पावन है गणतंत्र यह
- शिवशरण दुबे
पावन है गणतंत्र यह, करो खूब गुणगान।भाषण-बरसाकर बनो, वक्ता चतुर सुजान॥वक्ता चतुर सुजान, देश का गौरव गाओ।श्रोताओं का मान करो नारे लगवाओ॥इसी रीति से बनो सुनेता 'रामसुहावन'।कीर्ति-लाभ का समय सुहाना यह दिन पावन॥भाई तुमको यदि लगा, जन सेवा का रोग।प्रजातंत्र की ओट में, राजतंत्र को भोग॥राजतंत्र को भोग, मजे से कूटनीति कर।झण्डे-पण्डे देख, संभलकर राजनीति कर॥लाभ जहां हो वहीं, करो परमार्थ भलाई।चखो मलाई मस्त, देह के हित में भाई॥कथनी-करनी भिन्नता, कूटनीति का अंग।घोलो भाषण में चटक, देश-भक्ति का रंग॥देश-भक्ति का रंग, उलीचो श्रोताओं पर।स्वार्थ छिपाओ प्रबल, हृदय में संयम धरकर॥अगले दिन से तुम्हें, वहीं फिर मन की करनी।स्वार्थ-साधना सधे, भिन्न जब करनी-कथनी॥बोलो भ्रष्टाचार का, होवे सत्यानाश।भ्रष्टाचारी को मगर, सदा बिठाओ पास॥सदा बिठाओ पास, आंच उस पर न आए।करे ना कोई भूल, जांच उसकी करवाए॥करे आपकी मदद, पोल उसकी मत खोलो।है गणतंत्र महान, प्रेम से जय जय बोलो॥कर लो भ्रष्टाचार का, सामाजिक सम्मान।सुलभ कहां हैं आजकल, सदाचरण-ईमान॥सदाचरण-ईमान मिले तो खोट उछालो।बन जाओ विद्वान, बाल की खाल निकालो॥रखो सोच में लोच, उगाही दौलत भर लो।प्रजातंत्र को नोच, कामना पूरी कर लो॥