रविवार, 28 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. राष्ट्रीय
Written By भाषा

मोजार्ट ने फिर बढ़ाया देश का मान

मोजार्ट ने फिर बढ़ाया देश का मान -
विज्ञापनों के जिंगल्स को संगीतबद्ध करने से लेकर गोल्डन ग्लोब पुरस्कार पाने तक का लंबा सफर तय करने वाले महान संगीतकार एआर रहमान ने फिर देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया। पूरी दुनिया उनकी सफलता के लिए बज रही तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रही है।

टाइम पत्रिका द्वारा मद्रास का 'मोजार्ट' कहे जाने वाले रहमान 6 जनवरी 1966 को चेन्नई में पैदा हुए। उनका बचपन का नाम एस. दिलीप कुमार था, लेकिन बाद में उनके परिवार ने 1970 में ईसाई धर्म को छोड़कर इस्लाम कुबूल कर लिया और उनका नाम एआर रहमान हो गया।

भारतीय मोजार्ट ने अपने संगीत करियर की शुरुआत विज्ञापनों के जिंगल्स की संगीत रचना से की। बाम्बे डाइंग के एक विज्ञापन की संगीत रचना से वे लोगों की नजरों में आए। यह विज्ञापन बेहद लोकप्रिय हुआ था।

इसके बाद 1992 में फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने उनसे संपर्क कर अपनी तमिल फिल्म रोजा के गीतों को संगीतबद्ध करने को कहा। इस फिल्म का संगीत हवा के एक ताजा झोंके की तरह महसूस किया गया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।

पहली बार किसी संगीतकार को उसकी पहली ही फिल्म के लिए यह पुरस्कार मिला। इसके बाद रामगोपाल वर्मा की रंगीला से उन्होंने हिंदी फिल्म जगत में कदम रखा। इस फिल्म के संगीत ने भी लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित किए और रहमान का हिंदी फिल्मों का सफर 'बाम्बे', 'दिल से', 'ताल', 'लगान ' और 'रंग दे बसंती' तक जा पहुँचा।

रहमान के संगीत में साज, स्वर और सुर का अद्भुत मेल संगीतप्रेमियों को भाता है और उनका अधिकतर संगीत लोक संगीत से प्रेरित नजर आता है। 1998 में संगीतबद्ध किया गया प्रसिद्ध गीत 'छैय्या...छैय्या' सूफी रहस्यवाद से गहरे तक जुड़ा था। रहमान की लोकप्रियता धीरे-धीरे सात समंदर पार तक पहुँची और 1999 में उन्होंने जर्मनी के म्यूनिख में पॉप सम्राट माइकल जैक्सन के साथ कार्यक्रम पेश किया।

वर्ष 2002 में रहमान ने पहली बार अपने संगीत कार्यक्रम बाम्बे ड्रीम्स के लिए संगीत तैयार किया, जिसका निर्देशन महान संगीतकार एंड्रयू लॉयड वैबर ने किया। इसके बाद रहमान का संगीत लंदन के वेस्ट एंड से लेकर न्यूयॉर्क के ब्राडवे तक छा गया।

2004 में रहमान ने फिनलैंड के लोक संगीत 'बैंड वर्तिना' के साथ मिलकर लार्ड ऑफ द रिंग्स के थियेटर प्रोडक्शन के लिए संगीत तैयार किया।

ब्रिटिश निदेशक डेनी बोयले की स्लमडॉग मिलियनेयर के लिए उनकी 'जय हो' संगीत रचना ने उन्हें 2008 में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का क्रिटिक्स च्वाइस अवॉर्ड दिलाया और अब सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत के लिए उन्हें गोल्डन ग्लोब पुरस्कार दिया गया, जो किसी भारतीय को मिला पहला गोल्डन ग्लोब पुरस्कार है।