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Last Updated : रविवार, 7 फ़रवरी 2021 (22:32 IST)

Uttarakhand: जब सर्पीले और मनोरम बहाव वाली धौलीगंगा बन गई काल

Uttarakhand: जब सर्पीले और मनोरम बहाव वाली धौलीगंगा बन गई काल - Sarpila drift and calm Dhauli Ganga became Kaal
नई दिल्ली। उत्तराखंड की संभवत: सबसे बड़ी ग्लेशियर झील वसुधारा ताल से निकलने वाली धौली गंगा अपने सर्पीले बहाव के कारण नंदादेवी नेशनल पार्क के बीच से होकर गुजरती है। अपने सुन्दर मनोरम रास्ते और सफेद पानी में राफ्टिंग के लिए मशहूर यह नदी रविवार को उस वक्त लोगों कि लिए काल बन गई, जब नंदादेवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर उसमें गिरा और उससे विस्थापित पानी से नदी में अचानक बाढ़ आ गई।
धौली गंगा आगे चलकर अलकनंदा नदी में मिल जाती है। अलकनंदा पत्रिव गंगा नदी की उन सहायक नदियों में से एक है, जो उसके मैदानी भाग में पहुंचने से पहले उसमें लीन हो जाती हैं। ये सहायक नदियां 5 राज्यों से गुजरने के दौरान एक-दूसरे का रास्ता काटते हुए सर्पीले बहाव और एक-दूसरे में मिलते हुए अपने रास्ते पर बढ़ती हैं। उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहायक नदियां ऋषिकेश, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग जैसे मनोरम पर्यटन स्थलों से होकर गुजरती हैं।
 
रविवार को नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने के कारण अचानक हुए पानी के विस्थापन से धौली गंगा में बाढ़ आ गई और इससे ऋषि गंगा और अलकनंदा भी प्रभावित हुईं। इसने लोगों को राज्य में 2013 में केदारनाथ में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ की भी याद दिला दी। त्रासदी में 5,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पानी के तेज बहाव के साथ बह गया था।
धौली गंगा रेणी में ऋषि गंगा में मिलती है, जहां आज की त्रासदी में पूरी पनबिजली परियोजना बह गई है और उसमें काम करने वाले 150 लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है। रेणी से नदी 'वी टर्न' लेती है और फिर से धौली गंगा के नाम से 30 किलोमीटर तक उत्तर की ओर बहती है। इस दौरान वह तपोवन से गुजरते हुए जोशीमठ के निकट विष्णुप्रयाग में अलकनंदा में विलीन हो जाती है।
 
यहां से दोनों नदियां एक होकर अलकनंदा बन जाती हैं और दक्षिण-पश्चिम में बहते हुए चमोली, मैथाणा, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग से गुजर कर अंत में रुद्रप्रयाग में उत्तर से आ रही मंदाकिनी में मिल जाती है। मंदाकिनी से मिलने के बाद अलकनंदा श्रीनगर से गुजरते हुए केदारनाथ के पास देवप्रयाग में गंगा में मिलती है। यहां से अलकनंदा का रास्ता समाप्त हो जाता है और वह गंगा में विलीन होकर पूरे देश में अपनी यात्रा जारी रखती है। यहां से पहले दक्षिण और पश्चिम की ओर बहते हुए वह ऋषिकेश के रास्ते अंतत: हरिद्वार में सिन्धु-गांगेय मैदान में उतरती है।
यहां से दक्षिण की ओर यात्रा जारी रखते हुए गंगा बिजनौर पहुंचती है और वहां से अपनी बहाव पूरब की ओर करते हुए कानपुर पहुंचती है। इस दौरान हिमालय से निकलने वाली यमुना, रामगंगा और घाघरा नदियां भी गंगा में मिलती हैं। धौली गंगा, अलकनंदा की महत्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है। अन्य नदियां हैं- नंदकिनी, पिंढर, मंदाकिनी और भगीरथी।
 

हिमालय से निकलने वाली नदियां पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील इलाकों से होकर गुजरती हैं। अन्य हिमालयी नदियों की तरह धौली गंगा पर भी बांध बने हुए हैं। इस नदी पर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में 280 मेगावॉट की पनबिजली परियोजना लगी हुई है। (भाषा)
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