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Written By भाषा

सोनिया के दामाद वाड्रा के अरबपति बनने की कहानी

सोनिया के दामाद वाड्रा के अरबपति बनने की कहानी -
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गुरुवार को वॉल स्ट्रीट जर्नल के भारतीय संस्करण में एक लेख छपा है, जिसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट बाड्रा ने रियल एस्टेट के अपने कारोबार की शुरुआत दो हजार डॉलर से भी कम राशि (एक लाख रुपए) की थी लेकिन पांच वर्ष में ही उनकी सम्पति 322 करोड़ रुपए हो गई है।

गीता आनंद और राजेश रॉय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वाड्रा का रियल एस्टेट का कामकाज 2007 में शुरू हुआ था और तब उनकी कंपनी की जमा पूंजी करीब एक लाख रुपए थी लेकिन पांच वर्षों के दौरान ही उन्होंने दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की कर ली कि अब वे अरबपति हैं।

वेबसाइट का कहना है कि 2012 में वाड्रा ने 1 करोड़ 20 लाख डॉलर (72 करोड़ रुपए) से अधिक की सम्पति बेची है। और अभी भी उनके पास 4 करोड़ 20 लाख डॉलर (यानी 250 करोड़ रुपए) की रियल एस्टेट सम्पति है। पांच वर्षों यानी 2007 से लेकर 2012 के बीच में ही वाड्रा की सम्पत्ति एक लाख रुपए से बढ़कर 322 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।

वाड्रा की अन्य खूबियां भी जान लें। सोनिया गांधी के 44 वर्षीय दामाद की शिक्षा मात्र हाई स्कूल तक है। इतना ही नहीं, उन्हें रियल एस्टेट कारोबार का कोई अनुभव भी नहीं था। उनकी कंपनियों का बीते दो साल से कोई रिकॉर्ड भी नहीं है क्योंकि इसकी कोई जानकारी सरकारी कार्यालयों, अधिकारियों को उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।

जब र‍ियल एस्टेट कारोबार में उतरे वाड्रा... पढ़ें अगले पेज पर....



जब वाड्रा र‍ियल एस्टेट के काम में उतरे तो उन्होंने स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लि. नाम की कंपनी बना ली। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में जब कंपनी ने अपने बारे में जानकारी उपलब्ध कराई तो उस समय उनकी पूंजी एक लाख रुपए थी। उन्होंने 2009 में राजस्थान में कोलायत कस्बे के आसपास शुष्क कृषि भूमि खरीदी। उस समय भी उनके एक एजेंट द्वारा लोगों को जमीनों के बदले में पैसे देने का काम किया जाता था।

जैसे ही, उन्होंने जमीनें खरीदने का काम शुरू किया कि केन्द्र सरकार ने बड़े पैमाने पर सौर उर्जा उत्पादन की योजनाएं बना डालीं। इस परियोजना में काफी भूमि लगती है सो वे जमीनें खरीदते रहे और केन्द्र सरकार सौर उर्जा उत्पादन के लिए रियायतें देती रही। तीन वर्ष के अंदर ही वाड्रा की जमीन की कीमत छह गुना से अधिक हो गई।

वाड्रा के प्रवक्ता का कहना है कि वे इस देश के नागरिक हैं और उन्हें भी अपना कारोबार करने की स्वतंत्रता है, लेकिन राजनीतिक कारणों से उनका नाम बदनाम किया जाता है। अब राज्य सरकार के अधिकारी जांच कर रहे हैं कि राजस्थान में जमीन खरीदने के दौरान वाड्रा की कंपनी ने कानूनों का उल्लंघन तो नहीं किया। विशेष बात यह है कि अब राज्य में कांग्रेस के स्थान पर भाजपा सत्ता में आ गई है।

जैसे-जैसे भारत में शहरीकरण बढ़ा है, रियल एस्टेट में पैसा लगाना जल्दी से जल्दी अमीर बनने का रास्ता बन गया। इस मामले में जिन लोगों की राजनीतिक पहुंच होती है या जो जमीनों के उपयोग संबंधी मामलों में जानते हैं वे सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर मनमाने तरीके से जमीनें हथिया लेते हैं और बाद में उसी जमीन को कई गुना कीमत पर बेच कर लाभ कमाते हैं।

रियल एस्टेट से पहले क्या था वाड्रा का कारोबार... पढ़ें अगले पेज पर...



