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श्रावण मास का पहला गुरुवार, जानिए 25 शुभ बातें

श्रावण मास का पहला गुरुवार, जानिए 25 शुभ बातें - shravan maas guruwar
आइए जानते हैं कि श्रावण मास के गुरुवार का क्या महत्व है और क्या है इसके संबंध में रोचक बातें।
 
बृहस्पति ग्रह का वार गुरुवार है। गुरुवार की प्रकृति क्षिप्र है। यह दिन ब्रह्मा और बृहस्पति का दिन माना गया है। यदि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति निम्निलिखित अनुसार है तो श्रावण मास गुरुवार का व्रत करना चाहिए। आओ जानते हैं कि किसे श्रावण मास गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।
 
1. कुंडली में 6वें, 7वें, 8वें और 10वें भाव में गुरु है तो श्रावण मास गुरुवार का उपवास करना चाहिए। 
 
2. यदि आपकी राशि धनु और मीन है तो भी आपको श्रावण मास गुरुवार का उपवास करना चाहिए।
 
3. यदि गुरु शत्रु ग्रह के साथ बैठा है तो भी श्रावण मास गुरुवार का व्रत करना चाहिए। गुरु ग्रह के शुक्र और बुध शत्रु ग्रह हैं जबकि शनि और राहु सम ग्रह हैं।
 
4. कुंडली में यदि बृहस्पति कमजोर है, शुक्र, बुध या राहु के साथ है या किसी भी प्रकार से वह नीच हो रहा है तो जातक को श्रावण मास गुरुवार का व्रत अवश्‍य करना चाहिए क्योंकि बृहस्पति से ही भाग्य जागृत होता है। 
 
5. श्रावण मास का गुरुवार करने से खुल जाते हैं भाग्य के द्वार क्योंकि बृहस्पति चौथा, पांचवां और नौवें भाव पर अपना प्रभाव रखते हैं।
 
6. यदि विवाह में कोई कठिनाई आ रही है या वैवाहिक जीवन सुखमयी नहीं है तो श्रावण मास गुरुवार का व्रत करना चाहिए।
7. यदि आपकी कुंडली में अल्पायु योग हैं या जीवन रेखा कमजोर है तो आपको श्रावण मास गुरुवार का व्रत निरंतर रखते हुए गुरु के उपाय भी करना चाहिए क्योकि गुरु ही लंबी आयु भी प्रदान करता है।
 
9. उथली व छिछली मानसिकता वाले व्यक्तियों को श्रावण मास बृहस्पतिवार का उपवास अवश्य रखना चाहिए।
 
10. यदि गुरु दशम भाव में है या किसी भी भी प्रकार से पितृदोष निर्मित हो रहा है तो जातक को श्रावण मास गुरुवार अवश्य करना चाहिए साथ ही प्रतिदिन हनुमान चालीसा भी पढ़ना चाहिए।
 
11. जीवन में हर मोड़ पर असफलता का सामना हो रहा है और किसी भी प्रकार का सुख नहीं मिल रहा है तो निश्‍चित ही गुरुवार का कठिन व्रत करना ही चाहिए।
 
12. किसी भी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रावण मास गुरुवार से उपवास आरंभ कर 11 गुरुवार करना ही चाहिए।
 
