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जीवन में मंगल और शुभता चाहिए तो अवश्य करें श्रावण मास का मंगला गौरी व्रत, मिलेगा सौभाग्य और धन-समृद्धि

जीवन में मंगल और शुभता चाहिए तो अवश्य करें श्रावण मास का मंगला गौरी व्रत, मिलेगा सुहाग, सौभाग्य और धन-समृद्धि। Mangala Gauri Vrat 2018 - Mangala Gauri Vrat 2018
* श्रावण के मंगलवार क्यों करते हैं मंगला गौरी व्रत, जानिए...

-राजश्री कासलीवाल
 
प्रति वर्ष श्रावण मास में मंगला गौरी का पर्व सुहागिनों द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण सोमवार के अगले दिन यानी मंगलवार के दिन 'मंगला गौरी व्रत' के रूप में मनाया जाता है।

पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है अत: इस दिन माता मंगला गौरी (माता पार्वती) का पूजन करके मंगला गौरी की कथा सुनना बहुत ही फलदायी माना गया है। 
 
वर्ष 2018 में मंगला गौरी का यह पावन पर्व 31 जुलाई 2018 को जहां श्रावण मास के पहले मंगलवार को मनाया गया, वहीं 7 अगस्त को दूसरा, 14 को तीसरा तथा 21 अगस्त 2018 को चौथा यानी आखिरी मंगला गौरी व्रत मनाया जाएगा। 
 
श्रावण माह के हर मंगलवार को मनाए जाने वाले इस व्रत को मंगला गौरी व्रत (पार्वतीजी) नाम से ही जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में मंगलवार को आने वाले सभी व्रत-उपवास मनुष्य के सुख-सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। अपने पति व संतान की लंबी उम्र एवं सुखी जीवन की कामना के लिए महिलाएं खासतौर पर इस व्रत को करती हैं। सौभाग्य से जुडे़ होने की वजह से नवविवाहित दुल्हनें भी आदरपूर्वक एवं आत्मीयता से इस व्रत को करती हैं।
 
ज्योतिषियों के अनुसार जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कम‍ी‍ महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हों, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को 16 सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।
 
इस दिन मां पार्वती का पूजन करते हुए 'श्री मंगला गौर्ये नम:' मंत्र का स्मरण करना मंगलकारी होता है। श्रावण में हर मंगलवार को आनेवाले इस मंगला गौरी का व्रत को रखकर मनोवांछित संतान, अखंड सुहाग, सौभाग्य, धन-समृद्धि आदि कई प्रकार के फल पाए जा सकते हैं। इस व्रत में खास तौर पर मंगला गौरी की कथा का वाचन, मंगला गौरी स्तोत्र का पाठ, आरती तथा मां गौरी की स्तुति करना चाहिए। 
 
विशेष : ज्ञात हो कि एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के पश्चात इस व्रत को लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है तत्पश्चात इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए।