शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By WD

फिरौती की बजाय डाकू मानसिंह ने दी नीरज को दक्षिणा

-शोभना, सुनील जैन

फिरौती की बजाय डाकू मानसिंह ने दी नीरज को दक्षिणा -
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नई दिल्ली। रात्रि का निःशब्द अंधकार, कवि नीरज मुरैना मध्यप्रदेश में एक कवि सम्मेलन में कविता पाठ कर लौट रहे थे, तभी डाकू मानसिंह के गिरोह ने उनका अपहरण कर लिया। मान सिंह के सामने पेश किए जाने पर उसने पूछा 'क्या काम धंधा करते हो? 'नीरज ने बिना भयभीत हुए सपाट लहज़े में कहा 'कवि हूँ'। इस पर मानसिंह ने कहा 'तो सुनाओ कविता'। फिर शुरू हुआ बीहड़ जंगल में नीरज का कविता पाठ.. मानसिंह और उसका गिरोह दम साधे कविता पाठ सुनते रहे, उनकी कविताओं से वे सब इस कदर प्रभावित हुए कि जिस शख्स यानी नीरज को फिरौती की आस में पकड़ा था उसे डाकू मानसिंह ने खुद ही बाइज़्ज़त उनके घर पहुँचवाया, वह भी दक्षिणा देकर।

नीरज के बारे में ऐसा ही एक और अनजाना सा किस्सा- क्या आप जानते हैं? अमिताभ बच्चन कि तरह कवि नीरज ने भी पाई है हरिवंश राय बच्चन से प्रसिद्धी की विरासत। एक बार जब नीरज जी हरिवंश राय 'बच्चन' जी के साथ बस से यात्रा कर रहे थे तब बस में नीरज जी को बैठने के लिए जगह नही मिली। यह देखकर बच्चन' ने आग्रह करके उन्हें अपनी गोद में बैठ जाने के लिए कहा।

हरिवंश जी की गोद में बैठने पर नीरज जी ने हँसते हुए कहा 'आप मुझे गोद तो ले रहे हैं, पर आपको मुझे अपनी प्रसिद्धी में भी हि्स्सा देना होगा'। इस पर हँसते हुए बच्चन जी ने आशिर्वाद की मुद्रा में हाथ उठा दिया। शायद अन्तर्मन से निकले इस आशीर्वाद ने नीरज को 'निरंतर नीरज' बनाया भी।

यूं भी गोपालदास नीरज अपने कवि बनने में बड़ा योगदान हरिवंश ‘बच्चन’ की कविता ‘निशा निमंत्रण’ को ही मानते हैं। कविता पढ़ने के बाद उनका मन भी कविता करने को किया और शुरु हुई एक संवेदनशील किशोर मन की कविता यात्रा जो अब तक जारी है।

'निरन्तर नीरज' राजधानी की साँस्कृतिक संस्था 'इबादत फाउंडेशन' द्वारा गत रात्री पद्म भू्षण कवि नीरज को समर्पित थी। 'निरंतर नीरज' कार्यक्रम में नीरज ने कविता पाठ के साथ-साथ नीरज से जुड़े ऐसे कितने ही अनसुने किस्से सुनाए गए।

समारोह में90 वर्ष से ज़्यादा की उम्र में भी विलक्षण स्मरणशक्ति के धनी वाले नीरज ने जब 'कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे' सुनाया तो नीरज प्रेमियों और रसिकों की तालियों की गड़गड़ाहट से देर तक हॉल गूँजता रहा।

समारोह में न्यास के अध्यक्ष पृथ्वी हल्दिया व नीरज जी के पुत्र शशांक व मृगांक ने ये तमाम यादें साझा कीं। कार्यक्रम में नीरज के कविता पाठ के साथ साथ उनसे जुडे संस्मरण, उनकी कविताओं, दोहों, गजलों, रचनाओं, फ़िल्मी गीतों का अद्‍भुत मेल था।

पृष्ठभूमि में नीरज के पुराने चित्र, अन्य कविता पाठ, फ़िल्मी गीत स्लाईड्स के माध्यम से दिखाए जा रहे थे। कार्यक्रम में नीरज जब व्हील चेयर से सोफे पर आकर बैठे तो शुरू हुईं नीरज द्वारा साझा की गई यादों की झड़ी सी लग गई..

