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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ईसा मसीह और ईसाई धर्म

Jesus Christ | ईसा मसीह और ईसाई धर्म
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क्रिसमस का अर्थ होता है क्राइस्ट्स मास। क्रिसमस 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह ईसाइयों का महत्वपूर्ण त्योहार है। ईसा मसीह का जीवन आज तक विवाद का विषय रहा है। क्या है उनके जीवन की सच्चाई या सच में ही उनका जीवन वैसा ही रहा जैसा कि बाइबिल में बताया जाता है या कि कुछ और। आओ सत्य को जानने का प्रयास करें।

यीशु का जन्म : एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बेथलेहेम में हुआ। ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में दो दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। सत्य को खोजने की वृत्ति उनमें बचपन से ही थी। बाइबिल में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई ‍जिक्र नहीं मिलता, ऐसा माना जाता है। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे।

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सूली : सन 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुँचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। उनके शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्‍वासघात किया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। ईसा ने क्रूस पर लटकते समय ईश्वर से प्रार्थना की, 'हे प्रभु, क्रूस पर लटकाने वाले इन लोगों को क्षमा कर। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।'

यीशु के शिष्य : यीशु के कुल बारह शिष्य थे- 1. पीटर 2. एंड्रयू 3. जेम्स (जबेदी का बेटा) 4. जॉन 5. फिलिप 6. बर्थोलोमियू 7. मैथ्यू 8. थॉमस 9. जेम्स (अल्फाइयूज का बेटा), 10. संत जुदास 11. साइमन द जिलोट 12. मत्तिय्याह।

सूली के बाद ही उनके ‍शिष्य ईसा की वाणी लेकर 50 ईस्वी में हिन्दुस्तान आए थे। उनमें से एक 'थॉमस' ने ही भारत में ईसा के संदेश को फैलाया। उन्हीं की एक किताब है- 'ए गॉस्पेल ऑफ थॉमस'। चेन्नई शहर के सेंट थामस माऊंट पर 72 ईस्वी में थॉमस एक भील के भाले से मारे गए। मेरी मेग्दालिन भी ईसा की शिष्या थीं जिन्हें उनकी पत्नी बताए जाने के ‍पीछे विवाद हो चला है। उक्त गॉस्पल में मेरी मेग्दालिन के भी सूत्र हैं।

बाइबिल : बाइबल या बाइबिल का अर्थ किताब माना गया है। यह ईसाइयों का पवित्र धर्मग्रंथ है। इसमें ओल्ड टेस्टामेंट को भी शामिल किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट अर्थात पुराने सिद्धांत या नियम। इसमें यहूदी धर्म और यहूदी पौराणिक कहानियों, नियमों आदि बातों का वर्णन है। नए नियम के अंतर्गत ईसा के जीवन और दर्शन के बारे में उल्लेख है। इसमें खास तौर पर चार शुभ संदेश हैं जो ईसा के चार अनुयायियों मत्ती, लूका, युहन्ना और मरकुस द्वारा वर्णित हैं।
दा विंची कोड : उत्तर इजिप्ट (मिस्र) के एक शहर नाग हम्मदि के पास, सन 1945 में एक बर्तन में सुरक्षित रखे हुए 12 दस्तावेज मिले। बरसों असली दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद 'डैन ब्राउन' ने यह उपन्यास 'दा विंची कोड' लिखा। इन दस्तावेजों को गुह्य समूहों ने जीवित रखा था। विख्यात चित्रकार लिओनार्दो दा विंची ऐसे ही किसी गुह्य समूह के एक सदस्य थे इसलिए उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में कुछ सूत्र, कुछ इशारे छुपाए हैं जिन्हें अनकोड किया जा सकता है। इन सबको आधार बनाकर बनी है विवादित फिल्म 'दा विंची कोड।'

