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प्रवासी साहित्य : देस अजूबा

विदेशी कविता
- हरनारायण शुक्ला

 
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अमेरिका है देस अजूबा, दाएं ओर यहां चलते।
ओबामा लिखते बाएं से, समलिंगी शादी रचते।

गोरे-काले-पीले-भूरे, सभी तरह के लोग यहां।
जात-पांत का भेद नहीं, रंग-भेद है गया कहां।

सूनी सड़कें सूनी बस्ती, दिखता कोई कहीं नहीं।
कर्फ्यू जैसे लगा हुआ हो, कहां गए सब पता नहीं।

अमेरिका है देस धनी, पर कहते हैं फ्री-लंच नहीं।
लंगर-वंगर कहीं नहीं, गुरुद्वारे का पता नहीं।

खाक यहां की डेमाक्रेसी, पार्टी यहां हैं केवल दो।
लालू यादव को बुलवाओ, मल्टी पार्टी बनने दो।

बिकिनी पहनी महिला पर, नजर नहीं कोई डाले।
धोती-कुरता हम जब पहने, सब देखें पीछे-आगे।

भारत में जब दिन होता है, अमेरिका में होती रात।
पाताल लोक में आ पहुंचे, यहां निराली है सब बात।