गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

यौन और उदर रोग में लाभदायक जानुशिरासन

यौन और उदर रोग में लाभदायक जानुशिरासन |  janushirasana in hindi video
आसन परिचय : जानुशिरासन को महामुद्रा भी कह सकते हैं। इसमें कोई खास फर्क नहीं। जानु का अर्थ है 'घुटना' इस आसन में अपने सिर को अपने घुटने से सटाया जाता है इसलिए इस आसन का नाम 'जानुशिरासन' (Janushirasana) है।
सावधानी : कमर से झुकते और माथे को घुटने से टिकाते वक्त रीढ़ सीधी रखें। हाथों को से पैरों के पंजों को पकड़ने में किसी प्रकार का अतिरिक्त दबाव हो तो तो पैरों के अंगुठे ही पकड़कर यह आसन करें। माथे को जबरदस्ती घुटने से टिकाने का प्रयास न करें।
 
धीरे-धीरे अभ्यास से भूमि से जंघाएं अच्छी तरह से टिकने लगेगी और माथा भी घुटने से सहजता से टिक जाएगा। जिन्हें भी पैरों, घुटनों और रीढ़ में किसी भी प्रकार की गंभीर शिकायत हो तब ऐसी स्थिति में यह आसन योग प्रशिक्षक की सलाहानुसार ही करें। 
 
आसन से लाभ : यह आसन वीर्य संबंधी विकारों को नष्ट कर जठराग्रि को प्रदीप्त करता है। इससे यौन रोग दूर करने में सहायता मिलती है।
 
जानुशिरासन से पीठ, कमर व टांगों में तनाव आता है। रीढ़ की हड्डी लचीली हो जाती है। साइटिका दर्द में यह लाभदायक है। कदवृद्धि के लिए इसका अभ्यास महत्वपूर्ण माना जाता है। इस आसन को करने से पेट की चर्बी घट जाती है जिससे कमर पतली ही बनी रहती है। पेट और पृष्ठभाग की सभी मांसपेशियों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
 
इसके अभ्यास से पाचन क्रिया तीव्र होती है तथा तंत्रिकातंत्र स्वस्थ और संतुलित बनता है। बवासीर, कब्ज, अम्लता और शरीर की अन्य दुष्कर व्याधियां इस के अभ्यास से दूर की जा सकती हैं। डायबिटीज के रोगियों के लिए यह लाभप्रद आसन है। यह प्लीहा, लीवर व आंतों के दोष दूर होकर पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
 
 
आसन विधि : दंडासन में बैठकर दाएं पैर को मोड़कर पंजे को बाईं जंघा मूल (जांघों से सटाकर) में लगाइए और एड़ी को सिवनी (उपस्थ व गुदाभाग के बीच के भाग) से सटाकर रखें।
 
फिर दोनों हाथों से बाएं पैर के पंजे या अंगुठे को पकड़ कर श्वास बाहर निकालकर सर को घुटने से लगाइए। थोड़ी देर रुकने के पश्चात श्वास लेते हुए ऊपर उठ जाइए। अब इसी क्रिया को बाएं पैर से भी दोहराएं।