विरले व्यक्तित्व के धनी प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी को 1984 में दुनिया के शीर्ष पाँच वित्तमंत्रियों की सूची में स्थान दिया गया था और अब यह वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एक बार फिर देश के वित्तमंत्री पद की कमान संभाल रहा है।उम्मीद है कि आर्थिक संकट से जूझती विश्व अर्थव्यवस्था में वे देश की आर्थिक नैया को पार लगाने में कामयाब होंगे।मुखर्जी इंदिरा गाँधी की सरकार में 1982 से लेकर 1984 तक वित्तमंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं। पिछली मनमोहनसिंह सरकार में विदेशमंत्री रहे प्रणब मुखर्जी ने इस वर्ष जनवरी में वित्तमंत्री का अतिरिक्त प्रभार संभाला था।पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक छोटे से गाँव से ताल्लुक रखने वाले मुखर्जी राजनीति और सत्ता के गलियारों के पुराने मुसाफिर रहे हैं और आज केन्द्र में सत्ता के शीर्ष से वे दूसरा स्थान हासिल कर चुके हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देता है।आँकड़ों के मामले में गजब की स्मरण शक्ति के स्वामी राजनीतिज्ञों की आज ऐसी जमात के प्रतिनिधि कहलाते हैं जिसे भारतीय राजनीति में विरला कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ चुनावी गठजोड़ में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और उनकी दूरदृष्टि सही साबित हुई। लोकसभा चुनाव में उन्हीं की रणनीति के बूते तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन वामदलों को धूल चटाने में कामयाब हो सका। 1969
से अधिकतर समय राज्यसभा में बिताने वाले मुखर्जी पहली बार 2004 में मुर्शीदाबाद जिले की जांगीपुर सीट से लोकसभा के लिए चुने गए। इस बार भी उन्होंने इसी सीट से जीत हासिल की, लेकिन इस बार उन्होंने यह सीट 1.26 लाख मतों से जीती। 2004 में वे 34360 मतों से जीते थे। मुखर्जी पहली बार 1973 में केन्द्र में औद्योगिक विकास उपमंत्री बनाए गए और उसके बाद वे राज्य और कैबिनेट मंत्री के स्तर तक पहुँचे। उन्हें 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से भी सम्मानित किया गया। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री के तौर पर मुखर्जी ने विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।पिछली संप्रग सरकार में बतौर विदेशमंत्री मुखर्जी ने अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु करार संपन्न कराने और उसके साथ संबंधों को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसके बाद मुंबई पर आतंकवादी हमलों के उपरांत विश्व जनमत को पाकिस्तान के खिलाफ सक्रिय करने में भी उन्होंने गजब के रणनीतिक कौशल का परिचय दिया।वे 14वीं लोकसभा में सदन के नेता भी रहे। इससे पूर्व वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक तथा अफ्रीकी विकास बैंक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य भी रहे। किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उन्हें 1984 में कांग्रेस से निकाल दिया था, लेकिन 1989 में उन्हें पुन: पार्टी में शामिल किया गया।उन्होंने 1985 और पिछले वर्ष पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालने के अतिरिक्त कांग्रेस पार्टी की सर्वाधिक शक्तिशाली इकाई कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य, कोषाध्यक्ष, महासचिव, केन्द्रीय चुनाव समिति के सदस्य के रूप में भी पार्टी में अपना अमूल्य योगदान दिया है।पश्चिम बंगाल के विद्यासागर कॉलेज से शिक्षित मुखर्जी ने बतौर अध्यापक और पत्रकार अपने करियर की शुरुआत की थी तथा वे देशेर डाक जैसे प्रकाशनों से भी जुड़े रहे। उन्होंने कई किताबें लिखीं। (भाषा)