जैसे तत्व मिलते हैं। इस सिलसिले में हालैंड के डेल्फ्ट तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वीब्रेन डे योंग का कहना है कि जैव पदार्थों के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं। सेलुलोज, जिससे कागज बनता है। लिगनिन, जो जैव पदार्थों को जोड़ने वाली लेई की तरह है, और तीसरा अंग है हेमिसेलुलोज।

प्रोफेसर वीब्रेन डे योंग की दिलचस्पी खासकर हेमिसेलुलोज में है। जैव पदार्थों में इसकी मात्रा लगभग एक-तिहाई के बराबर है, लेकिन अब तक इसके बारे में बहुत कम शोध हुआ है। अधिकतर वैज्ञानिक सेलुलोज से मांड़ी निकाल कर बायो-एथानोल प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

हेमिसेलुलोज के अणु भी सेलुलोज की तरह होते हैं, लेकिन उनमें मांड़ी नहीं होती। इन्हें फरफराल कहा जाता है, और अपने मूल रूप में यह एक पीला तरल पदार्थ होता है। अब तक सिर्फ ढलाई के क्षेत्र में या चिकनाई के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन प्रोफेसर डे योंग की राय में इसकी संभावनाएँ कहीं अधिक हैं।

वे कहते हैं कि इन पदार्थों के इस्तेमाल की संभावनाएँ कहीं अधिक हैं। पहले भी फरफराल का उपयोग होता रहा है, मसलन 1960 के दशक तक नाइलोन के उत्पादन में, यानी कि यह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्लास्टिक जैसे पदार्थों का एक बड़ा बाजार है।

लंबे अरसे तक महिलाओं के मोजे बनाने के लिए नाइलोन के इस विकल्प का इस्तेमाल होता रहा। लेकिन लगभग पचास साल पहले जिसे महँगा माना जाने लगा था, खनिज तेल के भंडार के खत्म होते जाने की रोशनी में अब फिर से लोकप्रिय हो सकता है। शोधकर्ताओं की राय में फरफराल की एक और उपयोगिता है- इसे हाइड्रोजन से जोड़ कर मेथाइल-टेट्रा-हाइड्रोफुरान या एमटीएचएफ नामक यौगिक प्राप्त किया जा सकता है।

इसकी उपयोगिता के बारे में प्रोफेसर डे योंग कहते हैं, 'यह नए सिंथेटिक ईंधन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। अमेरिकी वैज्ञानिक इस पर काफी काम कर चुके हैं, और एमटीएचएफ का उसमें एक केंद्रीय स्थान है। मिसाल के तौर पर फरफराल से प्राप्त इस यौगिक को एथानोल के साथ मिलाया जा सकता है, और इस प्रकार भविष्य के लिए एक नया ईंधन प्राप्त किया जा सकता है।'

बायो एथानोल और बायो डीजल के विपरीत इस नए ईंधन से एक फायदा यह होगा कि इसमें वनस्पति तेल जैसे उन पदार्थो का उपयोग नहीं होगा, खाद्य पदार्थ के रूप में जिनकी जरूरत होती है। हेमिसेलुलोज अखाद्य पदार्थ है।

प्रोफेसर डे योंग कहते हैं कि भारत जैसे कुछ देशों में औद्योगिक स्तर पर भी इसका उत्पादन शुरू हो चुका है।