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जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों मनाया जाता है? कैसे मनाएं, 5 सावधानियां

जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों मनाया जाता है? कैसे मनाएं, 5 सावधानियां - Jivitputrika Vrat 2022
वर्ष 2022 में जीवित्पुत्रिका, जिउतिया/ जितिया व्रत (jivitputrika, jiutia vrat 2022,) 18 सितंबर को मनाया जाएगा। यह व्रत संतान की रक्षा का व्रत माना जाता है। कलयुग में भी इस व्रत का पूरा प्रभाव मिलता है। 
 
आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता हैं जीवित्पुत्रिका व्रत- 
 
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। तब सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर 5 लोग सो रहे थे।

अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझ कर मार डाला। कहा जाता है कि सभी द्रौपदी की 5 संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया।

भगवान श्री कृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया।  तभी से संतान की लंबी आयु और मंगल कामना के लिए हर साल जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत मनाया जाता है तथा व्रत रखकर इस परंपरा को निभाया जाता है।
 
कैसे मनाएं व्रत-Jivitputrika Vrat 2022
 
जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन निर्जला उपवास रखकर प्रदोष काल में पूजन किया जाता है।

 
व्रती को चाहिए कि इस दिन स्नानादि से पवित्र होकर व्रत का संकल्प लें। 
 
फिर प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ कर दें। 
 
साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बनाए।
 
तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। 
 
शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल अथवा मिट्टी के पात्र में स्थापित करें।
 
फिर उन्हें पीली और लाल रुई से अलंकृत करें। 
 
अब धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। 
 
मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं। 
 
उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिंदूर लगा दें।
 
अब अपने वंश की वृद्धि और निरंतर प्रगति के लिए उपवास करके बांस के पत्रों से पूजन करें।
 
तत्पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत एवं उसके महात्म्य की कथा पढ़ें अथवा सुनें।

 
यह व्रत प्रदोष काल व्यापिनी अष्टमी को किया जाता है, जिसमें जीमूतवाहन का पूजन होता है। 
 
पारण से पहले सूर्य को अर्घ्य देना जरूरी है।

उदया तिथि के अनुसार यह व्रत किया जाता है। 
 
इस व्रत का पारण नवमी तिथि प्राप्त होने पर किया जाता है। 
 
पढ़ें 5 सावधानियां- 5 Precautions
 
1. इस व्रत करने से एक दिन पहले से लहसुन, प्‍याज तथा मांसाहार नहीं लेना चाहिए। छठ व्रत की तरह ही निर्जला और निराहार रह कर यह व्रत किया जाता हैं। अत: इस दिन उपवास रखना चाहिए। 
 
2. इस व्रत के संबंध में पौराणिक मान्यता हैं कि एक बार ये व्रत लेने के बाद इसे बीच में छोड़ा नहीं जाता है। यह व्रत सास से बहू को ट्रांसफर किया जा सकता है। 
 
3. महिला व्रतधारी को इस व्रत को करते समय ब्रह्मचर्य का पालन, मन, वचन, कर्म की शुद्धता रखना चाहिए तथा गृह क्लेश नहीं करना चाहिए। 
 
4. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं। अत: इस उपवास में जल की एक बूंद भी ग्रहण न करें। 
 
5. जिउतिया व्रत के तीसरे दिन प्रातःकाल के समय पुन: पूजा-पाठ करने के पश्चात ही इस व्रत का पारण करें।