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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014 (12:38 IST)

'डराने-धमकाने' से पढ़ाई में पिछड़ते हैं बच्चे

- नोमिया इकबाल (न्यूजबीट रिपोर्टर)

''डराने-धमकाने'' से पढ़ाई में पिछड़ते हैं बच्चे -
ब्रिटेन में करीब एक चौथाई किशोरों का कहना है कि दबंग बच्चों की बदमाशियों से उनकी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है, बल्कि उनके जीसीएसई के ग्रेड कम हो गए।
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जीसीएसई (जेनरल सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन) भारत के सीबीएसई की तरह ही इंग्लैंड में सेकेंडरी एजुकेशन से जुड़ी परीक्षा कराने वाली संस्था है। 13 से 18 साल के करीब 3,6000 छात्रों से बात कर तैयार की गई एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है।

'बुलीइंग' या डराने-धमकाने के खिलाफ काम करने वाले चैरिटी संस्था 'डिच द लेबल' का कहना है कि डराए-धमकाए गए 56 फीसदी बच्चे मानते हैं कि इससे उनकी पढ़ाई-लिखाई पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

अनुसंधान में ये बात सामने आई है कि ऐसे बच्चों को जीसीएसई में या तो 'डी' ग्रेड मिले या इससे भी खराब पोजिशन आई। ये भी पता चला कि सताए जाने वाले हर तीन में से एक बच्चे ने हताश होकर खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। इनमें से 10 फीसदी बच्चों ने आत्महत्या की कोशिश की है।

शारीरिक क्षति : 16 साल की रिबेका पार्किन ने बताया कि छह साल की उमर से ही उनके साथ 'बुलीइंग' हो रही है। पार्किन बताती हैं, 'स्कूल में बच्चे मुझे मूर्ख, बदसूरत और पागल कहकर चिढ़ाते थे। वे क्लास में मेरे ऊपर पानी भी फेंक दिया करते थे।
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वे बताती हैं, 'सोशल मीडिया पर लोग मुझसे घटिया बातें करते थे, एक लड़की ने तो मुझे पीटने तक की धमकी दे डाली। उसने लिखा, 'घबड़ाओ मत, मैं तुम्हें इतना पीटूंगी कि खून निकल आएगा'।'

रिबेका पार्किन ये स्वीकार करती हैं कि उस वक्त उनका साथ देने वाला कोई नहीं था और निराशा में वे सबसे पहले खुद को ही नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचती थीं। उन्होंने कहा, 'मैंने कई स्कूल बदले। मैं पढ़ाई में बिलकुल पिछड़ गई।'

रिबेका पर अपशब्दों और बुरे बर्ताव का असर ऐसा हुआ कि वे ऑटिज्म का शिकार हो गईं। ऑटिज्म यानि एक ऐसी शारीरिक अक्षमता जिसमें पीड़ित व्यक्ति दूसरों से काफी मुश्किल से संवाद कर पाता है।

वे बताती हैं, 'मैं कोई भी काम सामान्य तरीके से नहीं कर पाती था। स्कूल में बदमाश बच्चों के गुट में मैं फिट नहीं होती थी। इसलिए वे मुझे परेशान करते थे। धीरे धीरे में स्कूल के लोगों से भी मिलने जुलने में मुझे दिक्कत महसूस होने लगी।'

अब रिबेका ने जब से स्कूल छोड़ा है, उनके ग्रेड में सुधार आया है। अब वे 'बुलीइंग' के शिकार बच्चों की मदद करने वाली संस्थाओं की 'यूथ अम्बेसेडर' हैं।

अगले पन्ने पर स्कूल में खराब ग्रेड..


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स्कूल में खराब ग्रेड : 'डिच द लेबल' संस्था कहती है कि बच्चों के साथ बुरा बर्ताव लोगों पर अलग अलग तरीके से असर डालता है, लेकिन इस रिपोर्ट के अनुसार इसका असर काफी 'गहरा' हो सकता है।

चैरिटी संस्था के सीईओ लियम हैकेट्ट ने कहा, 'कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि स्कूल में बच्चों के बीच होने वाली 'बदमाशी' सामान्य बात है और इससे वे मानसिक और शारीरिक तौर से मजबूत बनते हैं। लेकिन हकीकत इसके विपरीत है और ये हकीकत इन आंकड़ों से के जरिए सामने आई है।'

सीईओ कहते हैं, 'अधिकांश बच्चों के लिए यह नुकसानदेह होता है और दीर्घकाल में इसके बुरे परिणाम सामने आते हैं।' अध्ययन में शामिल 83 फीसदी छात्रों ने कहा कि बुरे बर्ताव से उनका आत्म-विश्वास टूटा है।

लियम को उम्मीद है कि ये जानकारी समाज के उन स्कूलों की आंखें खोलेगी जो इस पर रोक के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे। वे कहते हैं, 'लगभग सभी स्कूलों को ग्रेड की चिंता होती है। इसलिए हमें ये आशा है कि इस जानकारी से वे अपने यहां पढ़ रहे बच्चों की भलाई और प्रदर्शन के प्रति जागरूक होंगे।'

उन्होंने दुख जताते हुए बताया, 'अधिकांश किशोर स्कूल में अपने साथ हुए बुरे बर्ताव के बारे में बात करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं।'

वे आगे कहते हैं, 'स्कूल में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है और सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए स्कूल को ज्यादा धन मुहैया करवाए।'

'शिक्षकों को अधिक अधिकार' : 'न्यूजबीट' को जारी किए गए एक बयान में शिक्षा विभाग ने कहा है, 'किसी भी बच्चे को स्कूल में अपशब्द और गलत बर्ताव का शिकार होने और इससे डरने की जरूरत नहीं है।'

'गलत व्यवहार और किसी किस्म के भेदभाव को सहन नहीं किया जाना चाहिए और प्रत्येक स्कूल को चाहिए कि वे कानून के तहत इसका निदान निकालें।'

बयान में आगे कहा गया है, 'हमने शिक्षकों को अधिक शक्ति दी है ताकि यदि स्कूल गेट से बाहर भी किसी बच्चे के साथ बदमाशी होती है तो वे इन आरोपों की जांच कर सकें। वे फोन से अनुचित तस्वीरें भी मिटा सकते हैं, और उसी दिन ऐसा करने वाले को पकड़ भी सकते हैं।'

शिक्षा विभाग ने कहा, 'हम कई तरह की ऐंटी बुलीइंग संस्थाओं को धन मुहैया करवा रहे हैं ताकि वे स्कूलों को इस समस्या से निपटने में मदद कर सकें और ऐसी घटना होने पर प्रभावशाली तरीके से इसका हल निकाल सकें।'