जासूस की जिंदगी कभी भी आसान नहीं होती। पता नहीं कब दुश्मनों को पता चल जाए और मुसीबत खड़ी हो जाए, लेकिन इन सबके बावजूद जासूस अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कोताही नहीं बरतते बल्कि अपने काम को करके ही दम लेते हैं।
एक ऐसे ही भारतीय जासूस रविन्द्र कौशिक की कहानी जो पाकिस्तान की नाक के नीचे रहकर भारत के लिए काम करते रहे। इतना ही नहीं रवीन्द्र पाकिस्तान आर्मी में मेजर के पद तक पहुंच गए। इतना बड़े काम को कौशिक ने कैसे अंजाम तक पहुंचाया। आइए जानते हैं देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले इस इस रियल हीरो की कहानी-
रविन्द्र कौशिक का जन्म गंगानगर, राजस्थान में 1952 में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। बचपन से थिएटर में अदाकारी दिखाने का शौक रखने वाले रविन्द्र कौशिक को बचपन में शायद ही पता होगा कि उन्हें अपनी जिंदगी के बाकी सालों में स्टेज पर अदाकारी नहीं बल्कि असल जिंदगी में अदाकारी दिखानी होगी।
1975 में जब वे स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे तभी एक नेशनल ड्रामा प्रेजेंटेशन में उन्होंने भाग लिया, तभी भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने इस युवक की प्रतिभा को पहचाना और अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रविन्द्र ने खुफिया एजेंसी ज्वाइन कर ली।
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तब कौशिक की उम्र महज 23 साल थी और इसी दौरान रॉ के वे अंडरकवर एजेंट बन गए। उन्हें अंडरकवर एजेंट बनाकर पाकिस्तान भेजा जाना था जिसके लिए उन्हें दिल्ली में उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया।
उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान उर्दू पढ़ना व बोलना सीखी, मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथों, व पाकिस्तान के स्थानों से अपने आपको रूबरू कराया जब उन्हें 1975 में पाकिस्तान भेजा गया उनके भारत में मौजूद सभी जानकारियों को मिटा दिया गया और वे रविंद्र कौशिक से नबी अहमद शकीर बन गए।
इसके तुरंत बाद नबी अहमद ने कराची विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई करना शुरू कर दिया ताकि वे पाकिस्तान आर्मी में जब भर्ती हों तो किसी प्रकार के सवालात उनसे ना किए जाएं।
इसके कुछ दिनों बाद वे पाकिस्तान आर्मी में भर्ती हुए और थोड़े ही दिनों में मेजर बन गए। इस बीच उन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया और एक स्थानीय लड़की अमानत से विवाह कर लिया।
उनके एक बच्चा भी हुआ। 1979 से 1983 के बीच उन्होंने भारतीय सुरक्षा फौजों को कई खुफिया जानकारी दी जिसका बड़ा फायदा हुआ। नबी अहमद के द्वारा अमूल्य जानकारी भेजने के कारण वे भारतीय सुरक्षा सर्किल में ब्लैक टाइगर के नाम से पहचाने जाने लगे। यह नाम खुद भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें दिया था।
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1983 में इनायत मसियाह को रॉ ने नबी अहमद की मदद के लिए भेजा, लेकिन इनायत को पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी ने पकड़ लिया और नबी अहमद की पहचान बताने के लिए कड़ी यातनाएं दी।
अब नबी अहमद के राज से पर्दा उठ चुका था और रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान आर्मी ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 1983 से 1985 के बीच पाकिस्तान आर्मी ने कड़ी यातनाएं दीं और बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया।
पहले उन्हें मौत की सजा दी गई थी लेकिनबाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
अगले पन्ने पर, और मौत ने इस देशभक्त को ले लिया अपने आगोश में...
कौशिक ने अपनी जिंदी के 16 बेहतरीन साल पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में बिताए। इनमें मियानवाली और सियालकोट शामिल हैं। पाकिस्तानी जेलों में खराब व्यवस्थाओं के कारण उन्हें अस्थमा और टीवी हो गया जिसने बाद में और भयानक रूप धारण कर लिया और तबसे वे बीमार रहने लगे। अत्याधिक यातनाएं सहने से इस भारतीय वीर सिपाही की हृदय गति रुक जाने से मौत हो गई।
भारत मां के वीर सपूत रविंद्र कौशिक की जिंदगी आज भी उन तमाम युवा रॉ ऑफिसर के लिए प्रेरणा हैं जो अपना काम को एक अद्भुत रूप में अंजाम देना चाहते हैं। वे आज भी भारत के सबसे बेहतरीन इंटेलीजेंस ऑफिसर के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने अपनी जान तो गंवा दी, लेकिन मरते दम तक अपने देश की रक्षा की। हम भारत के वीर सपूत ब्लैक टाइगर को सैल्यूट करते हैं।