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Last Updated : शुक्रवार, 24 सितम्बर 2021 (18:14 IST)

पितृ पक्ष द्वितीया श्राद्ध की खास बातें, क्या करें और क्या न करें

पितृ पक्ष द्वितीया श्राद्ध की खास बातें, क्या करें और क्या न करें - Pitru Paksha Dwitiya Shradh
इस बार पितृ पक्ष ( Pitru Paksha 2021 Start Date) 20 सितंबर 2021, सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। पितृ पक्ष का समापन 6 अक्टूबर 2021, बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा। आओ जानते हैं कि पितृ पक्ष के तीसरे दिन के द्वितीया श्राद्ध के दिन क्या करें और क्या न करें।
 
 
1. जिन लोगों का देहांत इस दिन अर्थात तिथि अनुसार दोनों पक्षों (कृष्ण या शुक्ल) द्वितीया तिथि हो हुआ है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। आज पितृ पक्ष तीसरा दिन है। 
 
2. द्वितीया तिथि 22 सितंबर को सुबह 05:51 बजे से शुरू होकर 23 सितंबर को प्रातः 06:53 बजे समाप्त होगी।
 
3. कुतुप मुहूर्त 11:48 पूर्वाह्न से 12:36 अपराह्न तक रहेगा। रोहिणी मुहूर्त- दोपहर 12:36 बजे से दोपहर 01:25 बजे तक रहेगा। कुतुप मुहूर्त और रोहिणी मुहूर्त को श्राद्ध करने के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है। 
 
4. श्राद्ध के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर धोती और जनेऊ पहनें। अंगुली में दरभा घास की अंगूठी पहनें। अब पहले से बनाया पिंड पितरों को अर्पित करें। अब बर्तन से धीरे धीरे पानी डालें। 
 
5. इस दिन भगवान विष्णु और यम की पूजा करें। इसके बाद तर्पण कर्म करें।
 
6. पितरों के लिए बनाया गया भोजन रखें और अंगूठे से जल अर्पित करें। 
 
7. इसके बाद भोजन को गाय, कौवे और फिर कुत्ते और चीटियों को खिलाएं। 
 
8. अंत में ब्राह्मण भोज कराएं। 
 
9. इस दिन चाहें तो गीता पाठ या पितृसूत्र का पाठ भी पढ़ें।
 
10. यथाशक्ति सभी दान दें।

क्या न करें :
1. गृह कलह : श्राद्ध में गृह कलह, स्त्रियों का अपमान करना, संतान को कष्ट देने से पितृ नाराज होकर चले जाते हैं।
 
2. श्राद्ध का अन्न : श्राद्ध में चरखा, मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तील, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसो का साग, चना आदि वर्जित माना गया है। कोई यदि इनका उपयोग करना है तो पितर नाराज हो जाते हैं।
 
3. नास्तिकता और साधुओं का अपमान : जो व्यक्ति नास्तिक है और धर्म एवं साधुओं का अपमान करना है, मजाक उड़ाता है उनके पितृ नाराज हो जाते हैं।
 
4. श्राद्ध योग्य : पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिए। पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है। एक से ज्यादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। उक्त नियम से श्राद्ध न करने पर पितृ नाराज हो जाते हैं। कई घरों में बड़ा पुत्र है फिर भी छोटा पुत्र श्राद्ध करता है। छोटा पुत्र यदि अलग रह रहा है तब भी सभी को एक जगह एकत्रित होकर श्राद्ध करना चाहिए।
 
5. श्राद्ध का समय : श्राद्ध के लिए सबसे श्रेष्ठ समय दोहपहर का कुतुप काल और रोहिणी काल होता है। कुतप काल में किए गए दान का अक्षय फल मिलता है। प्रात: काल और रात्रि में श्राद्ध करने से पितृ नाराज हो जाते हैं। कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता।
 
6. अन्य कर्म : शराब पीना, मांस खाना, श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य करना, झूठ बोलना और ब्याज का धंधा करने से भी पितृ नाराज हो जाता हैं।