इसके साथ भारत में यह जानना भी मुश्किल है कि लोगों के पास कितनी वास्तविक सम्पत्ति है क्योंकि भ्रष्टाचार की जांच और टैक्स संबंधी जिम्मेदारियों से बचने के लिए लोग फर्जी कंपनियां बनाने से लेकर अपने नौकरों तक के नाम पर जमीनें खरीद लेते हैं। एक एक्टिविस्ट ग्रुप, इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने वाड्रा के बहुत से सौदों के बारे में जानकारी जुटाई और उन पर आरोप लगाए कि उन्होंने एक प्रॉपर्टी डेवलपर के साथ मिलकर बहुत पैसा बनाया।

जब 2004 में सोनिया गांधी की पार्टी सत्ता में आई तब उस समय वाड्रा सस्ती आर्टीफिशियल जूलरी का कारोबार करते थे। 2008 की शुरुआत में स्काई लाइट ने नई दिल्ली में गुड़गांव के पास एक हाइवे चौराहे के पास 3.5 एकड़ जमीन खरीदी जो कि अवि‍कसित थी। यह सम्पत्ति तेरह लाख डॉलर में खरीदी गई थी और यह रकम बिक्री के एक दस्तावेज में बताई गई है।

दो महीने बाद ही वाड्रा ने कांग्रेस शासित राज्य सरकार से कहा कि उन्हें इस बात का लाइसेंस दिया जाए कि वे कृषि भूमि को कारोबारी उपयोग के लिए इस्तेमाल कर सकें। उन्हें यह अनुमति मात्र 18 दिनों के रिकॉर्ड समय में दी गई। इसके साथ ही, जमीन की कीमत कई गुना बढ़ गई।

अगले चार वर्षों के दौरान प्रॉपर्टी डेवलपर डीएलएफ ने लाखों डॉलर की र‍ाशि वाड्रा की कंपनी में निवेश कर दी और कंपनी की बैलेंस शीट में इस राशि को 'एडवांस' के तौर पर बताया गया। डीएलएफ ने गुड़गांव की सम्पत्ति को वाड्रा की कंपनी से खरीदी और इसके लिए 97 लाख डॉलर की राशि चुकाई। इसमें से ज्यादातर रकम पहले के वर्षों में बतौर एडवांस के तौर पर दी जा रही थी।

यह राशि खरीदी की कीमत से सात गुना से अधिक थी। हरियाणा के एक अधिकारी अशोक खेमका ने इस सौदे पर शंका जाहिर करते हुए कहा कि वाड्रा की कंपनी की इतनी हैसियत नहीं थी कि यह उतनी कीमत भी चुका दे जोकि इसने 2008 में चुकाई थी। इस आधार पर उन्होंने इस सौदे को रद्द कर दिया।

कहां से मिला वाड्रा को पैसा... पढ़ें अगले पेज पर....



खेमका की इस कार्रवाई के बाद कांग्रेस के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री ने खेमका का तबादला कर दिया। उन्हें राज्य सरकार की एक कृषि कंपनी में भेज दिया गया। अपनी ईमानदारी के लिए खेमका को सजा मिली और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के कारण 22 वर्ष की नौकरी में उनका दर्जनों बार तबादला किया गया।

सरकारी फाइलों के अनुसार स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी का कहना था कि उसने जमीन खरीदने के लिए कॉरपोरेशन बैंक से कर्ज लिया था लेकिन बैंक के तत्कालीन चेयरमैन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि हमारे रिकॉर्ड के अनुसार दोनों पक्षों के बीच ऐसा कोई लेन देन नहीं हुआ था। इसके बाद कॉरपोरेशन बैंक के चेयरमैन ने पद छोड़ दिया और जो नए चैयरमैन आए उन्होंने इस मामले पर कुछ नहीं कहने में ही अपनी भलाई समझी।

