मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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भगवान कृष्ण से जुड़ी 11 रोचक बातें

Lord Krishna | भगवान कृष्ण से जुड़ी 11 रोचक बातें
'हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।'- गीता

कृष्ण को हिंदू धर्म में पूर्णावतार माना गया है। कृष्ण को ईश्वर मानना अनुचित है, किंतु इस धरती पर उनसे बड़ा ईश्वरतुल्य कोई नहीं है इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान हैं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य।

कृष्ण को जानना और उन्हीं की भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है। अन्य की भक्ति सिर्फ भ्रम, भटकाव और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है। भजगोविंदम मूढ़मते।

कृष्ण ने कब देह छोड़ दी थी, जानिए ऐतिहासिक प्रमाण...

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आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है।

भज गोविंदम मूढ़मते

कृष्ण जन्म और मृत्यु के समय ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति थी उस आधार पर ज्योतिषियों अनुसार कृष्ण की आयु 119-33 वर्ष आंकी गई है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए के तीर के लगने से हुई थी। युद्ध के बाद जब यदुवंशियों के कुल का नाश हो गया था तब कृष्ण जंगल में चले गए थे, जहां वे विश्राम कर रहे थे तभी बहेलिए ने उनके पैर को देखकर हिरण समझा और तीर मार दिया।

कृष्ण जन्म के दौरान आठ अंक का महत्व...

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कृष्ण जन्म : पुराणों अनुसार आठवें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकलने के बाद आठवें मुहूर्त में हुआ।

तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5125 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।

कृष्ण जन्म के दौरान आठ का जो संयोग बना उसमें क्या कोई रहस्य छिपा है। गौरतलब है कि कृष्ण की आठ ही पत्नियां थी। आठ अंक का उनके जीवन में बहुत महत्व रहा है।

महाभारत युद्ध हुआ तब कृष्ण की उम्र क्या थी, अगले पेज पर...

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कृष्ण पर शोध : हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाले शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटीक वर्णन किया है। ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे।

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उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया। इसके संदर्भ में उन्होंने पुरातात्विक तथ्यों को भी शामिल किया, जैसे कि लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के सबूत, पानी में डूबी द्वारका और वहाँ मिले कृष्ण-बलराम की छवियों वाले पुरातात्विक सिक्के और मोहरें, ग्रीक राजा हेलिडोरस द्वारा कृष्ण को सम्मान देने के पुरातात्विक सबूत आदि।

महाभारत, गीता और कृष्ण के समय के संबंध में मेक्समूलर, बेबेर, लुडविग, हो-ज्मान, विंटरनिट्स फॉन श्राडर आदि सभी विदेशी विद्वानों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों का कुछ भारतीय विद्वानों ने भी अनुसरण कर भ्रम के जाल को और बढ़ावा दिया है। दयानंद सरस्वती ने विदेशी विद्वानों की बातों का खंडन कर अपनी पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' में एक लेख लिखा था जिसमें युधिष्ठिर से लेकर अंतिम हिंदू राजा यशपाल तक के नाम दिए हैं। यशपाल को शाहबुद्दीन ने पराजित कर दिल्ली पर अपना आधिपत्य कायम किया था।

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कृष्ण पत्नी : कृष्ण को चाहने वाली हजारों महिलाएं थीं। प्रत्येक महिला का जीवन रोचक और महत्वपूर्ण है। कृष्ण ने आठ महिलाओं से विवाह किया- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।

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कृष्ण की प्रेमिकाएं : राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएं थीं। उक्त सभी को सखियां भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियां भी कृष्ण से प्रेम करती थीं जिनके नाम निम्न हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।

ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएं थीं जिनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। माना जाता है कि ललिता नाम की प्रेमिका को मोक्ष नहीं मिल पाया था, तो बाद में उसने मीरा के नाम से जन्म लिया।

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शूरसेन की पीढ़ी में ही वासुदेव और कुंती का जन्म हुआ। कुंती तो पांडु की पत्नी बनी जबकि वासुदेव से कृष्ण का जन्म हुआ। कृष्ण से प्रद्युम्न का और प्रद्युम्न से अनिरुद्ध का जन्म हुआ।

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प्रद्युम्न के पुत्र तथा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के रूप में उषा की ख्याति है। अनिरुद्ध की पत्नी उषा शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा की प्रेम कहानी जगप्रसिद्ध है। भारतीय साहित्य में कदाचित यह एक अनोखी प्रेमकथा है जिसमें एक प्रेमिका स्त्री द्वारा पुरुष का हरण वर्णित है।

कहां-कहां मिल सकते हैं कृष्ण...

