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Written By Author अवनीश कुमार

कैराना उपचुनाव में 'हाथी' करेगा 'साइकल' की सवारी...

कैराना उपचुनाव में 'हाथी' करेगा 'साइकल' की सवारी... - Kairana by election, BSP, Mayawati
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर में जिस तरह 'हाथी' पर सवार होकर 'साइकल' ने अपने दो नेताओं को लोकसभा पहुंचा दिया, उसी तर्ज पर पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी कैराना से अपने किसी नेता को दिल्ली भिजवाना चाहती है। हालांकि गोरखपुर में फूलपुर के उपचुनाव में एक साथ जीत का परचम लहरा चुकी सपा व बसपा अब भाजपा को किसी भी प्रकार से खुश होने का मौका नहीं देना चाहती हैं।


एक तरफ भाजपा जहां हार पर चिंता और चिंतन कर रही है, वहीं वहीं दूसरी तरफ सपा और बसपा ने कैराना सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर तैयारियां तेज कर दी हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो कैराना सीट पर भी एक साथ दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ना चाहती हैं और कैराना पर भी जीत का परचम लहराने की रणनीति बनाई जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती चाहती हैं कि कैराना का चुनाव बसपा लड़े और सपा उसे समर्थन दे और इस सीट पर भी भाजपा को पटखनी देकर लोकसभा में बसपा का खाता भी खुल जाए।

अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो समाजवादी पार्टी बसपा की इस बात को मान भी ले और यदि ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए कैराना का उपचुनाव भी बहुत कठिन हो सकता है। जानकारों की मानें तो अगर सपा-बसपा ने गठजोड़ कर चुनाव लड़ा तो भाजपा के लिए यह सीट जीतना बड़ी चुनौती साबित होगा क्योंकि कैराना लोकसभा सीट गुर्जर बहुल सीट है।

यहां लगभग 3 लाख गुर्जर हैं। इनमें आधे मुस्लिम गुर्जर हैं। इस लोकसभा सीट पर 40 फीसदी मुस्लिम वोट हैं, जिसमें दलित, जाट और अन्य वोटों के जुड़ जाने के बाद ज्यादा कुछ नहीं बचेगा और ऐसे में सपा-बसपा भाजपा को यहां पूरी तरह घेर सकती है और एक बार फिर प्रदेश में हुए दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे दोहराए जा सकते हैं।

लेकिन अब देखने वाली बात यह होगी कि सपा और बसपा के बीच बात बन पाती है या नहीं। पार्टी सूत्रों की मानें तो कहीं ना कहीं अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो की इस बात को मान सकते हैं और बसपा उम्मीदवार मैदान में उतर सकता है। वहीं कांग्रेस और रालोद भी तैयारियों में जुटे हैं। रालोद मुखिया चौधरी अजितसिंह जाट-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने में लगे हैं।

चर्चा यह भी है कि कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को उतारा जा सकता है। अब ऐसे में देखने वाली बात यह रहेगी कि जिस तरह गोरखपुर और फूलपुर का चुनाव विपक्ष ने मिलकर लड़ा था तो क्या कैराना लोकसभा का उपचुनाव भी मिलकर लड़ेंगे? अब सारा फैसला समाजवादी पार्टी के ऊपर है क्योंकि वोट बैंक के हिसाब से कैराना में समाजवादी पार्टी सबसे मजबूत है और अगर लोकसभा 2014 के नतीजों पर निगाह डालें तो यहां से सीधी टक्कर भाजपा को समाजवादी पार्टी से ही मिली थी।

इसी के चलते समाजवादी पार्टी में कई नेता भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। गौरतलब है कि यह सीट तीन फरवरी को कैराना के भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई है। फिलहाल यहां पूर्व सांसद हुकुमसिंह की बेटी मृगांका पिता की विरासत को संजोकर रखने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने क्षेत्र में अपनी सक्रियता तेज कर दी है।