13. गुरुवार के उपाय : सफेद चंदन, हल्दी या गोरोचन का तिलक लगाएं। हर तरह की बुरी लत को छोड़ने के लिए अति उत्तम दिन, क्योंकि इस दिन संकल्प की अधिकता रहती है। श्रावण मास गुरुवार को पापों का प्रायश्‍चित करने से पाप नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि यह दिन देवी-देवताओं और उनके गुरु बृहस्पति का दिन होता है। उत्तर, पूर्व, ईशान दिशा में यात्रा करना शुभ। धार्मिक, मांगलिक, प्रशासनिक, शिक्षण और पुत्र के रचनात्मक कार्यों के लिए यह दिन शुभ है। सोने और तांबे का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। इस दिन घर में धूप दीप देना चाहिए खासकर गुग्गुल की धूप देना चाहिए। इस दिन धूप देने से गृह कलह, तनाव और अनिद्रा और किया कराया में लाभ तो मिलता ही है साथ ही दिल और दिमाग के दर्द में राहत मिलती है। सबसे बड़ी बात यह कि इस दिन धूप देने से पारलौकिक मदद मिलती है। 
14. यदि आपका गुरु अशुभ या कमजोर है तो आप नित्य पीपल में जल चढ़ाएं, सदा सत्य बोलें और अपने आचरण को शुद्ध रखें तो गुरु शुभ फल देने लगेगा। इसके अलावा गुरु को शुभ करने के लिए सदा पिता, दादा और गुरु का आदर कर उनके पैर छुएं। गुरु बनाएं। इसके अलावा अन्य अचूक उपाय यह कि गुरुवार के दिन पीली वस्तु का सेवन करें। घर में धूप-दीप दें। प्रतिदिन प्रात: और रात्रि को कर्पूर जलाएं। घर के वास्तु को बदलें और घर को गुरु के अनुसार बनाएं। घर के बर्तन आदि वस्तुएं पीतल की रखें। तिजोरी या ईशान कोण में हल्दी की गांठ को किसी सफेद कपड़े में हल्का से बांधकर रखें।
 
15. गुरु ग्रह का विज्ञान : बृहस्पति ग्रह का वार गुरुवार है। सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नम्बर आता है। इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778000000 किलोमीटर मानी गई है। यह 13 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धूरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। उदित होने के बाद 128 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात्य पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा। 
 
16. नवग्रहों में गुरु ही है सर्वश्रेष्ठ : गुरुवार की प्रकृति क्षिप्र है। यह दिन ब्रह्मा और बृहस्पति का दिन माना गया है। धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु के सूर्य, मंगल, चंद्र मित्र ग्रह हैं, शुक्र और बुध शत्रु ग्रह और शनि और राहु सम ग्रह हैं। नवग्रहों में बृहस्पति को गुरु की उपाधि प्राप्त है। इनके शुत्र बुध, शुक्र और राहु है। कर्क में उच्च का और मकर में नीच का होता है गुरु। लाल किताब के अनुसार चंद्रमा का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति बढ़ जाती है। वहीं मंगल का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति दोगुना बढ़ जाती है। सूर्य ग्रह के साथ से बृहस्पति की मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है।

 
17. गुरु से ही प्रारंभ होते मांगलिक कार्य : मानव जीवन पर बृहस्पति का महत्वपूर्ण स्थान है। यह हर तरह की आपदा-विपदाओं से धरती और मानव की रक्षा करने वाला ग्रह है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है। गुरु ग्रह के कारण ही धरती का अस्तित्व बचा हुआ है। सूर्य, चंद्र, शुक्र, मंगल के बाद धरती पर इसका प्रभाव सबसे अधिक माना गया है। गुरु ग्रह के अस्त होने के साथ ही मांगलित कार्य भी बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि गुरु से ही मंगल होता है।
18. गुरुवार के देवता : ज्योतिष के अनुसार गुरुवार या गुरु ग्रह का संबंध, भगवान विष्णु,  महर्षि बृहस्पति और भगवान दत्तात्रेय से है परंतु लाल किताब के अनुसार भगवान ब्रह्मा इसके देवता हैं और ब्राह्मण, दादा, परदादा को इससे संबंधित माना जाता है। पीपल, पीला रंग, सोना, हल्दी, चने की दाल, पीले फूल, केसर, गुरु, पिता, वृद्ध पुरोहित, विद्या और पूजा-पाठ यह सब बृहस्पति के प्रतीक माने गये हैं।
 
19. कुंडली में गुरु : कुंडली में चौथा, पांचवां और नौवें भाव पर अपना प्रभाव रखते हैं। चौथे में अच्छा फल देते हैं और नौवें में भाग्य खोल देते हैं। कुंडली में बृहस्पति शुभ है तो व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। उनकी सच्चाई के लिए वह प्रसिद्ध होता है। आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया को झुकाने की ताकत रखने वाले ऐसे व्यक्ति के प्रशंसक और हितैषी बहुत होते हैं। यदि बृहस्पति उसकी उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12 में हो तो शुभ।
 
