शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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वैकुंठ चतुर्दशी की पवित्र कथा, जब विष्णु ने अपने नयन चढ़ाए शिव पर

वैकुंठ चतुर्दशी की पवित्र कथा, जब विष्णु ने अपने नयन चढ़ाए शिव पर - vaikunth chaturdashi katha in hindi
प्राचीन मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे 'कमल नयन' और 'पुंडरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।

विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'वैकुण्ठ चतुर्दशी' कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव, इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं।  
 
इसी दिन शिव जी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें।  मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा। 
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