खेमका ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि वाड्रा की कंपनी के लेन देन पूरी तरह से फर्जी थे लेकिन राज्य सरकार की जांच समिति को इसमें कोई अनियमितता नजर नहीं आई। स्काई लाइट ने नई दिल्ली में भी कई सौदे किए और उनकी पहुंच हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में हो गई जोकि कांग्रेस शासित थे। कहा जाता है कि वर्ष 2008-09 में कंपनी को नई‍ दिल्ली में डीएलएफ द्वारा बनाए जा रहे एक होटल को 50 फीसदी ब्याज पर 53 लाख डॉलर की राशि दी गई जबकि 2012 में इस होटल का मूल्य 3 करोड़ 30 लाख डॉलर था।

उल्लेखनीय है कि यह बात डीएलएफ की आयकर गणनाओं में बताई गई है। वाड्रा की एक ओर कंपनी स्काई लाइट रियल्टी ने एक पेंटहाउस अपार्टमेंट प्राप्त किया। अरालियस नामक का यह कॉम्प्लेक्स भी गुड़गांव में डीएलएफ ने बनाया था। दलालों के अनुसार आज इसकी कीमत 50 लाख डॉलर है। वाड्रा की इसी कंपनी ने 2009 और 2010 के वित्तीय फाइलिंग्स में कहा कि इसने डीएलएफ द्वारा बनाए गए एक लक्जरी कॉम्प्लेक्स के सात अपार्टमेंट्‍स केवल 8 लाख 70 हजार डॉलर में खरीदे हैं। उल्लेखनीय है कि जानकारों के अनुसार उसी समय इन अपार्टमेंट्‍स की कीमत करीब 60 लाख डॉलर थी।

और क्या आरोप हैं वाड्रा पर... पढ़ें अगले पेज पर...



इंडिया अगेंस्ट करप्शन और आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाए कि इस तरह के लेन देन डीएलएफ ने गांधी परिवार का संरक्षण पाने के लिए किए थे और इनके नामपर रॉबर्ट वाड्रा को मोटी रकम चुकाई गई। जबकि जानकारों का कहना है कि अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स खरीदने के मामले पर डीएलएफ को वाड्रा की कंपनी ने केवल 8 लाख 70 हजार डॉलर नहीं चुकाए थे। वास्तव में इनकी कीमत 166 डॉलर प्रति वर्ग फुट थी और इस हिसाब से इसकी कीमत करीब 70 लाख डॉलर से कम नहीं थी।

रियल एस्टेट के दलालों का कहना है कि आज ये सात अपार्टमेंट 1 करोड़ 60 लाख डॉलर से भी अधिक मूल्य के हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि इन आरोपों को लेकर ना कभी वाड्रा, ना राहुल गांधी और ना ही सोनिया गांधी ने स्पष्टीकरण देने की जरूरत समझी। इस मामले में डीएलएफ का स्पष्टीकरण यह था कि सारे सौदे पारदर्शी थे और पूरी ईमानदारी से किए गए थे।

राजस्थान में वाड्रा ने 2009 से जमीनें खरीदनी शुरू कीं और उन्होंने करीब 10 लाख डॉलर में करीब 2 हजार एकड़ जमीन खरीद डाली। कोलायत के लैंड ऑफिस के रिकॉर्ड के अनुसार जनवरी 2010 में वाड्रा ने 70 हजार डॉलर में 94 एकड़ जमीन खरीद डाली थी। एक सप्ताह वाद केन्द्र सरकार ने इस क्षेत्र में सौर उर्जा को बढ़ावा देने के लिए निवेश की घोषणा शुरू की। बाद में, राज्य सरकार ने भी इसमें अपना योगदान देना जरूरी समझा। जब इस इलाके में सौर उर्जा कंपनियां आ गईं तो जमीन की कीमत दस गुना से भी ज्यादा बढ़ गई।

ड्रा के इस काम में महेश नागर नाम के व्यक्ति ने उनकी मदद की थी। वाड्रा राजस्थान में अपनी 700 एकड़ जमीन बेच चुके हैं और इससे उन्हें 27 लाख डॉलर की राशि मिल चुकी है जोकि उनके खरीद मूल्य से तीन गुना अधिक है। राज्य में अभी भी उनके पास 1200 एकड़ जमीन है। स्थानीय अधिकारियों और जमीन जायदाद के जानकारों के अनुसार यह जमीन भी 40 लाख डॉलर से अधिक की है। और इस तरह एक लाख रुपए की पूंजी लगाकर कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद अरबपति बन गए हैं।