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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 26 अगस्त 2014 (13:16 IST)

'इन मदरसों में वंदे मातरम भी गाते हैं'

- सलमान रावी, सहारनपुर से

''इन मदरसों में वंदे मातरम भी गाते हैं'' -
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उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता महेंद्र सिंह मानते हैं की संघ परिवार मदरसों के बारे में अच्छी राय नहीं रखता। नागल के सुदूर बोह्दुपुर गाँव के निवासी महेंद्र कहते हैं कि विशेष तौर पर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चलने वाले मदरसों की तो यही छवि है।

ये कोई नई बात नहीं, नया यह है कि पिछले एक साल से महेंद्रसिंह अपने ही गाँव के एक मदरसे में पढ़ा रहे हैं। वही नहीं, उनके गांव के पास की पिंकी भी मदरसे में पढ़ाती हैं। हिन्दू शिक्षक और मदरसे में? सुनने में तो अटपटा लग सकता है क्योंकि मदरसों पर कट्टरवाद का प्रशिक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं।

लेकिन गहन छानबीन से पता चलता है मदरसों में भी, भारतीय समाज की तरह, काफी कुछ बदल रहा है।...और वहाँ पढ़ाने वाले हिन्दू शिक्षकों की भी संख्या बढ़ रही है।

आठ हज़ार मदरसे : अपने एक साल से ज्यादा के अनुभव को साझा करते हुए महेंद्रसिंह का कहना है कि उन्होंने मदरसों में कट्टरवाद का पाठ पढ़ाते हुए कभी किसी को नहीं देखा है। वे कहते हैं, "हम अपने मदरसों में वन्दे मातरम गाते हैं और भारत माता की जय-जयकार भी करते हैं। मदरसों में भारतीय संस्कृति की पढ़ाई की तरफ भी छात्रों का काफी रुझान है।"

महेंद्रसिंह का कहना है कि कुछ महीनों पहले संघ की बैठक में उनसे मदरसे में पढ़ाने को लेकर सवाल भी पूछे गए। महेंद्र कहते हैं, "लेकिन मैंने सब को बताया कि हिन्दुओं द्वारा संचालित कई ऐसे स्कूलों को मैं जानता हूँ जहाँ राष्ट्रीय गान या राष्ट्रीय गीत तक नहीं गाया जाता। मैंने संघ के लोगों को बताया कि मदरसों में हालात वैसे नहीं हैं जैसा प्रचारित किया जाता है।"
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जबरन धर्म परिवर्तन : पास के गाँव में पिंकी भी पढ़ाती हैं जो एक किसान परिवार से संबंध रखती हैं। उनका कहना है कि मदरसे में पढ़ाते हुए अब छह महीने हो गए हैं और इस दौरान ना तो उनके घर में किसी ने इसका विरोध किया ना समाज में।

मेरठ के सरावा गाँव के एक मदरसे में पढ़ाने वाली लड़की द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप लगाए जाने के बाद पश्चिमी उत्तरप्रदेश में मदरसों पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। आरोपों के बाद कुछ मुस्लिम संगठनों ने मदरसों में हिन्दू शिक्षकों को ना रखे जाने की मांग शुरू कर दी है। कुछ एक संगठनों ने मदरसों में हिन्दू महिला शिक्षकों को ना रखने की सलाह भी दे डाली है।

ज्यादा प्रोत्साहन : मगर उत्तरप्रदेश आधुनिक मदरसा शिक्षक संघ ने ऐसी मांगों का विरोध करते हुए कहा है कि मदरसों में हिन्दुओं का पढ़ाना एक अच्छी बात है और इसे ज्यादा प्रोत्साहन मिलना चाहिए ताकि छात्र समाज की सभी धाराओं को करीब से समझ सकें।

शिक्षक संघ के अध्यक्ष एजाज़ अहमद ने बीबीसी को बताया कि पूरे उत्तर प्रदेश में काफी संख्या में हिन्दू शिक्षक मदरसों में पढ़ा रहे हैं और किसी को ना तो मदरसों के संचालन से कोई शिकायत है और ना ही सहकर्मियों से।

मेरठ के ही ललियाना गाँव के मदरसा हदीस उल कुरान में विज्ञान पढ़ाने वाले नितिन का कहना है कि उन्हें जो इज्ज़त सहकर्मियों और छात्रों से मिलती है, उसकी वजह से अब वो मदरसे के अलावा कहीं और जाकर नहीं पढ़ाना चाहते।
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अपवाद मदरसे : नितिन पिछले चार सालों से इस मदरसे में पढ़ा रहे हैं। पहले वो एक निजी स्कूल में पढ़ाते थे। वे कहते हैं, "शुरू-शुरू में तो अजीब सा लगा। मगर अब मदरसे में पढ़ाना अच्छा लग रहा है।"

उनका कहना है कि मदरसों के बारे में जो आम धारणा बन गई है, वो ग़लत है क्योंकि शिक्षा को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए। मदरसा हदीस उल कुरान में हिंदी पढ़ाने वाले विनोद कुमार को लगता है कि सभी मदरसों को एक ही लाठी से नहीं हांका जा सकता है।

वो कहते हैं, "कुछ इक्का-दुक्का मदरसे अपवाद हों, ऐसा हो सकता है। मगर सब मदरसे ऐसे नहीं हैं। हम यहाँ इतने सालों से पढ़ा रहे हैं। हमें तो कुछ भी ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है। और जगहों की तरह यह मदरसा भी शिक्षा का केंद्र है और इन्हें भी उसी तरह देखा जाना चाहिए जैसा आप दूसरे शैक्षणिक संस्थाओं को देखते हैं।"

दाढ़ी वाले 'उस्ताद' : ललियाना गाँव के मदरसे के संचालक शकील अहमद कहते हैं कि उनके मदरसे में पढ़ाने वालों में 25 प्रतिशत हिन्दू हैं जो बड़े अहम विषय पढ़ाते हैं- जैसे गणित, विज्ञान, हिंदी और कंप्यूटर।

उनका कहना था कि इस मदरसे में हिन्दुओं के पढ़ाने का सिलसिला पिछले दस सालों से चल रहा है। मदरसों के बारे में आम तौर पर यह धारणा रही है कि यहाँ पढ़ाने वाले 'उस्ताद' दाढ़ी वाले, कुरता पायजामा और टोपी पहने हुए मौलवी साहब ही होंगे।

मगर अब यहाँ तिलक लगाकर पढ़ाने वाले भी नज़र आ रहे हैं। मदरसों का दशकों पुराना स्वरुप अब कुछ-कुछ बदल रहा है।