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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , मंगलवार, 30 अगस्त 2011 (18:26 IST)

जीडीपी के आंकड़ों से उद्योग जगत चिंतित

जीडीपी के आंकड़ों से उद्योग जगत चिंतित -
उद्योग जगत ने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का आंकड़ा नीचे आने पर चिंता जताई है और साथ ही यह भी कहा है कि 2011-12 के दौरान 8 प्रतिशत की वृद्धि दर के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा।

आज जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 7.7 प्रतिशत रह गई है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाह में 8.8 फीसदी थी।

उद्योग जगत ने कहा है कि खासकर औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार बड़ी परियोजनाओं को लागू करने में विलंब की वजह से घटी है। तिमाही के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 7.2 प्रतिशत पर आ गई है, जो 2010-11 की पहली तिमाही में 10.6 प्रतिशत रही थी।

सीआईआई ने जीडीपी का आंकड़ा नीचे आने पर चिंता जताते हुए कहा है कि बड़ी परियोजनाओं में विलंब की वजह से औद्योगिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सीआईआई का मानना है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि दर में सुधार होगा, पर 8 प्रतिशत के आंकड़े को हासिल करना मुश्किल होगा।

सीआईआई ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में कमजोरी के रुख को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में और बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए।

एक अन्य उद्योग मंडल फिक्की ने कहा है कि 2011-12 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रही है, जो 2009-10 की तीसरी तिमाही के बाद के बाद सबसे कम है।

फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा कि 2010-11 की पहली तिमाही की जीडीपी दर को संशोधित कर 9.3 प्रतिशत से 8.8 फीसदी किया गया है। यदि ऐसा नहीं होता, तो चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही का आंकड़ा तो और भी नीचे 7.2 प्रतिशत के स्तर पर आ जाता।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रहेगी। फिक्की का कहना है कि इस दर को हासिल करने के लिए शेष तिमाहियों में अर्थव्यवस्था की रफ्तार 8.3 प्रतिशत रहनी चाहिए। फिक्की ने अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 7.5 से 8 प्रतिशत के बीच रहेगी। इसके और नीचे जाने का जोखिम भी बना रहेगा।

वहीं, एक अन्य प्रमुख उद्योग चैंबर एसोचैम ने कहा है कि जीडीपी के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार की मौद्रिक नीति ने नतीजे देने शुरू कर दिए हैं। महंगाई और मांग का नीचे आना शुरू हो गया है।

एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि दीर्घावधि के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो विनिर्माण क्षेत्र में रफ्तार में कमी चिंता की बात है। ‘खासकर ऐसे समय जब सरकार राष्ट्रीय विनिर्माण नीति पर काम कर रही है।’ सरकार ने 2020 तक जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को वर्तमान के 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है।

सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को आगे बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र में सुधारों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाए।

एसोचैम ने कहा है कि अब निवेशक बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि सरकार संसद के मानसून सत्र में अंतिम सप्ताह में आर्थिक सुधारों पर किस तरह आगे बढ़ती है। एसोचैम के महासचिव रावत ने कहा कि वृद्धि दर के लिए आर्थिक सुधार बेहद जरूरी हैं। (भाषा)