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Written By वार्ता

अशोककालीन अभिलेख संरक्षित स्मारक

अशोककालीन अभिलेख संरक्षित स्मारक -
राजस्थान के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने महाभारतकालीन विराटनगर में पहाड़ी चट्टान पर उत्कीर्ण सम्राट अशोक धर्मलेख को संरक्षित स्मारक घोषित किया है।

जयपुर जिले के विराटनगर में भीम की डूँगरी के तले एक स्वतंत्र चट्टान पर यह धर्मलेख मौजूद है। इसके निकट ही अकबरी दरवाजा या मुगल गेट है, जिसमें मुगल कालीन भिति चित्रकारी है।

विभाग के निदेशक बीएल गुप्ता ने बताया कि कुछ माह पूर्व ही इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। पानी इत्यादि से सुरक्षा के उपायों के साथ ही इसके निकट एक दरवाजा लगाया गया है। इस चट्टान पर उत्कीर्ण आलेख को हिंदी और अंग्रेजी में अनूदित करके एक पृथक पट्ट भी शीघ्र लगाया जाएगा। अभी तक यह शिलालेख केन्द्र या राज्य सरकार की ओर से संरक्षित नहीं था।

शिरोरेखाविहीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण एवं पाली भाषा में लिखित इस अभिलेख में आठ पंक्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इसमें सम्राट प्रियदर्शी अशोक ने अपने बारे में कहा है 'अढ़ाई वर्ष से अधिक हुए हैं, मैं उपासक हुआ।' दरअसल यह धर्मलेख सम्राट अशोक के रूपनाथ एवं सहसराम लेख का विराटनगर संस्करण माना जाता है।

वर्ष 1871-72 में कारलायल ने अपनी शोधयात्रा के दौरान इस शिलालेख को खोज निकाला था। बीच में पर्याप्त घिसा हुआ होने के कारण कारलायल ने भ्रमवश इसे दो भिन्न लेखों के रूप में मान लिया, लेकिन कालांतर में कनिघम ने इसका निराकरण कर दिया।

ऐतिहासिक विराटनगर में अशोक महान के दो अभिलेख प्राप्त हुए हैं। राजस्थान में प्राप्त यह प्राचीनतम अभिलेख बौद्ध धर्म के इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपने जमाने में विराटनगर की बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र के नाते पहचान थी।

भारत में ब्रिटिशकाल में कैप्टन बर्ट ने 1837 में विराटनगर से 12 मील उत्तर में स्थित भाब्रू गाँव से सम्राट अशोक का अभिलेखयुक्त शिलाफलक खोजा था। इसका आकार दो फुट गुणा दो फुट गुणा डेढ़ फुट है।

यह माना जाता है कि मूलतः शिलाफलक बीजक की पहाड़ी से मिला था, जो कालांतर में भाब्रू पहुँच गया। बाद में यह सम्राट अशोक के भाब्रू बैराठ कोलकाता अभिलेख के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह कोलकाता में बंगाल एशियाटिक सोसायटी के भवन में जेम्सप्रिंसेप की मूर्ति के सामने लगा हुआ है।

अशोक ने इस अभिलेख के आरंभ में बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध धर्म और संघ में अपनी निष्ठा का उल्लेख किया है। सम्राट ने गर्व के साथ यह भी घोषणा की है कि भगवान बुद्ध ने जो कुछ कहा है, वह सब अच्छा ही कहा है। अभिलेख में बौद्ध धर्म के सात उद्धरणों के नाम भी गिनाए हैं।