रामायण काल में थीं ये विचित्र किस्म की प्रजातियां, वैज्ञानिक रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई। जैसे, वानर, गरूड़, रीछ आदि। माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मानव की काया विशालकाय होती थी। मनुष्य की ऊंचाई 21 फिट के लगभग थी।
वानर जाति : वानर को बंदरों की श्रेणी में नहीं रखा जाता था। 'वानर' का अर्थ होता था- वन में रहने वाला नर। ऐसे मानव जिनकी पूंछ होती थी और जिनके मुंह बंदरों जैसे होते थे। वे मानव भी सामान्य मानवों के साथ घुल-मिलकर ही रहते थे। उन प्रजातियों में 'कपि' नामक जाति सबसे प्रमुख थी। जीवविज्ञान शास्त्रियों के अनुसार 'कपि' मानवनुमा एक ऐसी मुख्य जाति है जिसके अंतर्गत छोटे आकार के गिबन, सियामंग आदि आते हैं और बड़े आकार में चिम्पांजी, गोरिल्ला और ओरंगउटान आदि वानर आते हैं। इस कपि को साइंस में होमिनोइडेया (hominoidea) कहा जाता है।
हनुमानजी वानरों की कपि जाति से थे। भारत के दंडकारण्य क्षेत्र में वानरों और असुरों का राज था। हालांकि दक्षिण में मलय पर्वत और ऋष्यमूक पर्वत के आसपास भी वानरों का राज था। इसके अलावा जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, मलेशिया, माली, थाईलैंड जैसे द्वीपों के कुछ हिस्सों पर भी वानर जाति का राज था। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है।
गरूड़ : माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। राम के काल में सम्पाती और जटायु नाम के दो गरूड़ थे। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। पुराणों के अनुसार सम्पाती और जटायु दो गिद्ध-बंधु थे। सम्पाती बड़ा था और जटायु छोटा। ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे।
रीझ : रामायण काल में रीझनुमा मानव भी होते थे। जाम्बवंतजी इसका उदाहण हैं। भालू या रीछ उरसीडे (Ursidae) परिवार का एक स्तनधारी जानवर है। हालांकि इसकी अब सिर्फ 8 जातियां ही शेष बची हैं। संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। निश्चित ही अब जाम्बवंत की जाति लुप्त हो गई है। हालांकि यह शोध का विषय है।
जाम्बवंत को आज रीछ की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वे एक राजा होने के साथ-साथ इंजीनियर भी थे। समुद्र के तटों पर वे एक मचान को निर्मित करने की तकनीक जानते थे, जहां यंत्र लगाकर समुद्री मार्गों और पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। मान्यता है कि उन्होंने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो सभी तरह के विषैले परमाणुओं को निगल जाता था। माना जाता है कि वर्तमान के रीछ या भालू इन्हीं के वंशज हैं। जाम्बवंत की उम्र बहुत लंबी थी। 5 हजार वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। जाम्बवंत की बेटी के साथ कृष्ण ने विवाह किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है।
काकभुशुण्डि : लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी। इससे पूर्व हनुमानजी ने संपूर्ण रामायण पाठ लिखकर समुद्र में फेंक दी थी। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था।
जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया।
रामायण काल के मायावी लोग : रामायण काल में ऐसे कई मायावी असुर, दावन, वानर और राक्षस थे जो आश्चर्यजनकरूप से शक्तिशाली थे। जैसे..माल्यवान, सुमाली, माली, रावण, कालनेमि, सुबाहु, मारीच, कुंभकर्ण, कबंध, विराध, अहिरावण, खर और दूषण, मेघनाद, मय दानव, बालि आदि।
संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1.वाल्मीकि रामायण।
2.रामकथा उत्पत्ति और विकास: डॉ. फादर कामिल बुल्के।
3.लंकेश्वर (उपन्यास): मदनमोहन शर्मा ‘शाही'।
4.हिन्दी प्रबंध काव्य में रावण: डॉ. सुरेशचंद्र निर्मल।
5.रावण-इतिहास: अशोक कुमार आर्य।
6. प्रमाण तो मिलते हैं: डॉ. ओमकारनाथ श्रीवास्तव (लेख) 27 मई 1973।
7.महर्षि भारद्वाज तपस्वी के भेष में एयरोनॉटिकल साइंटिस्ट (लेख) विचार मीमांसा 31. अक्टूबर 2007।
8. विजार्ड आर्ट।
9.चैरियट्स गॉड्स: ऐरिक फॉन डानिकेन।
10.क्या सचमुच देवता धरती पर उतरे थे डॉ. खड्ग सिंह वल्दिया (लेख) धर्मयुग 27 मई 1973।