दि सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट...
स्वामी परमहंस योगानंद की किताब 'दि सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट: दि रिसरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू' में यह दावा किया गया है कि प्रभु यीशु ने भारत में कई वर्ष बिताए और यहाँ योग तथा ध्यान साधना की। इस पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि 13 से 30 वर्ष की अपनी उम्र के बीच ईसा मसीह ने भारत में काफी साल गुजारे।

स्वामीजी की बात को अगर सही माना जाए तो यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्वान भारतीय थे। पुस्तक में यह भी कहा गया है कि भारत से पहुँचे इन्हीं तीन विद्वानों ने यीशु का नाम 'ईसा' रखा था जिसका संस्कृत में अर्थ 'भगवान' होता है। इस संबंध में 'लॉस एंजिल्स टाइम्स' में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हो चुकी है। 'द गार्जियन' में भी इस पुस्तक के संबंध में छप चुका है।

एक्वारियन गॉस्पल : हॉलीवुड की निर्माणाधीन एक फिल्म ‘एक्वारियन गॉस्पल’ में ईसा मसीह को भारत भ्रमण करते हुए बताया गया है। उक्त फिल्म की कहानी बाइबल के उन 'लुप्त वर्षों' के बारे में है, जबकि ईसा मसीह दुनिया के भ्रमण पर निकले थे और इस दौरान उन्होंने बौद्ध मठों में रहने के अलावा जाति व्यवस्था में फैले अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध आवाज भी उठाई थी।

'एक्वारियन गॉस्पल' नामक इस फिल्म में ईसा मसीह का चित्रण पूर्वी देशों के धर्मों से प्रभावित एक धर्मात्मा व शिक्षक के रूप में किया गया है। फिल्म का शीर्षक एक शताब्दी पुरानी उस किताब से लिया गया है, जिसमें ईसाई धर्म की पूर्वी देशों में जड़ों के बारे में पड़ताल की गई थी। माना जाता है कि प्राचीन अरामैक भाषा में ईसा मसीह को येशुआ या जोशुआ के नाम से जाना जाता था। इसीलिए फिल्म की पटकथा में प्रभु ईसा मसीह द्वारा ‘जोशुआ’ के नाम से मध्य एशिया से भारत तक की यात्रा का वर्णन है।

फिफ्त गॉस्पल : ये फिदा हसनैन द्वारा लिखी गई एक किताब है जिसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी किताब 'अक्षरों की रासलीला' में विस्तार से किया है। ये किताब जीसस की जिन्दगी के उन पहलुओं की खोज करती है जिसको ईसाई जगत मानने से इंकार कर सकता है, मसलन कुँवारी माँ से जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे।

ऐसी मान्यता है कि उन्होंने नाथ सम्प्रदाय में भी दीक्षा ली थी। सूली के समय ईशा नाथ ने अपने प्राण समाधि में लगा दिए थे। वे समाधि में चले गए थे जिससे लोगों ने समझा कि वे मर गए। उन्हें मुर्दा समझकर कब्र में दफना दिया गया।

महाचेतना नाथ यहुदियों पर बहुत नाराज थे क्योंकि ईशा उनके शिष्य थे। महाचेतना नाथ ने ध्यान द्वारा देखा कि ईशा नाथ को कब्र में बहुत तकलीफ हो रही है तो वे अपनी स्थूल काया को हिमालय में छोड़कर इसराइल पहुँचे और जीसस को कब्र से निकाला। उन्होंने ईशा को समाधि से उठाया और उनके जख्म ठीक किए और उन्हें वापस भारत ले आए। हिमालय के निचले हिस्से में उनका आश्रम था जहाँ ईशा नाथ ने अनेक वर्षों तक जीवित रहने के बाद पहलगाम में समाधि ले ली।

उक्तरोक्त बातों में कितनी सच्चाई है यह हम नहीं जानते, लेकिन यह विचारणीय तथ्‍य है कि हमें यीशु के शिष्य 'थॉमस' की बातें मानना चाहिए या नहीं। और यह भी कि इस पर और शोध किए जाने की जरूरत है।