1.
अगर कजरौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा मुझे फ़िक्रे जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेराअगर हंगामा ए शौक़ से है लामकाँ ख़ाली ख़ता किसकी है यारब लामकाँ तेरा है या मेराइसे सुबहे अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर मुझे मालूम क्या वो राज़दाँ तेरा है या मेरामोहम्म्द भी तेरा, जिबरील भी क़ुरआन भी तेरामगर ये हर्फेशीरीं तरजुमाँ तेरा है या मेराइसी कोकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रोशन ज़वाले आदमे ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
2 .
फिर चिराग़े लाला सेफिर चिराग़े लाला से रोशन हुए कोहो दमन मुझको फिर नग़मों पे उकसाने लगा मुरग़े चमनफूल हैं सेहरा में या परयाँ क़तार अन्दर क़तार ऊदे ऊदे नीले नीले पीले पीले पैरहनबरगे गुल पर रख गई शबनम का मोती बादेसुबह और चमकाती है इस मोती को सूरज की किरनहुस्ने बेपरवाह को अपनी बेनक़ाबी के लिए हों अगर शेहरों से बन प्यारे तो शेहर अच्छे के बनअपने मन में डूब के पा जा सुराग़े ज़िन्दगी तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बनमन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धनमन की दुनिया में न पाया मैं ने अफ़्र्रंगी का राज मान की दुनिया में न देखे मैंने शेख़ो बिरहमनपानी पानी कर गई मुझको क़लन्दर की ये बात तू झुका जब ग़ैर के आगे तो मन तेरा न तन----------------------------------------------------
3.
सितारों से आगेसितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तेहाँ और भी हैं तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़िज़ाएँयहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैंक़नाअत न कर आलमे रंगोबू पर चमन और भी आशियाँ और भी हैंतू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा तेरे सामने आसमाँ और भी हैंइसी रोज़ो शब में उलझ कर न रह जा के तेरे ज़मानो मकाँ और भी हैं गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन मैं यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं। ----------------------------------------------------
4.
आता है याद मुझकोआता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़मानावो बाग़ की बहारें वो सब का चेहाचहाना आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोंसले की अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जानालगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुरानावो प्यारी प्यारी सूरत वो कामिनी सी मूरत आबाद जिस के दम से था मेरा आशियानाआती नहीं सदाएँ उसकी मेरे क़फ़स में होती मेरी रिहाई ऐ काश मेरे बस मेंक्या बदनसीब हूँ मैं घर को तरस रहा हूँ साथी हैं सब वतन में मैं क़ैद में पड़ा हूँआई बहार कलियाँ फूलों को हँस रही हैं मैं इस अँधेरे घर में क़िस्मत को रो रहा हूँइस क़ैद का इलाही दुखड़ा किसे सुनाऊँ डर है यहीं क़फ़स में घबरा के मर न जाऊँ। ----------------------------------------------------