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Last Updated :टोक्‍यो , गुरुवार, 4 सितम्बर 2014 (15:30 IST)

जापान ने किया 35 अरब डॉलर देने का वादा

जापान ने किया 35 अरब डॉलर देने का वादा - जापान ने किया 35 अरब डॉलर देने का वादा
भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने का संकल्प लेते हुए जापान ने अगली पीढ़ी की ढांचागत परियोजनाओं, स्मार्ट शहर, गंगा नदी के पुनरद्धार और बुलेट ट्रेन शुरू करने की दिशा में अगले पांच साल के दौरान इस देश को 35 अरब डॉलर की सहायता देने की आज घोषणा की।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समावेशी विकास के ‘महत्वाकांक्षी’ सपने में साझीदारी करने का वाचन दिया है। दोनों पक्षों ने रक्षा क्षेत्र में आदान-प्रदान, स्वच्छ ऊर्जा, सड़क व राजमार्गों, स्वास्थ्य एवं महिला विकास में सहयोग सहित पांच संधियों पर हस्ताक्षर भी किए और अपने संबंधों को नए स्तर पर ले जाने का संकल्प लिया।
 
दोनों प्रधानमंत्रियों की बैठक के बाद जारी जापान-भारत विशेष रणनीतिक व वैश्विक साझीदारी पर टोक्यो घोषणा पत्र में कहा गया है, प्रधानमंत्री आबे ने भारत में समावेशी विकास में तेजी लाने विशेष तौर पर ढांचागत एवं विनिर्माण क्षेत्रों में बदलाव लाने के प्रधानमंत्री मोदी के साहसिक एवं महत्वाकांक्षी सपने के लिए एक व्यापक एवं मजबूत जापानी साझीदारी का संकल्प किया।
 
बयान में कहा गया है कि आबे ने जापान की ओर से भारत को पांच साल में 3,500 अरब एन (2,10,000 करोड़ रुपए, 35 अरब डॉलर) के सार्वजनिक एवं निजी निवेश व वित्तीय मदद देने का इरादा जाहिर किया, जिसमें जापान की सरकारी विकास सहायता (ओडीए) शामिल होगी।
 
जापान की वित्तीय सहायता अगली पीढ़ी के ढांचागत निर्माण, कनेक्टिविटी, परिवहन प्रणालियों, स्मार्ट शहरों, गंगा एवं अन्य नदियों के पुनरद्धार, विनिर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, कौशल विकास, जल सुरक्षा, खाद्य प्रसंस्करण व कृषि उद्योग, कृषि शीत भंडारगृहों की श्रृंखला व ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में पारस्परिक हित की उचित पीपीपी परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए होगी।
 
इस संबंध में एबे ने भारत में एक पीपीपी ढांचागत परियोजना के लिए इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी ईआईएफसीएल) को 50 अरब एन (47.9 करोड़ डॉलर) का रिण जापान की विदेशी विकास सहायता (ओडीए) के तहत देने का वादा किया है।
 
मोदी ने भारत के आर्थिक विकास के लिए जापान के सतत सहयोग की खुले दिल से सराहना करते हुए कहा कि भारत के ढांचे के आधुनिकीकरण के लिए जितना जापान ने किया है, उतना किसी अन्य देश ने नहीं किया। दोनों देशों ने अपने ‘सामरिक और वैश्विक साझीदारी’ संबंधों को और ऊंचाई देने का निर्णय करते हुए उसे ‘विशेष सामरिक और वैश्विक साझीदारी’ नाम देने की घोषणा की।
 
असैन्य परमाणु सौदे के संदर्भ में जापान के प्रधानमंत्री ने कहा कि भागीदारी को मजबूत करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि इस समझौते से संबंधित वार्ता में तेजी लाई जाए। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि मोदी की जापान यात्रा के दौरान इस समझौते पर सहमति बन जाएगी।
 
