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Written By WD Feature Desk

11th day Roza: ग्यारहवां रोजा से शुरू होगा मगफिरत का अशरा

11th day Roza: ग्यारहवां रोजा से शुरू होगा मगफिरत का अशरा - The eleventh Day of Roza
Ramadan day 2024: मगफिरत (मोक्ष) की बात हरेक मजहब में कही गई। जैसे जैन धर्म में मोक्ष (मगफिरत) के लिए 'रत्न-त्रय' (सम्यक ज्ञान-दर्शन-चारित्र), सनातन धर्म में 'सदाचार', ईसाई मजहब में 'हॉली ड्यूटीज एंड मर्सी' को अहमियत है तो बौद्ध धर्म में 'अषृंगिक मार्ग' पर जोर दिया गया है।
 
इस्लाम मजहब में मगफिरत (मोक्ष) के लिए तक़्वा (संयम/सत्कर्म) जरूरी है। तक़्वा के लिए रोजा जरूरी है। रोजा यानी अल्लाह का वास्ता। रोजा यानी मगफिरत का रास्ता। 
 
रमज़ान के मुबारक माह के ग्यारहवें रोजे से मगफिरत का अशरा शुरू हो जाता है जो बीसवें रोजे तक रहता है। इस दूसरे अशरे को मगफिरत का अशरा (मोक्ष का कालखंड) इसलिए कहा जाता है कि इसमें अल्लाह से मगफिरत के लिए दुआ की जाती है। 
 
बिना किसी बुराई के यानी बुराई से बचते हुए रोजे में अल्लाह की इबादत की जाती है और माफी मांगते हुए मगफिरत की तलब की जाती है। यानी इबादत की टहनी पर मगफिरत का फूल है रोजा।
 
पवित्र कुरआन के उनतीसवें पारे (अध्याय-29) की सूरह मुल्क की बारहवीं आयत (आयत नंबर-12) में ज़िक्र है...'बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बिना देखे डरते हैं, उनके लिए मगफिरत (मोक्ष) और अज़्रे-अज़ीम (महान पुण्य) मुकर्रर है।
 
'कुरआन की इस आयत की रोशनी में ग्यारहवें रोजे की तशरीह की जाए तो मौजूदा दौर की ईजादात के मद्देनजर कहा जा सकता है कि इबादत के प्लेटफॉर्म पर मगफिरत की ट्रेन के लिए दरअसल ग्यारहवां रोजा सिग्नल है। क्योंकि ग्यारहवें रोजे से ही रमजान माह में मगफिरत का अशरा शुरू होता है। प्रस्तुति : अज़हर हाशमी

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