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रुबाइयाँ : मेहबूब राही
1.
हर बात पे इक अपनी सी कर जाऊँगाजिस राह से चाहूँगा गुज़र जाऊँगाजीना हो तो मैं मौत को देदूँगा शिकस्त मरना हो तो बेमौत भी मर जाऊँगा2.
ये दिल भी अजब तरह की शय होती हैकुछ और ही इस साज़ की लय होती है वो राह जो बरसों की मसाफ़त चाहे वो जो चाहे तो इक जस्त में तय होती है3.
हर दामन-ए-सद चाक भी सिल जाता है बिछड़ा कोई मुद्दत का जो मिल जाता है क़िस्मत के हैं सब खेल कोई मौसम होजिस फूल को खिलना हो वो खिल जाता है 4.
ख़ूँख़्वारों की ख़ूँख़्वारी से महफ़ूज़ रखो दुनिया को तबाहकारी से महफ़ूज़ रखो अफ़वाहें न फैलाओ बुरे हैं हालात बारूद को चिगारी से महफ़ूज़ रखो 5.
ख़ुद को तो मेहरबान बना लो पहले अपनी कोई पहचान बना लो पहले शैतान को शैतान ही रहने दो अभी इंसान को इंसान बना लो पहले 6.
कमज़ोर को बलवान बना देता है निर्धन को भी धनवान बना देता है है वक़्त का छोटा सा चमत्कार के जो पत्थर को भी भगवान बना देता है7.
इज़हारे-हक़ीक़त से जिगर छिलता है ग़ुंचा कभी सेहरा में कहीं खिलता है आसान है इस युग में ख़ुदा का मिलना इंसान मेरे भाई कहाँ मिलता है