गुरुवार, 28 नवंबर 2024
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महिलाओं की सकारात्मक सोच ही बचा सकती है पर्यावरण : डॉ. जनक

महिलाओं की सकारात्मक सोच ही बचा सकती है पर्यावरण : डॉ. जनक - role of women in environment
स्वच्छ पर्यावरण हमारी सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है लेकिन भारत की आधी आबादी नारी शक्ति ने इस पवित्र यज्ञ में अपनी भूमिका ज्यादा कुशलता से निभाई है और आगे भी निभा सकती हैं। देश में कई पर्यावरण-संरक्षण आंदोलनों खासकर वनों के संरक्षण में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वर्ष 1730 में जोधपुर के महाराजा को महल बनाने के लिए लकड़ी की जरुरत आई तो राजा के आदमी खिजड़ी गांव में पेड़ों को काटने पहुचें। तब उस गांव की अमृता देवी के नेतृत्व में 84 गांव के लोगों ने पेड़ों को काटने का विरोध किया, जब वे जबरदस्ती पेड़ों को काटने लगे तो अमृता देवी पेड़ से चिपक गईं और कहा कि पेड़ काटने से पहले उसे काटना होगा। राजा के आदमियों ने अमृता देवी को पेड़ के साथ काट दिया, यहां से मूल रूप से चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई थी।

अमृता देवी के इस बलिदान से प्रेरित हो कर गांव के महिला और पुरुष पेड़ से चिपक गए। इस आन्दोलन ने बहुत विकराल रूप ले लिया और 363 लोग विरोध के दौरान मारे गए, तब राजा ने पेड़ों को काटने से मना किया। 
 
तब से लेकर आज तक मेघा पाटकर हो या वंदना शिवा.... कई महिलाओं ने पर्यावरण को लेकर जागरूकता की पहल जगाई है। मैं भाषण और उपदेश में विश्वास नहीं रखती मेरी संपूर्ण जीवनशैली ही प्राकृतिक संसाधनों के बीच पर्यावरण को सहेजने पर आधारित है। मैं किसी से भी यह कभी नहीं कहती कि आप ऐसा करो, मैंने अपनी दिनचर्या के माध्यम से लोगों को राह दिखाई है कि पर्यावरण हित में प्राकृतिक संसाधनों के साथ कम से कम चीजों में कैसे सहज और स्वाभाविक जीवन जिया जा सकता है। 
 
उक्त विचार सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. जनक पलटा मगीलिगन ने वामा साहित्य मंच के आयोजन में व्यक्त किए। बतौर मुख्य अतिथि शामिल डॉ. जनक ने बताया कि कैसे घर और बाहर के दायित्वों का वहन करते हुए भी महिलाएं पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने में अपनी महती भूमिका निभा सकती हैं। अपने रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग कर हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकती हैं। हमारी परंपरा में पेड़, पौधों, जीव जंतु, प्रकृति, सूर्य, चंद्रमा, तारे, आकाश सभी को पूजा जाता है और बरसों से यह काम महिलाओं ने ही किया है। महिलाओं के लिए यह समय सिर्फ नारे लिखने का नहीं है बल्कि कुछ कर गुजरने का है। महिलाएं ही सबसे श्रेष्ठ संरक्षक होती हैं। वही जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। लेखिका के रूप में आप सबमें इस दुनिया को बेहतर और जीने योग्य बनाने की क्षमता ज्यादा है। इस दिशा में सकारात्मक कार्य करने और लेखन के लिए पर्यावरण संरक्षण को अभिरूचि के तौर पर अपनाना आज की जरूरत है।
 
इस अवसर पर वामा साहित्य मंच की समस्त लेखिकाएं पर्यावरण संरक्षण पर रोचक स्लोगन लिख कर लाई जिन्हें सलीके से प्रदर्शित किया गया। इन नारों और संदेशों में पर्यावरण के प्रति उनकी जागरूकता और चिंता दिखाई दी। कविता वर्मा ने लिखा कि -- अपने बच्चों के सुखी भविष्य के लिए पानी बोइए, हवा उगाइए...

सचिव ज्योति जैन ने लिखा- वट, तुलसी, पीपल, नीम, आंवला पूजनीय हो जाए, त्योहारों के जरिए स्त्री पर्यावरण बचाए। 
 
इस अवसर पर अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र और सचिव ज्योति जैन ने भी मंच से अपनी बात रखी और मुख्य अतिथि डॉ जनक का स्वागत किया। आरंभ में अतिथि परिचय डॉ. गरिमा संजय दुबे ने दिया। कार्यक्रम का सुंदर संचालन दीपा मनीष व्यास ने किया। आभार भावना दामले ने माना। इस अवसर पर सभी सदस्याओं ने इंदौर शहर के स्वच्छ पर्यावरण के लिए संकल्प भी लिया।  


स्लोगन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया स्मृति आदित्य ने, द्वितीय स्थान पर रहीं मंजूषा मेहता तथा तृतीय स्थान प्राप्त किया निधि जैन ने। प्रोत्साहन पुरस्कारपद्मा राजेन्द्र तथा मंजू मिश्रा को मिला।    
 
स्लोगन एक नजर में : 
 
हरी सुनहरी चुनर ओढ़े मुस्कुराती प्रकृति, 
इसे सहेजे, इसे संवारें यही हमारी संस्कृति - स्मृति आदित्य (प्रथम)  
 
 
वृक्षहीन कर धरती मां की लाज मिटाते जाओगे 
कैसे उस सूनी भूमि पर तुम भी जीवन पाओगे - मंजूषा मेहता (द्वितीय) 
 
 
दरख्त हो हरियाली हो छांव हो 
मुस्कुराते शहर हो और गांव हो 
वाम ही सहेजेगी अब पर्यावरण 
कितने घायल मन हाथ पांव हो -निधि जैन (तृतीय) 
 
धरती की चाहते हो रक्षा,
तो करो पर्यावरण की सुरक्षा|
जो पर्यावरण की सुरक्षा में देगे योगदान,
उससे बनेगा अपना देश महान... अंजू निगम
 
एक प्रश्न : अगर घास नहीं हुई तो शेर क्या खायेगा ?
डॉ. गरिमा संजय दुबे
 
स्वच्छता है जीवन आधार। शाकाहार से कर लो प्यार।- आशा शर्मा  
 
क्षिति जल पावक गगन समीरा। श्रम कर सहेजे इनको। ना करे जीवन अधूरा।-शारदा मंडलोई 
 
करो न विध्वंस तुम वसुधा का श्रृंगार
बढ़ने दो रहने दो हरे वृक्षों की कतार
कितना दिया है प्रकृति ने हम सबको
मानो सदा उपकार करो इसे नमस्कार- मधु टाक
 
प्रकृति के सब कारज परहित
इसे सवांरे करें हम जनहित- अमर खनुजा चड्ढा 
 
पवित्र, पावन प्रकृति का सुन्दर सुहाना ये आवरण                        
न क्षरण हो न क्षय करें हम बस उन्नत हो ये पर्यावरण - डॉ. दीपा मनीष व्यास       
 
न बदल कुदरत की चाल को
प्रकृति की लय पर चलने दे पर्यावरण के ताल को
पेड़ो के राग ही उदारता का उदाहरण है
हरियाली की सम्पन्नता बढ़ाने के  सौ कारण है - सिमरन बालानी