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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

पिछला जन्म कैसे जानें, जानिए 8 तरीके...

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यह मेटर कॉपीराइट अपडेट वर्जन है। महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे कुंतीनंदन! तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं। तुझे नहीं याद होने के कारण तेरे लिए यह संसार नया और तू फिर से आसक्ति पाले बैठा है। 
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। -गीता 2/22
अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है।
 
यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम पुनर्जन्‍म के सिद्धांत को नहीं मानते हैं। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिन्दू, जैन और बौद्ध ये तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। हम आपको आपके पिछला जन्म जानने के वह तरीके बताएंगे जिन्हें आजमाकर आप अपना पिछला जन्म जान सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको किसी योग्य जानकार या गुरु की जरूरत होगी।
 
योरप और भारत में ऐसे ढेरों किस्से मिल जाएंगे जिनको अपने पिछले जन्म की याद है। विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है, लेकिन वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है। पूर्व जन्म के कई वृत्तांत पत्र-पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित हुए हैं। इस विषय पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं और बहुत सी फिल्में भी बनी है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पायथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। दुनिया की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं भी पुनर्जन्म में विश्वास करती थीं। 
 
पुनर्जन्म पर कई लोगों और संस्थाओं ने शोध किए हैं। ओशो रजनीश ने पुनर्जन्म पर बहु‍त अच्छे प्रवचन दिए हैं। उन्होंने खुद के भी पिछले जन्मों के बारे में विस्तार से बताया है। हालांकि आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताब माना गया है।
 
वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है। उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अनुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स में संजोते हुए लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं।
 
इसी प्रकार बेंगलुरु की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा इस विषय पर शोध किया गया था। उन्होंने अपने इस शोध को एक किताब का रूप दिया जिसका नाम है- 'श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ कैसेज इन इंडियास।' इस किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
 
इसी प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है जिससे पुनर्जन्म होने की पुष्टि होती है। वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' ने एक किताब लिखी है, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।' इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' के अलावा उक्त दो किताबें जरूर पढ़ना चाहिए।
 
चार उदाहरण प्रस्तुत हैं...
1.शांतनु : पितामह भीष्म के पिता का नाम शांतनु था। उनका पहला विवाह गंगा से हुआ था। पूर्व जन्म में शांतनु राजा महाभिष थे। उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करके स्वर्ग प्राप्त किया। एक दिन बहुत से देवता और राजर्षि, जिसमें महाभिष भी थे, ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित थे। उसी समय वहां गंगा का आना हुआ और गंगा को देखकर राजा मोहित हो गए और एकटक उन्हें देखने लगे। तब ब्रह्माजी ने कहा कि महाभिष, तुम मृत्युलोक जाओ। जिस गंगा को तुम देख रहे हो, वह तुम्हारा अप्रिय करेगी और तुम जब उस पर क्रोध करोगे, तब इस शाप से मुक्त हो जाओगे।
 
2.भीष्म : हिन्दू धर्म में 33 प्रमुख देवता हैं। उनमें 8 वसु भी हैं। उन्हीं 8 वसुओं ने गंगा की कोख से जन्म लिया थे जिनको गंगा नदी में बहाती जा रही थी, लेकिन गंगा के 8वें पुत्र को राजा शांतनु ने नहीं बहाने दिया। इन आठों को गुरु वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। गंगा ने अपने सातों पुत्रों को जन्म लेते ही मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया था, लेकिन 8वां पु‍त्र रह गया। यही 8वां पुत्र भीष्म कहलाया। 
 
3.विदुर : यमराज को ऋषि मांडव्य ने श्राप दिया था जिसके चलते यमराज को मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। विदुर को यमराज का अवतार माना जाता है। ये धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र में निपुण थे। उन्होंने जीवनभर कुरु वंश के हित के लिए कार्य किया।
 
4.गौतम बुद्ध : कहते हैं कि गौतम बुद्ध जब बुद्धत्व प्राप्त कर रहे थे तब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त करने के पहले पिछले कई जन्मों का स्मरण हुआ था। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियां जातक कथाओं द्वारा जानी जाती हैं।
 
