मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025
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Written By WD

प्रकाश पर्व श्री गुरु रामदास साहेबजी

प्रकाश पर्व श्री गुरु रामदास साहेबजी -
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श्री गुरु रामदास साहेबजी का प्रकाश (जन्‍म) 24 सितंबर सन् 1534 को पिता हरदासजी के घर माता दयाजी की कोख से हुआ। बाल्‍यकाल में आपको भाई जेठाजी के नाम से बुलाया जाता था। छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता का स्‍वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासरके गाँव में आकर रहने लगे। कम उम्र में ही आपने जीविकोपार्जन प्रारंभ कर दिया था।

कुछ सत्‍संगी लोगों के साथ बचपन में ही आपने गुरु अमरदासजी के दर्शन किए और आप उनकी सेवा में पहुँचे। आपकी सेवा से प्रसन्‍न होकर गुरु अमरदासजी ने अपनी बेटी भानीजी का विवाह भाई जेठाजी से करने का निर्णय लिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदासजी की सेवा जमाई बनकर ना करते हुए एक सिख की तरह तन-मन से करते रहे।

गुरु अमरदासजी जानते थे कि जेठाजी गुरुगद्दी के लायक है पर लोक मर्यादा को ध्‍यान में रखते हुए आपने उनकी परीक्षा भी ली। उन्‍होंने अपने दोनों जमाइयों को 'थडा' बनाने का हुक्‍म दिया। शाम को उन दोनों जमाइयों के द्वारा बनाए गए थडों को देखने आए। थडे देखकर उन्‍होंने कहा कि यह ठीक से नहीं बने हैं, इन्‍हें तोड़कर दोबारा बनाओ।

गुरु अमरदासजी का आदेश पाकर दोनों जमाइयों ने दोबारा थडे बनाए। गुरु साहेब ने दोबारा थडों को नापसंद कर दिया और उन्‍हे दुबारा से थडे बनाने का हुक्‍म दिया। इस हुक्‍म को पाकर दुबारा थडे बनाए गए। पर अब जब गुरु अमरदास साहेबजी ने इन्‍हें फिर से नापसंद किया और फिर से बनाने का आदेश दिया। तब उनके बडे जमाई ने कहा- 'मैं इससे अच्‍छा थडा नहीं बना सकता' पर भाई जेठाजी ने गुरु अमरदासजी का हुक्‍म मानते हुए दोबारा थडा बनाना शुरू किया। यहाँ से यह सिद्ध हो गया कि भाई जेठाजी ही गुरुगद्दी के लायक हैं।

भाई जेठाजी (गुरु रामदासजी) को 1 सितंबर सन् 1574 ईस्‍वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में श्री गुरु अमरदासजी द्वारा गुरुगद्दी सौंपी गई।