केदारनाथ : मृत्युलोक में झाँकने का झरोखा  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  				  																	
									   युग-युगांतर से उत्तराखंड भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थल और शांति प्रदाता रहा है। प्रागैतिहासिक काल से ऋषि-मुनियों और साधक, परिव्राजकों को यह आकर्षित करता आ रहा है। हिमालय प्रकृति का महामंदिर है। यहाँ केदारनाथ तीर्थ उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ जाते समय पैरों के नीचे यत्र-तत्र हिम राशि खिसकती दिखाई पड़ती है। बर्फ के पास ही अत्यंत मादक सुगंध वाले सिरंगा पुष्पकुंज मिलने लगते हैं। इनके समाप्त होने पर हरी बुग्याल (दूब) मिलती है। इसके पश्चात केदारनाथ का हिमनद और उससे निकलने वाली मंदाकिनी अपने में असंख्य पाषाण खंडों को फोड़कर निकले झरनों और फव्वारों के जल को समेटे उद्दाम गति से प्रवाहित होती दिखाई देती है। इन सबके ऊपर केदारनाथ का 6 हजार 940 मीटर ऊँचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झाँकने का यह झरोखा हो। ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 223 किमी है, जिसमें अंतिम दस किमी का अंश जो गौरीकुंड से केदारनाथ है वह पैदल, घोड़े या पालकी से जाना पड़ता है। दूसरा मार्ग रानीखेत, कर्णप्रयाग, चमोली, ऊखीमठ, गुप्त काशी से केदारनाथ का है। |  | 
| | युग-युगांतर से उत्तराखंड भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थल और शांति प्रदाता रहा है। प्रागैतिहासिक काल से ऋषि-मुनियों और साधक, परिव्राजकों को यह आकर्षित करता आ रहा है। हिमालय प्रकृति का मंदिर है। यहाँ केदारनाथ तीर्थ उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थल है। | 
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				   यह सोनप्रयाग से 5 किमी आगे और केदारनाथ में 6 किमी पहले (पैदल) पड़ने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ एवं विश्राम स्थल है। इसकी ऊँचाई केवल 1982 मीटर है। यहाँ गर्म पानी और ठंडे पानी के दो बहुत ही उत्तम कुंड हैं। यहाँ गौरी मंदिर है, जो कुछ छोटा है और प्राचीन नहीं है। जनश्रुति है कि इसी स्थान पर पार्वती ने महादेव को पाने के लिए तपस्या की थी। मंदिर में गौरी और पार्वती की धातु की मूर्तियाँ हैं। दूसरा मंदिर राधाकृष्ण का है, जिसे कृष्ण भक्तों का नूतन प्रयास समझा जाना ही उत्तम होगा।केदारनाथ से 19 किमी पहले गंगोतरी, बूढ़ाकेदार सोनप्रयाग के रास्ते के निकट त्रियुगी नारायण नाम से प्रसिद्ध एक धार्मिक स्थल है। मंदिर के गर्भगृह में नारायण भगवान की सुंदर मूर्ति है। अन्य मूर्तियों में भू-देवी तथा लक्ष्मी की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। यहाँ अनेक कुंड भी हैं। इनके नाम ब्रह्म कुंड, रुद्र कुंड और सरस्वती कुंड हैं। इस मंदिर में अखंड धूनी जलती रहती है। किंवदंती है कि यह वही अग्नि है, जिसकी साक्षी कर शिव ने पार्वती से विवाह किया था। पार्वती का मायका अर्थात हिमालय नरेश का निवास (संभवतः ग्रीष्म निवास) भी यही बताया जाता है। यह तीनों युगों (द्वापर, त्रेता, कलियुग) में पूजित रहने के कारण त्रियुगीनारायण बना तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।भारतीय सेना करती है व्यवस्थादीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। बंद करते समय मंदिर में भारतीय सेना द्वारा उपस्थित श्रद्धालुओं को भोज दिया जाता है। भोज का खर्च भारतीय सेना उठाती है। प्रायः होटल, लॉज, धर्मशाला बंद हो जाते हैं।पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। सेना के जवान भगवान के विग्रह को पालकी में बैंडबाजे से लाते हैं। प्रायः 10 किमी पैदल यात्रा करनी पड़ती है। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक केदारनाथ के कपाट खुलने का समय भी मई माह में होता है। तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है।
				  				  																	
									   यह सोनप्रयाग से 5 किमी आगे और केदारनाथ में 6 किमी पहले (पैदल) पड़ने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ एवं विश्राम स्थल है। इसकी ऊँचाई केवल 1982 मीटर है। यहाँ गर्म पानी और ठंडे पानी के दो बहुत ही उत्तम कुंड हैं। यहाँ गौरी मंदिर है, जो कुछ छोटा है और प्राचीन नहीं है। जनश्रुति है कि इसी स्थान पर पार्वती ने महादेव को पाने के लिए तपस्या की थी। मंदिर में गौरी और पार्वती की धातु की मूर्तियाँ हैं। दूसरा मंदिर राधाकृष्ण का है, जिसे कृष्ण भक्तों का नूतन प्रयास समझा जाना ही उत्तम होगा।केदारनाथ से 19 किमी पहले गंगोतरी, बूढ़ाकेदार सोनप्रयाग के रास्ते के निकट त्रियुगी नारायण नाम से प्रसिद्ध एक धार्मिक स्थल है। मंदिर के गर्भगृह में नारायण भगवान की सुंदर मूर्ति है। अन्य मूर्तियों में भू-देवी तथा लक्ष्मी की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। यहाँ अनेक कुंड भी हैं। इनके नाम ब्रह्म कुंड, रुद्र कुंड और सरस्वती कुंड हैं। इस मंदिर में अखंड धूनी जलती रहती है। किंवदंती है कि यह वही अग्नि है, जिसकी साक्षी कर शिव ने पार्वती से विवाह किया था। पार्वती का मायका अर्थात हिमालय नरेश का निवास (संभवतः ग्रीष्म निवास) भी यही बताया जाता है। यह तीनों युगों (द्वापर, त्रेता, कलियुग) में पूजित रहने के कारण त्रियुगीनारायण बना तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।भारतीय सेना करती है व्यवस्थादीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। बंद करते समय मंदिर में भारतीय सेना द्वारा उपस्थित श्रद्धालुओं को भोज दिया जाता है। भोज का खर्च भारतीय सेना उठाती है। प्रायः होटल, लॉज, धर्मशाला बंद हो जाते हैं।पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। सेना के जवान भगवान के विग्रह को पालकी में बैंडबाजे से लाते हैं। प्रायः 10 किमी पैदल यात्रा करनी पड़ती है। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक केदारनाथ के कपाट खुलने का समय भी मई माह में होता है। तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है।