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गोपाष्टमी का विराट उत्सव

ब्रह्माण्ड पुराण में गोसावित्री-स्तोत्र

Gopashtmee | गोपाष्टमी का विराट उत्सव
- आचार्य गोविंद बल्लभ जोशी
ND

मुक्तिदायिनी गौमाता को नमस्कार
जिस प्रकार कार्तिक कृष्ण पक्ष में पर्व एवं त्योहारों की धूम रहती है उसी प्रकार शुक्ल पक्ष भी अनेक तिथि पर्वों के उत्सवों से भरपूर रहता है। 9 नवंबर को विनायक चतुर्थी व्रत से श्रद्धालु रिद्धि-सिद्धि के स्वामी गणेश जी की विशेष आराधना से उनकी कृपा प्राप्त की तो 10 नवंबर से सूर्य षष्ठी व्रत यानी छठ पर्व की धूम रही जो इस बार तिथि वृद्धि के कारण तीन दिन चली तथा 12 नवंबर को प्रातः उदय होते सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न हुई।

13 नवंबर को कृतयुगादि का स्मरण करते हुए विद्वतजन भारतीय ज्ञान विज्ञान की प्राचीन काल गणना पर गोष्ठियों द्वारा लोगों को चारों युगों की अवस्था एवं कालखंड का बोध कराया। 14 नवंबर गोपाष्टमी का विराट उत्सव अनेकों जगह श्रद्धा-भक्ति से मनाया जाएगा।

गोशालाओं में गोमाता का पूजन कृषक परिवारों में गोपाष्टमी पर गौपूजन मंदिर में गौ महात्म्य एवं कथाओं के द्वारा गौमाता के प्रति भारतीय जनमानस में मातृभाव के बारे में संतजनों के प्रवचन होंगे। वस्ततुः गौ को भारत का जनमानस माता के रूप में मानता है।

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इस बारे में वेदशास्त्रों, धर्मग्रंथों में क्या कहा गया, ऋषिमुनियों और संतजनों ने गौमाता की जिस कृपा को प्राप्त किया उनके अनुभव ये सभी तत्व अंश रूप में यहाँ सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत किए जा रहे हैं। जिससे सूत्र रूप में ही सही लेकिन बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है।

ब्रह्माण्ड पुराण में गोसावित्री-स्तोत्
अखिल विश्व के पालक देवाधिदेव नारायण! आपके चरणों में मेरा प्रणाम है। पूर्वकाल में भगवान्‌ व्यासदेव ने जिस गोसावित्री-स्तोत्र को कहा था, उसी को मैं सुनाता हूँ। यह गौओं का स्तोत्र समस्त पापों का नाश करने वाला, संपूर्ण अभिलषित पदार्थों को देने वाला, दिव्य एवं समस्त कल्याणों का करने वाला है।

- गौ के सींगों के अग्रभाग में साक्षात्‌ जनार्दन विष्णुस्वरूप भगवान वेदव्यास रमण करते हैं।
- उसके सींगों की जड़में देवी पार्वती और सींगों के मध्यभागों में भगवान सदाशिव विराजमान रहते हैं।

- उसके मस्तक में ब्रह्मा, कंधे में बृहस्पति, ललाट में वृषभारूढ़ भगवान्‌ शंकर, कानों में अश्विनीकुमार तथा नेत्रों में सूर्य और चंद्रमा रहते हैं।
- दाँतों में समस्त ऋषिगण, जीभ में देवी सरस्वती तथा वक्षःस्थल में एवं पिंडलियों में सारे देवता निवास करते हैं।

ND
- गौ के खुरों के मध्य भाग में गंधर्व, अग्रभाग में चंद्रमा एवं भगवान्‌ अनंत तथा पिछले भाग में मुख्य अप्सराओं का स्थान है।
- उसके पीछे के भाग (नितंब) में पितृगणों का तथा भृकुटिमूल में तीनों गुणों का निवास बताया गया है।

- उसके रोमकूपों में ऋषिगण तथा चमड़ी में प्रजापति निवास करते हैं।
- गौ के उसके थूहे में नक्षत्रोंसहित श्रुतिलोक, पीठ में सूर्यतनय यमराज, अपान देश में संपूर्ण तीर्थ एवं गोमूत्र में साक्षात्‌ गंगा विराजती हैं।

- उसकी दृष्टि, पीठ एवं गोबर में स्वयं लक्ष्मीजी निवास करती हैं।
- नथुनों में अश्विनीकुमारों का एवं होठों में भगवती चंडिका का वास है।

- गौओं के जो स्तन हैं, वे जल से पूर्ण चारों समुद्र हैं।
- उनके रंभाने में देवी सावित्री तथा हुंकार में प्रजापतिका वास है।

इनता ही नहीं समस्त गौएँ साक्षात्‌ विष्णुरूप हैं, उनके संपूर्ण अड़ों में भगवान्‌ केशव विराजमान रहते हैं।