शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024
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Written By ND

त्रेतायुग से स्थापित है परशुराम पर्वत

माँ नर्मदा ने पहुँचकर बनाया परशुराम कुण्ड

त्रेतायुग से स्थापित है परशुराम पर्वत -
- कृष्ण गिरि गोस्वामी

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उपनगरीय क्षेत्र राँझी से पाँच किमी दूरी पर ग्राम मटामर गाँव में परशुराम पर्वत अपने अंदर त्रेतायुग का इतिहास छुपाए खड़ा है। लगभग एक हजार फुट ऊँची पहा़ड़ी पर बनी गुफा का रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया। ऐसा माना जाता है कि इस गुफा के ऊपर परशुराम जी के पैरों के निशान अभी तक मौजूद हैं। यह भी कहा जाता है कि पहाड़ी के नीचे बने परशुराम कुण्ड की गहराई आज तक कोई नहीं जान पाया।

वहाँ पर रहने वाली 70 वर्षीय वृद्ध महिला ने कहा कि वे इस गाँव में कई पीढि़यों से रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस पर्वत पर परशुराम जी रहते थे और वे तीन कदम में ही नर्मदा के सिद्ध घाट पहुँच जाते थे। उनका पहला कदम परशुराम पर्वत पर, दूसरा जीसीएफ की पहाड़ी स्थित दौरिया पाट और तीसरा कदम सिद्ध घाट पर पड़ता था। इन जगहों में आज भी उनके कदमों के निशान देखे जा सकते हैं।

इस पर्वत को लेकर ऐसे ही कई किस्से हैं। चलिये हम आपको यहाँ की रहस्यभरी वादियों से अवगत कराते हैं...

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पर्वत के नीचे बने माता के मंदिर का महत्व दूर-दूर तक विख्यात है। कहा जाता है कि झारखंडनी माता जिनको बच्चे नहीं होते उन पर विशेष कृपा करती हैं। यहाँ परशुराम जयंती और मकर संक्रांति पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें काफी संख्या में दूरदराज व आस-पास के क्षेत्रीयजन आते हैं। पहा़ड़ी पर जमे हुए बड़े-बड़े बैलेन्स रॉक स्वयं अपने युगों पुराने होने का परिचय दे रहे हैं।

वहाँ के एक बुजुर्ग ने बताया कि इस पहाड़ी पर शेर आज भी आता है, पर वो किसी को देखने नहीं मिलता। हाँ, उसकी आवाज जरूर सुनी जा सकती है।

अद्भुत चमत्कार :- यहीं के रहने वाले चंदन पटेल ने बताया कि अमावस्या और पूर्णिमा को यहाँ दिल दहला देने वाली घटनाएँ होती हैं। उनके अनुसार कुछ ही दिन पहले वे अपने दोस्तों के साथ परशुराम जी के मंदिर में रात्रि 11 बजे के करीब बैठे हुए थे, तभी अचानक पीपल के पेड़ से एक ज्वाला निकली और परशुराम पर्वत में जाकर समा गई। उन्होंने बताया कि ऐसी घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं, अगर इसके बारे में किसी से बताया जाए तो आज के दौर में कोई विश्वास नहीं करेगा।

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त्रेतायुग की कहानी :- परशुराम कुण्ड में त्रेतायुग में भगवान परशुराम जी ने पर्वत पर बनी गुफा में तप किया था। ऐसी किवदंती है कि इस पर्वत से रोज वे नर्मदा स्नान करने सिद्धघाट जाते थे। एक दिन मुर्गा रात्रि दो बजे के करीब बोल उठा तो परशुराम जी स्नान करने नर्मदा पहुँच गए। तब माँ नर्मदा ने उनसे कहा कि तुम रात में ही क्यों आ गए, तो उन्होंने कहा कि माता सुबह का मुर्गा तो बोल गया।

तब माँ नर्मदा ने कहा कि तुम अपना कमण्डल, धनुष्य-बाण और फरसा यहाँ रखकर अपने पर्वत पर लौट जाओ और जिस जगह तुम्हें ये सब सामान रखा हुआ मिले तो तुम समझ जाना कि मैं वहाँ पहुँच गई। जब परशुराम जी लौटकर आए तो उन्होंने देखा कि उनका कमण्डल व फरसा पर्वत के नीचे रखा हुआ है और वहाँ से एक जलधारा निकल रही है। उस दिन से इसका नाम परशुराम कुण्ड पड़ गया। बताया जाता है कि इस कुण्ड की गहराई इतनी ज्यादा है कि इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।

ऐसा माना जा रहा है कि पर्वत से लगी जमीन अब भू-माफियाओं की नजर में आ रही है, धीरे-धीरे यहाँ की जमीन पर कब्जा हो रहा है। जिसे प्रशासन को ध्यान देने की जरूर‍त है वर्ना इतने महत्वपूर्ण स्थान का नामोनिशान खत्म हो जाएगा। अगर शासन चाहे तो इस स्थान को पर्यटन स्थल में तब्दील किया जा सकता है।