आठ कारणों से लेती आत्मा पुनर्जन्म:-
1. भगवान की आज्ञा से : भगवान किसी विशेष कार्य के लिए महात्माओं और दिव्य पुरुषों की आत्माओं को पुन: जन्म लेने की आज्ञा देते हैं।
2. पुण्य समाप्त हो जाने पर : संसार में किए गए पुण्य कर्म के प्रभाव से व्यक्ति की आत्मा स्वर्ग में सुख भोगती है और जब तक पुण्य कर्मों का प्रभाव रहता है, वह आत्मा दैवीय सुख प्राप्त करती है। जब पुण्य कर्मों का प्रभाव खत्म हो जाता है तो उसे पुन: जन्म लेना होता है।
3. पुण्य फल भोगने के लिए : कभी-कभी किसी व्यक्ति द्वारा अत्यधिक पुण्य कर्म किए जाते हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है, तब उन पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए आत्मा पुन: जन्म लेती है।
4. पाप का फल भोगने के लिए। 
5. बदला लेने के लिए : आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है। यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म अवश्य लेती है।
6. बदला चुकाने के लिए। 
7. अकाल मृत्यु हो जाने पर। 
8. अपूर्ण साधना को पूर्ण करने के लिए। 
यह कॉपीराइट अपडेट मेटर है। 
 
पिछला जन्म जानने का पहला तरीका...

जाति स्मरण का प्रयोग : इसके बारे में तो आपने पढ़ा ही होगा। जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाए। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।
 
क्यों जरूरी ध्यान : ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।
 
सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक या गुरु से अच्‍छे से सिखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।
 
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पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग : योग में अ‍ष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।
 
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सम्मोहन क्रिया : सम्मोहन क्रिया से जाना जा सकता है पुनर्जन्म। ब्रिटेन में भी जब कुछ लोगों को सम्मोहित किया गया तो उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाएं स्मरण हो आईं। इसी तरह जब ब्रिटेन के एक व्यक्ति को सम्मोहित किया गया तो उसने बताया कि उसका पूर्व जन्म में नाम जान रैफल था। माना जाता है कि मनुष्य अगर प्रयास करे वर्तमान जीवन से पहले के 9 जन्मों तक के बारे में जान सकता। हालांकि इसके लिए एक प्रशिक्षित गुरु और कठिन अभ्यास की जरूरत पड़ती है। 
भारतीय ऋषियों ने सम्मोहन को योगनिद्रा कहा है। सम्मोहन की प्रकिया आप खुद भी कर सकते हैं इसे स्वसम्मोहन कहा जाता है। दूसरों के द्वारा भी आप सम्मोहन की स्थिति में पहुंच सकते हैं इसे परसम्मोहन कहा जाता है और तीसरा तरीका है योग है जिसमें त्राटक द्वारा व्यक्ति सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है। सम्मोहन के द्वारा आप गहरी निद्रा में पहुंच जाते हैं और अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को जाग्रत कर सकते हैं।
 
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कायोत्सर्ग विधि : सम्मोहन के अलावा कायोत्सर्ग विधि द्वारा भी पुर्वजन्म को जाना जा सकता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है। कायोत्सर्ग शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करने की प्रक्रिया है।

इस प्रक्रिया में व्यक्ति की शरीर की चंचलता दूर होकर शरीर स्थिर होने लगता है। शरीर का मोह और सांसारिक बंधन ढीला पड़ने लगता है और शरीर एवं आत्मा के अलग होने का एहसास होता है। इसके बाद व्यक्ति पूर्वजन्म की घटनाओं के बीच पहुंच जाता है।
 
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अनुप्रेक्षा विधि : सम्मोहन और कायोत्सर्ग के अलावा अलाव पूर्वजन्म की स्मृतियों में प्रवेश करने का एक तरीका अनुप्रेक्षा है। जैन परंपरा में बताया गया है कि अनुप्रेक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्रयोग से व्यक्ति स्वतः सुझाव और बार-बार भावना से पूर्वजन्म की स्मृति में प्रवेश कर जाता है।

