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Written By सुरेश डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 16 सितम्बर 2016 (18:26 IST)

कर्रा ने कभी सहमति नहीं दी थी भाजपा-पीडीपी गठबंधन को

कर्रा ने कभी सहमति नहीं दी थी भाजपा-पीडीपी गठबंधन को - BJP, PDP, Alliance, founder, Mufti Mohammad Sayeed,
श्रीनगर। पीडीपी के सांसद और संस्थापक सदस्य तारिक अहमद कर्रा के इस्तीफे के बाद हालांकि पार्टी में वे नेता जरूर घबराहट में हैं, जो भाजपा से किए गए गठबंधन को निभाने की ‘मजबूरी’ को ढोना चाहते हैं। यही कारण था कि वे अब कर्रा के खिलाफ मुहिम छेड़ते हुए कह रहे हैं कि कर्रा तो उसी समय पार्टी के लिए बेगाने हो गए थे, जब उन्होंने पीडीपी-भाजपा गठबंधन को अपनी सहमति नहीं दी थी और कई महत्वपूर्ण बैठकों में से वे लगातार गायब भी रहे थे।
ऐसा नहीं है कि कर्रा ने मुफ्ती मुहम्मद सईद की मृत्यु के बाद महबूबा मुफ्ती द्वारा भाजपा से किए गए राजनीतिक करार की मुखालफत की थी बल्कि वे तो मुफ्ती सईद के काल में भी अपना विरोधी सुर बुलंद करते रहे थे। और यह भी सच है कि जब मुफ्ती सईद की मौत हो गई थी तो इस साल 12 जनवरी को उन्होंने कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की पहल भी की थी, पर इसे महबूबा मुफ्ती ने नकार दिया था।
 
दरअसल, कर्रा शुरू से भाजपा के खिलाफ रहे थे। विधानसभा चुनाव जीतने के तुरंत बाद कर्रा ने नतीजों को देखते हुए पीडीपी नेताओं को इसके प्रति चेताया था कि अगर पीडीपी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया तो उसके बुरे दिनों की शुरुआत हो जाएगी। उनकी इस चेतावनी का समर्थन एक अन्य सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने भी किया था।
 
और अब जब बुरहान वानी की मौत के बाद हालात राज्य सरकार के हाथों से बाहर हो गए तो कर्रा ने लगातार अपने समर्थकों के साथ मिलकर महबूबा मुफ्ती पर दबाव बनाया था कि वे इसी बहाने गठबंधन को तोड़कर कश्मीरी जनता की सहानुभूति की फसल को काटने की तैयारी कर लें, पर महबूबा ने इसके लिए हामी नहीं भरी थी। हालांकि वे भी इस सच्चाई से वाकिफ थीं कि भाजपा के साथ गठबंधन उनके लिए भारी साबित हो रहा है और कश्मीर का ताजा आंदोलन उसके वोट बैंक को खत्म कर रहा है।
 
नतीजा सामने था। कर्रा ने अपना इस्तीफा घोषित कर दिया। उनके इस्तीफे से उपजी परिस्थितियों को संभालने के लिए महबूबा के कुछ खास नेता, निजामुद्दीन बट और नईम अख्तर जुट गए हैं। दोनों ने कर्रा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कर्रा के उन कुछ फेसबुक पोस्टों को बांटा है जिससे यह साफ जाहिर होता था कि कर्रा तो एक अरसा पहले ही पार्टी से दूरी बना चुके थे और इस्तीफे की एक रस्म बाकी थी जिसे अब उन्होंने पूरा कर दिया।
 
इतना जरूर था कि कर्रा के इस्तीफे के बाद पार्टी के भीतर विरोधियों का गुट लामबंद होने लगा है। खासकर वे नेता और कार्यकर्ता, जो पहले से ही भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर नाराज थे और अब कश्मीर के हालात के कारण वे असहज महसूस कर रहे थे। 
 
कर्रा ने अपने इस्तीफे के पीछे का कारण भाजपा और आरएसएस के एजेंडे को जिम्मेदार ठहराया है। यह पीडीपी नेताओं के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि वर्तमान माहौल को भी इसी एजेंडे का परिणाम बताया जा रहा है। ऐसे में पीडीपी के लिए एक ओर कुआं तो दूसरी ओर खाई वाली स्थिति पैदा हो चुकी है। 
 
इतना जरूर था कि सार्वजनिक तौर पर इस इस्तीफे को पीडीपी का अंदरुनी मामला बताने वाली भाजपा भी अब गठबंधन के जारी रहने को लेकर आशंकित हो उठी है।
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