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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

holy trinity : प्रत्येक धर्म में मिलेंगे त्रिदेव?

holy trinity : प्रत्येक धर्म में मिलेंगे त्रिदेव? - holy trinity of Hindu Religion
अक्सर हिन्दू धर्म पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि यह बहुदेववादी धर्म है, लेकिन यह सरासर गलत है। हिन्दू धर्म में सर्वोच्च शक्ति 'ब्रह्म' को माना गया है, लेकिन हिन्दू देवताओं के अस्तित्व को भी मानते हैं। देवताओं को इस्लाम में फरिश्ता और ईसाई धर्म में एंजल कहा गया है। ये दोनों धर्म एकेश्‍वरवादी होने के बावजूद फरिश्तों के बारे में जानते हैं। खैर...! 
प्राचीनकाल में 3 महत्वपूर्ण देव थे जिन्हें 'त्रिदेव' कहा गया। ये 3 देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। हिन्दू धर्म के इस सत्य या दर्शन को सभी धर्मों ने सहर्ष स्वीकार किया। भाषा और स्थान के अनुसार इनकी प्राचीनकालीन संस्कृति और सभ्यता में भिन्न-भिन्न नाम थे लेकिन इनकी कहानियां और इनके कार्य एक जैसे बताए गए हैं।
 
 
इब्राहीमी धर्मों में त्रिदेव : यहूदी, ईसाई और इस्लाम में 3 फरिश्ते महत्वपूर्ण हैं- मीकाइल, जिब्राइल और इस्राफील। ईसाई धर्म में 3 पवित्र आत्माओं की धारणा है- ईश्वर, ईश्वर का पुत्र और पवित्र आत्मा। प्राचीन अरब, रोम, यूनान, चीन और रूस में भी 3 पवित्र देवताओं की धारणा थी। इब्राहीमी धर्मों में फरिश्तों को परमेश्वर का संदेशवाहक समझा जाता है, जो ईश्वर का गुणगान करते हैं और मनुष्यों तक उसका संदेश पहुंचाते हैं।
 
पारसी धर्म में त्रिदेव : पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में 2 आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है। तीसरी शक्ति सर्वोच्च है जिसे अहुरा मजदा कहते हैं। 2 शक्तियों में अहुरा मजदा की आत्मा 'स्पेंता मैन्यू' एक सकारात्मक शक्ति है जबकि दूसरी दुष्ट आत्मा 'अंघरा मैन्यू' है जिसके साथ संघर्ष चलता रहता है। 
 
मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है, की इस संघर्ष में केंद्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। असल में यही तीनों सृजन, पालन और विध्वंस करते रहते हैं।
 
हिन्दू धर्म में त्रिदेव : शिवपुराण के अनुसार उक्त त्रिदेव के जनक हैं सदाशिव और दुर्गा। सदाशिव और दुर्गा के जनक हैं परब्रह्म परमेश्वर। उक्त त्रिदेव की पत्नियां हैं- सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती। 
 
1. ब्रह्मा : ब्रह्मा को मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीव जगत की सृष्टि करने वाला माना गया है। वे सभी के पिता हैं। उनके 10 पुत्रों से ही मानव सृष्टि का विकास हुआ। ब्रह्मा की प्रथम पत्नी का नाम सावित्री, दूसरी का नाम गायत्री है। सरस्वती को भी ब्रह्मा की पत्नी माना गया है, लेकिन यह शोध का विषय है। भृगु, अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि उनके पुत्र हैं। ब्रह्मा के पुत्र भृगु को विष्णु का श्वसुर और शिव का साढू माना जाता है।
 
2. विष्णु : ब्रह्मा के काल में हुए भगवान विष्णु को पालनहार माना जाता है। विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र भृगु की पुत्री लक्ष्मी से विवाह किया था। हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के 3 मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। उनके मुख्यत: 4 पुत्र हैं- आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत। 
 