20. श्रावण मास गुरुवार करने से खुल जाते हैं भाग्य : गुरुवार करने से खुल जाते हैं भाग्य के द्वार कुंडली में यदि बृस्पति कमजोर है, शुक्र, बुध या राहु के साथ है या किसी भी प्रकार से वह नीच हो रहा है तो जातक को गुरुवार का व्रत अवश्‍य करना चाहिए क्योंकि बृहस्पति से ही भाग्य जागृत होता है। उसी से आसानी से विवाह होता है और वैवाहिक जीवन में सुख मिलता है। गुरु ही लंबी आयु भी प्रदान करता है। अत: गुरुवार करना जरूरी है। उथली व छिछली मानसिकता वाले व्यक्तियों को बृहस्पतिवार का उपवास अवश्य रखना चाहिए।
 
21. गुरु खराब की निशानी : बृहस्पति कमजोर होता है तो पितृदोष माना जाता है। सिर के बीचोबीच से बाल उड़ने लगते हैं। शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न होने लगता है। नेत्र में पीड़ा होने लगती है। सपने में सर्प का दिखाई देने लगते हैं। व्यक्ति के बारे में बेकार की अफवाहें चलती रहती है। गले में दर्द और फेफड़े की बीमारी हो जाती है। ज्यादा ही खराब है तो जातक की आयु भी कम हो जाती है। 

22. मंदिर जाने और पूजा करने का वार : हिन्दू धर्म में श्रावण मास गुरुवार को श्रेष्ठ और पवित्र दिन माना गया है। यह धर्म का दिन होता है। इस दिन मंदिर जाना जरूरी होता है। गुरुवार की दिशा ईशान है। ईशान में ही देवताओं का स्थान माना गया है। इस दिन सभी तरह के धार्मिक और मंगल कार्य से लाभ मिलता है अत: हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह दिन सर्वश्रेष्ठ माना गया है अत: सभी को प्रत्येक गुरुवार को मंदिर जाना चाहिए और पूजा, प्रार्थना या ध्यान करना चाहिए।
 
23. गुरुवार का दिशा शूल और राहु काल : यात्रा में इस वार की दिशा पश्चिम, उत्तर और ईशान ही मानी गई है। इस दिन पूर्व, दक्षिण और नैऋत्य दिशा में यात्रा त्याज्य है। इस दिन दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तक रहता है।
 
24. श्रावण मास गुरुवार के दिन ये कार्य करें : सफेद चंदन, हल्दी या गोरोचन का तिलक लगाएं। हर तरह की बुरी लत को छोड़ने के लिए अति उत्तम दिन, क्योंकि इस दिन संकल्प की अधिकता रहती है। श्रावण मास गुरुवार के दिन पीली वस्तु का सेवन करें।
 
अक्सर गुरुवार को इसकी धूप घर में दी जाती है। इस दिन धूप देने से गृह कलह, तनाव और अनिद्रा और किया कराया में लाभ तो मिलता ही है साथ ही दिल और दिमाग के दर्द में राहत मिलती है। सबसे बड़ी बात यह कि इस दिन धूप देने से पारलौकिक मदद मिलती है। 
 
25.  श्रावण मास गुरुवार के दिन ये कार्य ना करें : इस दिन शेविंग न बनाएं और शरीर का कोई भी बाल न काटें अन्यथा संतान सुख में बाधा उत्पन्न होगी। दक्षिण, पूर्व, नैऋत्य में यात्रा करना वर्जित है। गुरुवार को नमक नहीं खाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और हर कार्य में बाधा आती है। इस दिन दूध और केला खाना भी वर्जित माना गया है। इस दिन कपड़े धोना और पोंछा लगाना भी वर्जित माना जाता है।

 
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