लताजी से मिलना चाहती है इन्दौर की सुरीली पूर्वा!
-संजय पटेल
भारतरत्न लता मंगेशकर की जन्मस्थली इन्दौर की सुरीली बेटी पूर्वा कवठेकर एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है। पांच बरस की उम्र से ही उसने सुर साधना शुरू कर दिया। पिता प्रदीप और माँ राजश्री कवठेकर की इकलौटी बेटी पूर्वा से लताजी के 87वें जन्मदिवस मुलाक़ात हुई। वह इन्दौर के ओल्ड जीडीसी की बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है।
माँ राजश्री बताती हैं कि जब पूर्वा 3 बरस की थी उस दिन शाम के समय मैं पूजा में व्यस्त थी और रामरक्षा स्तोत्र का पाठ कर रही थी। इतने में किसी का फ़ोन आया तो उन्हें पूजा में उठकर फ़ोन लेना पड़ा। फ़ोन ख़त्म करने के बाद ये देखकर वे आश्चर्यचकित हो गईं उनकी बेटी रामरक्षा का स-स्वर पाठ कर रही है।
राजश्रीजी बताती हैं कि जब 5 बरस की उम्र में उसे इन्दौर के सेवा-मंदिर दृष्टिहीन विद्यालय में भर्ती करवाया गया तो वहाँ के निदेशक श्री जैन ने कहा कि पढ़ाई के अलावा इसे किसी और विधा से जुड़ना चाहिए तो हमने पूर्वा को संगीत से जोड़ा। पूर्वा सौभाग्यशाली रही है कि उसे शुरू से सुचिता कविश्वर, कविता पेंढ़ारकर, सुपर्णा वाड़, पं. सुधाकर देवळे और पं. शशिकांत ताम्बे जैसे क़ाबिल गुरुजनों का सान्निध्य मिला है।
आपको बता दें कि पूर्वा बचपन से ही दृष्टिहीन है, लेकिन संगीत उसे ऐसे उजाले में ले जाता है जिससे एक सामान्य व्यक्ति महरूम होता है। वह उजाला है सुरों का, संगीत के आनंद का, किसी बंदिश या गीत के रियाज़ का और उस अलौकिक सुख का जो अंतत: मन के सुकून का सबब होता है।
(पूर्वा का साक्षात्कार देखें)
ये पूछा जाने पर कि लताजी के जन्मदिन पर क्या कहना चाहती हो; पूर्वा ने मुस्कुराते हुए कहा मैंने कभी सरस्वती को देखा नहीं लेकिन एक बार लता दीदी को हाथ लगाकर महसूस करना चाहती हूँ कि कि ज्ञान और संगीत की देवी कैसी है। पूर्वा का आत्मविश्वास और संगीत की सूझ बेजोड़ है। वह अकेले रिक्शे से कॉलेज आती-जाती है और हमेशा क्लास में बेहतरीन परिणाम लाती है। इसमें कोई शक नहीं कि उसकी आवाज़ में एक करिश्माई रूहानियत है और यदि उसे माकूल तरबियत और अवसर मिले तो इन्दौर को एक और लता की जन्मस्थली होने का बड़ाभाग मिल सकता है।
सुरीली पूर्वा के लताजी समर्पित 5 गीत