श्री हल्दिया, नीरज के दोनों पुत्र शशांक और मृगांक एक के बाद एक उनके संस्मरण सुना रहे थे, नीरज चुपचाप सुनते और बीच में हल्के हल्के मुस्कुरा देते। कैसे एसडी बर्मन ने उन्हें फिल्म प्रेम पुजारी के लिए एक गर्भवती महिला के मनोभाव लिखने को कहा और नीरज ने फौरन ही महिला मन के नाज़ुक से जज़्बातों को पिरो डाला। फिल्म प्रेम पुजारी के इस गीत में 'जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी, चहकेगी, खुशियों की कलियाँ झूमेंगी, झूलेंगी, फूलेंगी...'

फिल्मी दुनिया में एक के बाद एक उन्हें कामयाबी मिलती जा रही थी लेकिन एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन जैसे कितने ही साथी दुनिया से विदा हो रहे थे, फिल्मी गानों की भाषा बदल रही थी। उन्हें सुझाव दिया गया फिल्मों की धुनों पर गीत लिखिए, लेकिन नीरज को वह पूरा माहौल रास नहीं आ रहा था। बम्बई की ज़िन्दगी से उनका जी उचट गया था और वे अखिरकार फिल्मी नगरी को अलविदा कहकर वापस अपने घर अलीगढ़ लौट आए। तब से आज तक वहीं रहकर स्वतन्त्र कवि के रूप में कविताए, गीत लिख रहे है सुना रहे हैं।

कभी 'भावुक' उपनाम से अपना कवि जीवन शुरु करने वाले नीरज शायद है ही इतने भावुक...नीरज का कविता पाठ जारी है 'नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गए कि शाख शाख जल गई, चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई, लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे, कारवां गज़र गया बहार देखते रहे...हॉल में सन्नाटा है पर उनकी आवाज़ गूंज रही है...

ज़िन्दगी के सफर की शुरुआत नीरज ने बेहद अभावों से की। नदी में कूदकर सिक्के बीनने से ताँगा चलाने, दुकान पर नौकरी, टाईपिस्ट की नौकरी के सभी अनुभवों ने उनकी संवेदनाओं को और गहरा किया। समारोह चल रहा था, रसिक मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे।

नीरज सुना रहे थे 'बंसी से बंदूक बना दे, हम वो प्रेम पुजारी'.., जज्बात लोगों के दिलों को छू रहे थे। लोग समवेत स्वर में उनके साथ गा रहे थे। आधे घंटे तक नीरज के कविता पाठ के बाद आयोजक हल्दिया कहते है 'अब नीरज जी को आराम करना है, उनके कविता पाठ को यहीं विराम देना होगा, एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ नीरज कहते हैं 'नहीं! जब तक श्रोता चाहेंगे, मै कविता पाठ करता रहूंगा... हॉल तालिओं से गूंज उठता है। निरंतर नीरज शायद यही है।

15 मिनट तक कविता पाठ और चलता है। मृत्यु छंद का कविता पाठ होते ही माहोल एक बार फिर भावुक हो जाता है। 155 छंदों का मृत्यु का ऐसा चित्रण कि मन वैरागी हो जाए... नीरज गा रहे हैं 'अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाए, इंसान को इंसान बनाया जाए'... हॉल में खामोशी है, शायद इंसान के इंसान बनने की सोच पर मंथन चल रहा है...

समारोह अब खत्म हो गया है... नीरज कुछ को आशीर्वाद, कुछ को ऑटोग्राफ दे रहे हैं। उनके आस पास लोगों का हुजूम है, नीरज का कारवाँ निरंतर चल रहा है, कुछ पीछे छूटा, कुछ साथ चला पर नीरज का कारवाँ निरंतर चल रहा है...