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Written By Author सुरेश डुग्गर
Last Updated : गुरुवार, 24 नवंबर 2016 (00:44 IST)

मच्छेल सेक्टर सिरदर्द है भारतीय सेना के लिए

मच्छेल सेक्टर सिरदर्द है भारतीय सेना के लिए - Terrorist, LOC, Machil sector, Indian Army
श्रीनगर। एलओसी पर भारत के तीन सैनिकों की शहादत के बाद मच्छेल सेक्टर एक बार फिर चर्चा में हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मच्छेल सेक्टर भारतीय सेना के लिए सिरदर्द की तरह है। एलओसी के पार से कुपवाड़ा जिला में घुसपैठ का आतंकियों के लिए यह एक आसान रास्ता है। 
समुद्र तल से 6,500 फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित इस सेक्टर में घने जंगल आतंकियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। वे आसानी से इसमें छिप जाते हैं। इसके अलावा यहां का मौसम और इलाके की बनावट भी आतंकियों के पक्ष में जाती है। यहां कुपवाड़ा शहर से महज 50-80 किमी की दूरी पर भारत और पाकिस्तान के बंकर्स एक-दूसरे के काफी करीब तैनात हैं।
 
अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक आतंकी कुपवाड़ा और लोलाब घाटी में पहुंचने के लिए घुसपैठ के कई रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। सितंबर में भारतीय सेना की ओर से किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीजफायर उल्लंघन के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई है। 29 अक्टूबर को भी भारत का एक जवान शहीद हो गया था। पिछले कुछ महीनों में इस इलाके से चार से ज्यादा घुसपैठ के प्रयास हुए हैं।
 
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के मच्छेल सेक्टर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में तीन जवान शहीद हो गए। एलओसी पर स्थित मच्छेल हमेशा से इंडियन आर्मी के लिए सिरदर्द वाला इलाका रहा है। मच्छेल कुपवाड़ा में स्थित है और लोलाब घाटी के करीब है।
 
पिछले माह में मनदीप सिंह के शव साथ मच्छेल में ही पाकिस्तान से आए आतंकियों ने बर्बर व्यवहार किया था। इससे पहले छह जनवरी 2013 को पुंछ में जवान हेमराज का सिर काट कर पाक आतंकी अपने साथ ले गए थे। मच्छेल से ही आतंकी दाखिल होने की कोशिशों में लगे रहते हैं।

नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी की ओर से जानकारी दी गई है कि पिछले तीन माह में अकेले मच्छेल में आतंकियों ने दर्जनों बार घुसपैठ की कोशिशें की हैं। मच्छेल काफी मुश्किल इलाका है क्योंकि यहां पर घना जंगल है और मौसम हमेशा खराब रहता है।
 
मच्छेल 6,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पाक से आने वाले आतंकी इसी रास्ते का प्रयोग जम्मू कश्मीर में पहुंचने के लिए करते हैं। घना जंगल अक्सर सेना और सुरक्षाबलों के लिए मुश्किलें पैदा करता है। पाक के आतंकी जब कुपवाड़ा के मच्छेल में आते हैं तो इस घने जंगल को अपने छिपने के लिए प्रयोग करते हैं।
 
कुपवाड़ा के मच्छेल से एलओसी सिर्फ 50 से 80 किमी की दूरी पर ही है। इस वर्ष जुलाई में घाटी में विरोध प्रदर्शन के शुरू होने से पहले जम्मू-कश्मीर सरकार की एक एजेंसी ने हंडवाड़ा में घुसपैठ के दो नए ठिकानों का पता लगाया था।
 
काउबोल गली, सरदारी, सोनार, केल, राट्टा पानी, शार्दी, तेजियान, दुधीनियाल, काटवाड़ा, जूरा और लिपा घाटी के तौर पर इनकी पहचान की गई थी। ये आतंकियों के लिए सबसे सक्रिय रास्ते हैं और वे इनका प्रयोग कुपवाड़ा, बांडीपोरा और बारामुल्ला जिले में दाखिल होने के लिए करते हैं। आतंकी शार्दी, राट्टा पानी, केल, तेजियान और दुधीनियाल के रास्ते से एलओसी पार करते हैं और फिर मच्छेल में दाखिल होते हैं।
 
याद रहे पिछले वर्ष दिसंबर में माछिल में ही 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष महादिक आतंकियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। आतंकी हाइहामा और कलारुस के घने जंगलों में छिपे थे और उनकी तलाश शुरू की गई। इस स्पेशल ऑपरेशन में 700 सैनिक और स्पेशल फोर्सेज के पैराट्रूपर्स की मदद तक ली गई थी। कई विदेशी आतंकी कुपवाड़ा में मौजूद हैं और वह माछिल के जरिए घाटी में दाखिल होने की कोशिशें करते हैं।
 
 
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि कई ऐसे स्थान हैं जहां आतंकी या पाकिस्तानी सैनिक हाजी नाका से माछिल तक आसानी से भारतीय सैनिकों की नजर बचाकर घुस जाते हैं। अगस्त में बीएसएफ के तीन जवान इस इलाके में शहीद हो गए थे। भारत के आखिरी गांव से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर एलओसी है और दूसरी तरफ केल है, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि वह आतंकियों का सबसे बड़ा लॉन्चपैड है।
 
जुलाई में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद आतंकियों को और मौके हाथ लग गए हैं। बुरहान की मौत के बाद घाटी में लोग बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सेना का सारा ध्यान प्रदर्शनकारियों से निपटने पर लगा है। ऐसे में आतंकियों के खिलाफ चलाए जाने वाले ऑपरेशन में कमी आई है, जिसका फायदा आतंकी उठा रहे हैं।
 
अधिकारियों का कहना है कि एलओसी पर गर्मागर्मी से भी आतंकियों को फायदा हुआ है क्योंकि एलओसी पर गोलीबारी के बीच घुसपैठ की रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाना मुश्किल है। 2010 में माछिल उस समय चर्चा में आया था, जब एक मुठभेड़ में सेना ने तीन ग्रामीणों को मार दिया था। इसके बाद कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था और सेना ने मुठभेड़ की जांच का आदेश दिया था। जांच में मुठभेड़ फर्जी निकला था और एक पूर्व कमांडिंग ऑफिसर समेत छ: जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।