यह ना तो कोई विश्वविद्यालय है और ना ही मैनेजमेंट संस्थान मगर इसकी इमारत कई अच्छे विश्वविद्यालयों से विशाल दिखती है। सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच जारी हिंसा के खौफ के साए में जीने को मजबूर युवा इस इमारत में अपने भविष्य को संवारने का ख्वाब लिए जमा होते हैं।
बढ़ती बेरोजगारी और पलायन को रोकने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने एक अनोखी पहल की है। इस कस्बे के मुख्यालय में बेरोजगारों के लिए एक कॉलेज शुरू किया गया है।
इस कॉलेज का नाम है गुजर बसर कॉलेज यानी 'लाइवलीहुड कॉलेज'। प्रशासन का दावा है कि यह भारत का एकमात्र ऐसा कॉलेज है जो सिर्फ बेरोजगारों के लिए है।
इस महाविद्यालय में दाखिला लेने के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं है और यहाँ बेरोजगार युवकों और युवतियों को आजीविका के लिए तैयार किया जा रहा है।
शिक्षा : यहाँ दाखिला लिए कई युवक युवतियाँ ऐसे हैं जिन्होंने या तो पढ़ाई छोड़ दी है या फिर दूसरी कक्षा तक ही पढ़ पाए। बहुत सारे ऐसे भी हैं जो लिखना पढ़ना तो जानते हैं, लेकिन उनकी कोई शैक्षिक योग्यता नहीं है।
बस्तर के सुदूर इलाक़ों में रोजगार के संसाधनों का काफी अभाव है और यह कहा जा रहा है कि इसी अभाव और नक्सली हिंसा की वजह से इस इलाके से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। खास तौर पर दंतेवाड़ा और बीजापुर के सुदूर जंगली इलाकों में कई ऐसे गाँव हैं जो वीरान हो गए हैं क्योंकि वहां रहने वाले लोग अपने घर छोड़कर रोजी रोटी की तलाश में दूसरे इलाकों में चले गए हैं।
इस गुजर बसर कॉलेज में बीजापुर के आवापल्ली से आई रश्मि कुमारी ने बातचीत के दौरान बताया कि इस सुदूर अंचल में जिन्दगी काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा, 'शाम पांच बजे के बाद गाड़ियाँ नहीं चलती हैं। सूरज ढलते ही जिन्दगी थम जाती है।' रश्मि एक बेहतर भविष्य का सपना लिए दंतेवाड़ा चली आई।
कुआकोंडा के बीर नाथ कहते हैं कि वो एक ग़रीब आदिवासी किसान परिवार से आते हैं और उनके पिता उन्हें आगे पढ़ाने में अक्षम हैं। बीर नाथ ने कहा, 'ना साधन हैं ना रोजगार है। ऐसे में हम क्या करें। अब यहाँ कुछ काम सीख कर आजीविका चलाने की कोशिश करूंगा।'
रोजगार : अब दंतेवाड़ा का जिला प्रशासन चाहता है कि यहाँ से पलायन रुके और स्थानीय युवाओं को रोजगार मुहैया कराने का इंतजाम किया जाए।
गुजर बसर कॉलेज यानी आजीविका कॉलेज के परिकल्पना के बारे में चर्चा करते हुए दंतेवाड़ा के कलेक्टर ओम प्रकाश चौधरी ने कहा, 'बस्तर में अशिक्षा और बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है। यहाँ के लोग अच्छा रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसी को दिमाग में रखते हुए हमने सोचा कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कुछ हुनर भी सिखाया जाए जिससे वह आजीविका चला सकें।'
इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए पुराने महिला महाविद्यालय के भवन की मरम्मत कर वहाँ सुदूर इलाके से आए युवकों के रहने और पढ़ने का इंतजाम किया गया है।
इस योजना के लिए दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने 'इंडिया कैन' नाम की संस्था से करार किया है जिसके शिक्षक बच्चों को ना सिर्फ प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं बल्कि उन्हें शिक्षा भी दे रहे हैं।
इंडिया कैन के रोहित कहते हैं कि अब भारत सरकार से उन्हें एक प्रोजेक्ट की स्वीकृति मिली थी तो उन्होंने दंतेवाड़ा के कलेक्टर से मुलाकात की थी, इसी दौरान प्रशासन की तरफ से यह प्रस्ताव आया और इस पर काम शुरू हो गया। कम पढ़े लिखे बच्चों के लिए हाथ का हुनर सिखाने के अलावा दसवीं और बारवीं पास युवक और युवतियों को मैनेजमेंट और कंप्यूटर का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
'उम्मीद की किरण' : दंतेवाड़ा के कलेक्टर ने बीबीसी को बताया कि इन बेरोजगार युवकों को क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जा रहा है।
प्रशासन के एक अधिकारी नागेश ने बताया कि पहले सोलर पैनेल को ठीक करने बाहर से कारीगर आया करते थे। अब एक महीने के बाद दंतेवाड़ा इस स्थिति में है कि यहाँ के प्रशिक्षित युवक राज्य के दूसरे स्थानों पर जाकर इनकी मरम्मत का काम कर रहे हैं।
हाल ही में एल एंड टी और एस्सार जैसी कंपनियों ने इस बेरोजगार कॉलेज से प्रशिक्षित युवकों और युवतियों को अपने यहाँ रोजगार दिया है।
दक्षिण बस्तर के तनावपूर्ण माहौल और अभाव में जी रहे नौजवानों के लिए 'बेरोजगार कॉलेज' एक उम्मीद की किरण लेकर आया है। जैसे-जैसे इस गुजर बसर कॉलेज की खबर फैल रही है, वैसे-वैसे सुदूर इलाकों के नौजवान बेहतर जिन्दगी का सपना संजोए दंतेवाड़ा पहुँच रहे हैं।