3. शिव : भगवान शिव को त्रिदेवों में सर्वोच्च माना गया है। वे देवों के देव महादेव हैं। सबसे पहले उनका विवाह सती से हुआ। सती के यज्ञ में कूदकर दाह करने के बाद उनका विवाह पार्वती से हुआ। पार्वती ही पिछले जन्म में सती थीं। फिर उनका विवाह उमा और फिर महाकाली से हुआ। पार्वती से उनको 2 पुत्र मिले- गणेश और कार्तिकेय। इसके अलावा शिव के सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा नाम के पुत्र तथा 1 पुत्री भी थी। सती के ही 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से विख्यात हुए और उन्हीं को 9 दुर्गा कहा गया है। आदिशक्ति मां दुर्गा और पार्वती अलग-अलग हैं। दुर्गा सर्वोच्च शक्ति हैं।
 
उल्लेखनीय है कि राम, कृष्ण और बुद्ध आदि देवता नहीं, भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से हैं। उसी तरह भगवान शिव के 28 अवतार हुए हैं, जैसे हनुमानजी, शम्भू, धूम्रवान, महाकाल, पिंगल, कपाली, दुर्वासा, महेश, चंड, वृषभ, पिप्पलाद, बैद्यनाथ, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य आदि।
 
ऐसा माना जाता है कि प्रारंभिक काल में ये तीनों देवता धरती पर ही भिन्न-भिन्न क्षेत्र में रहते थे। हिमालय के दक्षिण में भगवान विष्णु क्षीरसागर नामक समुद्र में और हिमालय के उत्तर में इरावत नामक प्रदेश में भगवान ब्रह्मा रहते थे जबकि भगवान शिव स्वयं हिमालय पर रहते थे। 
 
प्राचीनकाल में हिमालय को स्वर्ग, हिमालय से नीचे धरती और रेगिस्तानी क्षेत्रों को पाताल लोक कहा जाता था। इसी तरह हिमालय के ऊपर स्वर्ग और नीचे पाताल और नर्क की स्थिति बताई गई है।
 
उक्त काल में धरती पर आया-जाया करते थे देवी और देवता। उनका मनुष्यों से गहरा संपर्क था। वे मनुष्यों की इच्छा के अनुसार उनकी स्‍त्रियों से संपर्क पर उनको पुत्र लाभ देते थे। देवताओं से उत्पन्न पुत्रों को भी देवता ही माना जाता था, जैसे पवनपुत्र हनुमान और भीम। इसी तरह इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, अश्‍विनकुमार के पुत्र आदि देवताओं के पुत्र भी कई हुए हैं।
 
देवताओं से उत्पन्न पुत्रों में अपार शक्तियां होती थीं। वैसे प्रारंभिक काल में मुख्यत: 33 ही देवता थे। ब्रह्मा के पौत्र कश्यप से ही देवता और दैत्यों के कुल का निर्माण हुआ। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थीं।
 
ये 33 देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।
 
12 आदित्य : 1. अंशुमान, 2. अर्यमन, 3. इन्द्र, 4. त्वष्टा, 5. धातु, 6. पर्जन्य, 7. पूषा, 8. भग, 9. मित्र, 10. वरुण, 11. विवस्वान और 12. विष्णु।
 
8 वसु : 1. आप, 2. ध्रुव, 3. सोम, 4. धर, 5. अनिल, 6. अनल, 7. प्रत्युष और 8. प्रभाष।
 
11 रुद्र : 1. शम्भू, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व और 11. कपाली।
 
अन्य पुराणों में इनके नाम अलग हैं- मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज ये 11 रुद्र देव हैं। इनके पुराणों में अलग-अलग नाम मिलते हैं।
 
2 अश्विनी कुमार : 1. नासत्य और 2. दस्त्र। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के 2 पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते हैं।
 
अन्य देवी और देवता : इसके अलावा 49 मरुदगण, अर्यमा, नाग, हनुमान, भैरव, भैरवी, गणेश, कार्तिकेय, पवन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, विश्‍वदेव, चित्रगुप्त, यम, यमी, शनि, प्रजापति, सोम, त्वष्टा, ऋभु:, द्यौ:, पृथ्वी, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आप: सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पिंगला आदि।