बताया जाता है कि भारत अमेरिका के साथ हुए ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते की तर्ज पर जापान के साथ भी ऐसा समझौता चाहता था लेकिन समझा जाता है कि तोक्यो इसके लिए उत्सुक नहीं है। परमाणु सहयोग मुद्दे पर आबे ने कहा कि पिछले कई महीनों में इसमें महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने मुद्दे को समझने के लिए आपस में बेबाक चर्चा की।
 
आबे ने कहा कि अगले पांच सालों में भारत में जापान की कंपनियों की उपस्थिति भी दोगुनी हो जाएगी। मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री का धन्यवाद करते हुए कहा, हम दोनों ने संबंधों को विशेष सामरिक और वैश्विक साझीदारी तक आगे बढ़ाने का निर्णय किया है।
 
उन्होंने कहा कि उनकी जापान यात्रा से दोनों देशों के संबंधों का नया युग शुरू हुआ है और दोनों के बीच भागीदारी में कोई सीमा नहीं है। इस शिखर वार्ता में जापान ने निर्यात के लिए प्रतिबंधित भारत की अंतरिक्ष और रक्षा से जुड़ी छह संस्थाओं को ‘फॉरन एन्ड यूजर लिस्ट’ से हटा दिया।
 
मोदी ने कहा कि भारत और जापान प्राचीन मित्र हैं और उनकी यह यात्रा दोनों देशों को आपसी संबंधों का और विस्तार करने का अवसर प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि एशिया और विश्व में शांति तथा सुरक्षा के लिए विकसित भारत और खुशहाल जापान महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि भारत और जापान दो बड़े लोकतंत्र हैं और वे दोनों एशिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से हैं।
 
दी ने कहा, यह केवल संबंधों को एक श्रेणी से निकाल कर दूसरी श्रेणी में ले जाने का मामला नहीं है। हमारे संबंध केवल क्षेत्रीय आयाम वाले नहीं हैं बल्कि उनका वैश्विक प्रभाव है। उन्होंने कहा कि जापान के प्रधानमंत्री ने देश के समावेशी विकास के उनकी (मोदी की) सोच के अनुरूप भारत में हर क्षेत्र में सहयोग करने में सहमति जताई है।
 
मोदी ने दूसरों के देश में अतिक्रमण करने और कहीं किसी के समुद्र क्षेत्र में घुस जाने जैसी कुछ देशों की 18वीं सदी वाली विस्तारवादी प्रवृत्ति की निंदा की। उनकी यह टिप्पणी परोक्ष रूप से चीन के खिलाफ मानी जा रही है जिसका जापान के साथ समुद्री विवाद है ।
 
भारत और जापान के व्यापार जगत की हस्तियों को संबोधित करते हुए मोदी ने यहां कहा, दुनिया दो धाराओं में बंटी हुई है, एक विस्तारवाद की धारा है और दूसरी विकासवाद की। हमें तय करना है विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विकासवाद के मार्ग पर ले जाकर नई ऊंचाईयों को पाने का अवसर पैदा करना है।
 
उन्होंने कहा, जो बुद्ध के रास्ते पर चलते हैं, जो विकासवाद में विश्वास करते हैं वे शांति और प्रगति की गारंटी लेकर आते हैं। लेकिन आज हम चारों तरफ देख रहे हैं कि 18वीं सदी की जो स्थिति थी, वो विस्तारवाद नजर आ रहा है। किसी देश में अतिक्रमण करना, कहीं समुद्र में घुस जाना, कभी किसी देश के अंदर जाकर कब्जा करना, ये विस्तारवाद कभी भी मानव जाति का कल्याण 21वी सदी में नहीं कर सकता है।
 
संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आबे ने मोदी की ओर देखते हुए कहा, हम आपकी मदद करेंगे। उन्होंने गंगा को साफ करने में सहयोग की भी पेशकश की। मोदी ने आभार प्रकट करते हुए कहा, यह भारत के प्रति उनके अनुराग और सम्मान का उदाहरण है। (भाषा)