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कृष्ण निवास : मथुरा हिंदुओं के लिए मदीना की तरह है। गोकुल, वृंदावन, गिरिराज और द्वारिका में कृष्ण ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण गुजारे। पूरे भारतवर्ष में कृष्ण अनेक स्थानों पर गए। वे जहां-जहां भी गए उक्त स्थान से जुड़ी उनकी गाथाएं प्रचलित हैं लेकिन मथुरा उनकी जन्मभूमि होने के कारण हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है।

कृष्ण को ढूंढने वाले अक्सर गोकुल, मथुरा, वृंदावन, गिरिराज जाते हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि द्वारिका में कृष्ण आराम करते हैं और मथुरा में काम और वैकुंठ में ध्यान। इतिहासकार मानते हैं रावली पर्वत पर ही कहीं वैकुंठ लोक बसाया गया था।

कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहां एक नए राज्य की स्थापना की। कालांतर में यह नगरी समुद्र में डूब गई जिसके कुछ अवशेष अभी हाल में ही खोजे गए हैं। अभी गुजरात में उक्त द्वारिका के समुद्री तट पर ही भेंट द्वारिका और द्वारका बसी हैं। हिंदुओं को चार धामों में से एक द्वारिका धाम को द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ कहा जाता है। स्कंदपुराण में श्रीद्वारिका महात्म्य का वर्णन मिलता है।

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कृष्ण महायोगी थे। योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहकर हासिल की थी। कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था जिसे युद्ध में सबसे घातक हथियार माना जाता था।

कृष्ण ने एक ओर जहां अपनी माया द्वारा माता यशोदा को अपने मुंह के भीतर ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए थे वहीं उन्होंने युद्ध के मैदान में उन्होंने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराकर उसका भ्रम दूर किया था। दूसरी ओर उन्होंने द्रौपदी के चीरहरण के समय उसकी लाज बचाई थी। इस तरह कृष्ण के चमत्कार और माया के कई किस्से हैं।

कर्मों में कुशलता है योग-कृष्ण

वे योग में पारगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियां होती हैं वे स्वत: ही उन्हें प्राप्त थीं। सिद्धियों से पार भी जगत है वे उस जगत की चर्चा गीता में करते हैं। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है।

कृष्ण ने किया इन राक्षसों का वध...

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कृष्ण लीलाएं : कृष्ण के जीवन में बहुत रोचकता और उथल-पुथल रही है। कंस ने बालक कृष्ण की हत्या करने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा था। कृष्ण की माया के आगे पूतना बेबस रही। पूतना के अलावा कृष्ण ने शकटासुर, यमलार्जुन मोक्ष, कलिय-दमन, धेनुक, प्रलंब, अरिष्ट आदि राक्षसों का संहार किया था।

कुछ और बड़े हुए तो मथुरा में कंस का वध कर प्रजा को अत्याचारी राजा कंस से मुक्त करने के उपरांत कृष्ण ने अपने माता-पिता को भी कारागार से मुक्त कराया। कंस का वध कर कृष्ण ने मथुरा को अपना कार्यक्षे‍त्र बनाया। मथुरा पर जरासंध ने कई बार आक्रमण किए। जरासंध ने कालयवन के साथ मिलकर आक्रमण किया तब कृष्ण को मथुरा छोड़कर भागना पड़ा।

कृष्ण और महाभारत युद्ध और कृष्ण की गीता...

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महाभारत का युद्ध : कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की गद्दी के लिए कुरुक्षेत्र में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था। कुरुक्षेत्र हरियाणा प्रांत का एक जिला है। मान्यता है कि यहीं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कृष्ण इस युद्ध में पांडवों के साथ थे।

18 दिन तक चला महाभारत युद्ध बहुत ही उथल-पुथलभरा रहा। इस युद्ध में कृष्ण ने कोई हथियार नहीं उठाया था लेकिन एक जगह वे मजबूर हो गए थे।

गीता प्रवचन : कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो उपदेश दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों के सार को गीता कहा गया है। ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। गीता महाभारत के भीष्मपर्व का हिस्सा है।

अंत में अगली चौबीसी में जैन धर्म के पहले तीर्थंकर बनेंगे कृष्ण...

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जैन धर्म : जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे, कृष्ण इनके पास बैठकर इनके प्रवचन सुना करते थे।

कृष्ण को जैन धर्म में इसलिए तीर्थंकर या सिद्ध नहीं माना जाता, क्योंकि उन्होंने हिंसा की और हिंसा का साथ दिया। हालांकि जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैषठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है।

ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे

(समाप्त)