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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली , गुरुवार, 16 सितम्बर 2010 (17:40 IST)

आरबीआई के कदम से उद्योगों को होगी मुश्किलें

आरबीआई के कदम से उद्योगों को होगी मुश्किलें -
प्रमुख उद्योग संगठनों ने भारतीय रिजर्व बैंक के अल्पकालिक दरें बढ़ाने पर सतर्कता भरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इससे छोटे उद्योगों को कारोबारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

आरबीआई ने यहाँ मौद्रिक नीति की तिमाही मध्यावधि समीक्षा की घोषणा करते हुए अपनी प्रमुख आधार ब्याज दरों रेपो में 0.25 और रिवर्स रेपो में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। इसके साथ ही अब रेपो दर बढ़कर 6 फीसदी और रिवर्स रेपो दर बढ़कर 5 फीसदी हो गई है। यह दरें तत्काल प्रभाव से लागू हो गई हैं। हालाँकि बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात को यथावत बनाए रखा है।

भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य महासंघ के महासचिव अमित मित्रा ने कहा कि आरबीआई के कदमों से आर्थिक विकास दर पर असर पड़ेगा। रेपो दर में वृद्धि में बैंकों के पास पर पूँजी की कमी होगी और रिवर्स रेपो दर में बढ़ोतरी से उनको उधारी महँगी मिलेगी। इसका सीधा असर कारोबार पर पड़ेगा। इससे छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उनकी लागत में वृद्धि होगी।

भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य मंडल की अध्यक्ष डॉ. स्वाति पीरामल ने आरबीआई की तिमाही की पहली मध्यावधि मौद्रिक समीक्षा की सराहना करते हुए कहा कि आरबीआई की मौद्रिक नीति उद्योगों के उम्मीदों के अनुरूप है।

उन्होंने कहा कि आरबीआई की नीति मुद्रास्फीति को काबू करना और आर्थिक विकास दर बनाए रखना है। रेपो दर में 0.25 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि से संकेत मिलता है कि आरबीआई की यह आखिरी बार की वृद्धि है। इससे बाजार से पूँजी सोखने में मदद मिलेगी और महँगाई पर रोक लगेगी।

भारतीय उद्योग परिसंघ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि आरबीआई को अक्टूबर 2009 से ऋण दरें में वृद्धि की प्रक्रिया को रोक देनी चाहिए। रेपो दर 6.0 प्रतिशत होने के साथ ही सामान्यीकरण की प्रक्रिया पूरी हो गई। आर्थिक विकास दर बनाए रखने के लिए ऋण दरों में नरमी बनाए रखना जरूरी है। बैंक पहले ही अपनी ऋणों में इजाफा कर चुके हैं। इससे उद्योगों को विस्तार के लिए पूँजी की उपलबधता मुश्किल होगी और चालू परियोजनाओं को चलाना संभव नहीं होगा। परिसंघ का कहना है कि ऊँची मुद्रास्फीति चिंता का विषय है, लेकिन इस पर आपूर्ति और उत्पादन में सुधार करके काबू पाया जा सकता है।

पीएचडी चैंबर्स ऑफ कामर्स ने कहा कि रेपो दर में वृद्धि करने उद्योगों को बैंकों से ऋण लेने में कठिनाई होगी। इससे छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्योगो को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही आवास ऋण और उपभोक्ता ऋण भी महँगे हो जाएँगें। निर्यात क्षेत्र भी प्रभावित होगा। रिवर्स रेपो दर बढ़ाने से बाजार में तरलता कम होगी और बैंको के पास ऋण देने के लिए कम पूँजी होगी। जिसका खामियाजा उद्योगों को भुगतना पड़ेगा। चैंबर्स ने मुद्रास्फीति की बढती दर पर काबू पाने के लिए आरबीआई के प्रयासों की सराहना की है और कहा है कि महँगाई और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।

भारतीय निर्यात महासंघ (फिओ) के अध्यक्ष ए. शक्तिवल ने कहा है कि आरबीआई ने रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में संतुलन बनाने का प्रयास किया है। बैंकों को अपनी ऋण दरें में कमी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि निर्यातकों को पूँजी की कमी नहीं हो। यह देखने के लिए सरकार को पाक्षिक समीक्षा करनी चाहिए। (वार्ता)