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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014 (19:23 IST)

अब बादलों को देखकर ही डर जाते हैं कश्मीरी

अब बादलों को देखकर ही डर जाते हैं कश्मीरी -
श्रीनगर। जिन बादलों को देखकर कभी कश्मीरवासी खुशी से झूम उठते थे, अब वे ही बादल उन्हें डरा रहे हैं। हालत यह है कि जब-जब आसमान पर बादलों का डेरा होने लगता है कश्मीरियों के दिल में आशंकाओं का घेरा बढ़ता जाता है। उनकी आंखों के सामने वे भयानक मंजर घूमने लगते हैं जब झेलम के पानी और बारिश ने श्रीनगर समेत कश्मीर के अन्य इलाकों में तबाही मचाते हुए कहर बरपाया था।
 
हालांकि बादलों से सभी को समस्या नहीं है। समस्या है तो उन कश्मीरियों को जो टेंटों में हैं। ये टेंट वाटर प्रूफ नहीं हैं। समस्या उन लोगों को है जो अभी भी खुले आसमान तले दिन और रात गुजारने को मजबूर हैं। सबसे बड़ी चिंता का विषय झेलम समेत उसकी सहायक नदियों के टूटे और तोड़े गए किनारों से है जिन्हें अभी तक भरा ही नहीं गया है। अनुमानतः 300 के करीब ऐसी दरारें हैं जो कश्मीरियों की जिंदगी में अभी भी भयानक दरार साबित हो रही हैं। 
पिछले तीन दिनों से राज्य के आसमान पर बादलों का डेरा है। बीच-बीच में बादल बरस भी रहे हैं। बरसते बादलों में वे परिवार बहुत मुश्किल में हैं जिनके घरों को बारिश का कहर ढेर कर चुका है। ऐसे लोग सिर्फ कश्मीर घाटी में ही नहीं हैं बल्कि राज्य के अन्य इलाकों में भी हैं। जम्मू, पुंछ, राजौरी, उधमपुर, रियासी और न जाने कितने जिले हैं, जहां ऐसे परिवारों की संख्या सैकड़ों में है जिनके सिर पर अब छत नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 12.5 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए थे और प्रभावित होने वाले मकानों की संख्या 2 से 3 लाख है।
 
इन परिवारों के लिए आने वाले दिन और मुश्किल भरे हैं। सरकार समेत अन्य संस्थाओं द्वारा कंबल और कुछ राहत सामग्री देकर अपने फर्ज की इतिश्री की जा चुकी है और सर्दियों की आहट उन्हें परेशान किए हुए है। वैसे इन इलाकों में रातें ठंडी होनी आरंभ हो चुकी हैं।
 
श्रीनगर के आसपास के इलाकों में भी ऐसी हालत उन क्षेत्रों की है, जहां विस्थापित शिविर लगाए गए हैं और उनमें वे लोग रहे हैं जिनके घर या तो हाल ही की बारिश और बाढ़ के कारण ढह चुके हैं या फिर जिनके घर अभी भी 3 से 4 फुट पानी में डूबे हुए हैं। जिन इलाकों में पानी भरा हुआ है उन घरों में लोग खतरे की आहट के कारण लौटने को तैयार नहीं हैं। इंजीनियरों के मुताबिक, इतने दिनों तक पानी में डूबे रहने के कारण घरों की नीवें कमजोर हो चुकी हैं और वे किसी भी समय गिर सकते हैं। ऐसे में पानी निकलने के बाद कई दिनों का इंतजार उन्हें करना होगा घर लौटने के लिए।
 
इससे भी बड़ी चिंता, झेलम समेत उसकी कई सहायक नदियों के टूटे हुए किनारे हैं। ऐसे स्थानों की संख्या 300 से अधिक है। इनमें से कई स्थानों पर झेलम दरिया तथा उसकी सहायक नदियों ने पानी का स्तर बढ़ने के बाद आप ही किनारों को तोड़ दिया था और करीब 55 जगहों पर बाद में श्रीनगर में घुसे पानी को बाहर निकालने के लिए किनारों के बांधों को तोड़ा गया था।
 
27 दिनों से श्रीनगर अभी भी तबाही के मंजर के बीच खड़ा है और झेलम समेत उसकी कई सहायक नदियों के टूटे और तोड़े गए किनारों की दरारों को फिलहाल खुला रखा गया है। उन्हें अभी तक भरा क्यों नहीं गया है कोई बोलने को तैयार नहीं है। जबकि आम कश्मीरी को चिंता इस बात की है कि अगर फिर से बारिश का कहर बरपा तो ये दरारें कहर बरपा देगीं। उनकी चिंता जायज भी है क्योंकि मौसम कई दिनों से फिर से खराब है और आसमान पर बादलों का डेरा लगने लगा है। यही नहीं मौसम विभाग भी ऐसी शंका प्रकट करने लगा है कि बारिशें हो सकती हैं और कहर बरपा सकती हैं।