अनुप्रेक्षा से भावधारा निर्मल बनती है। पवित्र चित्त का निर्माण होता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे ज्ञात भी नहीं रहता कि वह कहां है। अतीत की घटनाओं का अनुचिंतन करते-करते वे स्मृति पटल पर अंकित होने लगती है और साधक उनका साक्षात्कार करता है।
 
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पुनर्जन्म और ज्योतिष : कहते हैं कि कुंडली में आपके पिछले जन्म की स्थिति लिखी होती है। यह कि आप पिछले जन्म में क्या थे। कुंडली, हस्तरेखा या सामुद्रिक विद्या का जानकार व्यक्ति आपके पिछले जन्म की जानकारी के सूत्र बता सकता है।

ज्योतिष के अनुसार जातक के लग्न में उच्च या स्वराशि का बुध या चंद्र स्थिति हो तो यह उसके पूर्व जन्म में सद्गुणी व्यापारी (वैश्य) होने का सूचक है। किसी जातक के जन्म लग्न में मंगल उच्च राशि या स्वराशि में स्थित हो तो इसका अर्थ है कि वह पूर्व जन्म में क्षत्रिय योद्धा था। 
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है, जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो।
 
ज्योतिष धारणा के अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश माना जाता है। पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं, यह खुद का जीवन देखकर जाना जाता सकता है। 
 
हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाजा या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे, जब तक कि वह फूटता नहीं है। हो सकता है इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें।
 
कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है। 
 
जिस प्रकार इस संसार में आपाधापी और धक्का देकर अवसर छीन लेने की होड़ है उसी प्रकार सूक्ष्म जगत में धक्का देकर दुष्टात्मा श्रेष्ठ गर्भ छीन लेती है जिससे कोई दुष्ट चरित्र व्यक्ति किसी कुलीन और संस्कारित परिवार में जन्म ले लेता है, कोई गाली-गलौज करने वाला बालक अच्छे और कुलीन गर्भ में जन्म ले लेता है वहीं किसी असभ्य कुसंस्कारित माता के गर्भ से कोई शांत बालक जन्म ले लेता है।
 
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पुनर्जन्म और स्वप्न : व्यक्ति के मन या मस्तिष्क में उसके पूर्व जन्म की स्मृति सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहती है। यह स्मृति कभी स्वप्न में तो कभी जाग्रत में स्वत: ही प्रकट होती रहती है। व्यक्ति इस पर कभी ध्यान नहीं दे पाता है।
कभी वह स्वन्न में किसी ऐसे शहर, गांव, गलियों में घूम रहा होता है जिसे उसने इस जन्म में भले ही नहीं देखा हो। कभी किसी को स्वप्न में बार-बार उफनती नदी का दृश्य, तो किसी को हथकड़ी नजर आती है। यह अकारण नहीं है। कभी किसी जन्म में किसी व्यक्ति ने कोई दुष्कर्म किया होगा जिसकी स्मृति में उसके साथ हथकड़ी चलती रहती है। कहीं किसी जन्म की आत्महत्या की स्मृति व्यक्ति के साथ कभी रस्सी के रूप में तो कभी नदी के रूप में चलती रहती है। इसी तरह कोई स्थान उसे हमेशा दिखाई देता रहता है जिसका संबंध उसके पिछले जन्म से होता है। 
 
इसी तरह कभी जाग्रत अवस्था में भी व्यक्ति को कोई अनजाना व्यक्ति जाना-पहचाना लगता है। किसी गांव या शहर में वो कभी गया नहीं होगा, लेकिन वहां पहली बार जाने पर लगता होगा कि शायद वह पहले भी यहां आया था। कोई लगातार इस पर आंतरिक खोज करता रहे तो हो सकता है कि वह अपने पिछले जन्म का गांव, शहर या कोई एक घटना याद कर ले।
 
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पुनर्जन्म की स्मृति भुलाने का तरीका : उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए।
हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जोकि एक प्राकृति प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए। यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है तो समझों स्मृतियां भी मजबूत हो सकती है। व्यक्ति स्मृति मुक्त होता है तभी प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है। लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहित रहती है। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्त का उपाय है। 
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