विष्णु तीर्थ की नारायण कुटी
विश्व प्रसिद्ध साधना केंद्र
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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' धर्मयात्रा की इस बार की कड़ी में हम आपको ले चलते हैं देवास के ऐसे विश्व प्रसिद्ध साधना केंद्र पर जहां कभी राजा विक्रमादित्य के भाई ऋषि भर्तहरी ने साधना की थी। उक्त साधना स्थान आज नारायण कुटी के नाम से प्रसिद्ध है।इस साधना कुटी को ब्रह्मलीन गुरुदेव स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज ने सन् 1951 में अपनी तपोभूमि बनाया। इसके पूर्व यहां स्वामी नारायण सरस्वती नामक एक महात्मा का निवास था, जिस कारण उक्त स्थान का नाम नारायण कुटी हो गया। 1950
में नारायण सरस्वती के ब्रह्मलीन हो जाने पर कुछ समय तक यह कुटी रिक्त पड़ी रही। इसके बाद भक्तों के अनुरोध पर स्वामी विष्णु तीर्थ ने इसे अपना निवास बना लिया। इससे पूर्व स्वामी जी ने 1940 में स्वामी शंकर पुरुषोत्तमतीर्थ से हरिद्वार में दीक्षा ग्रहण कर समूचे भारत का भ्रमण किया।कुटी के समीप ही गुरु महाराज ने साधना के लिए गुफा का निर्माण भी कराया। ऐसी मान्यता है कि उक्त गुफा में आज भी कोई दो साधु साधनारत है। कुटी के समीप ही भगवान शंकर का मंदिर है। स्वामी जी के सानिध्य के चलते धीरे-धीरे यह साधना स्थल संन्यास, दीक्षा और शक्तिपात का आश्रम बनता गया। बाद में उक्त कुटिया के आस-पास संन्यासियों और अतिथियों के लिए निर्माण कार्य किया गया।
गुरु परंपरा : सर्वप्रथम श्रीगंगाधर तीर्थ ने शक्तिपात परंपरा की शुरुआत की थी। इनके बाद क्रमश: स्वामी नारायण तीर्थ देव, स्वामी शंकर तीर्थ पुरुषोत्तम, गोगानंद महाराज, स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज और शिवोम तीर्थ महाराज। उक्त सभी संन्यास, दीक्षा देने वाले गुरु थे। शिवोम तीर्थ महाराज से दीक्षा लेकर वर्तमान में यहां के पीठाधीश है स्वामी सुरेशानंद महाराज।स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज के प्रमुख शिष्य थे स्वामी शिवोम तीर्थ महाराज, जिन्होंने उक्त आश्रम की परंपरा का देश भर में प्रचार-प्रसार किया। कुछ माह पूर्व ही शिवोम तीर्थ भी ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने विष्णु तीर्थ महाराज से सन् 1959 को शक्तिपात द्वारा दीक्षा ली थी।आश्रम से जुड़े सैकड़ों साधकों के लिए यह एक ध्यान, भजन, पूजन और गुरु वंदना का केंद्र है। भक्तों की मान्यता है कि विष्णु तीर्थ महाराज आंतरिक शक्तियों से संपन्न एक ऐसे गुरु है, जो साधकों के लिए आज भी उपलब्ध है। उनके चमत्कार के अनेक किस्से है। वह जो भी व्यक्ति मुमुक्षु होता था उसे शक्तिपात द्वारा दीक्षा देते थे। शक्तिपात के बाद उक्त व्यक्ति के मन में संसार के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता है।सन् 1969 में विष्णु तीर्थ महाराज ने ऋषिकेश में गंगा के किनारे नश्वर देह का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। आज देश और देश के बाहर भी इस आश्रम की अनेक शाखाएं है : जैसे- इंदौर, रायपुर, रायसेन, डबरा, मुम्बई, हरियाणा, कर्नाटक और देश के बाहर अमेरिका तथा ब्रिटेन में उक्त कुटी के साधकों की जमात है।कैसे पहुंचे : इंदौर से 35 किलोमीटर दूर देवास में ट्रेन या बस द्वारा पहुंचा जा सकता है। जहां पर माताजी की टेकरी के नीचे स्थित है नारायण कुटी।