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Written By Author संदीप श्रीवास्तव

रामचरितमानस विवाद, समाज को बांटना चाहते हैं नेता

पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने वेबदुनिया से कहा

रामचरितमानस विवाद, समाज को बांटना चाहते हैं नेता - Ramcharitmanas controversy, leaders want to divide the society
अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि पिछले एक दशक से देखा जा रहा है कि अपने राजनीतिज्ञ ग्राफ को बढ़ाने के लिए नेतागण सनातन धर्म, उसके देवी-देवताओं एवं हिन्दू धार्मिक ग्रंथों पर लगातार अभद्र टिप्पणी कर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। 
 
इसका ताजा उदाहरण हैल स्वामी प्रसाद मौर्य जो कि जब बसपा में थे तो जय भीम बोलते थे, जब भाजपा में आए तो जय श्रीराम बोलते थे और जब भाजपा छोड़ समाजवादी पार्टी मे गए तो वही श्रीराम के चरित मानस ग्रंथ की चौपाइयों पर अभद्र टिप्पणी कर इन दिनों चर्चा में हैं। 
 
आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि यह कहना बिलकुल गलत होगा कि इन नेताओं ने श्रीरामचरित मानस कि चौपइयों को गलत समझा है, ये नेता जानते है कि इसमें क्या लिखा है, ये केवल उसका उपयोग कर रहे हैं क्योंकि समय चुनाव का है समाज के विभाजन को बढ़ावा देकर चुनाव जीतने की अपेक्षा बहुत सारे राजनेताओं मे रहती है। उसका ही उपयोग करने का ये प्रयास कर रहे हैं। 
 
उन्होंने कहा कि मैं उनकी अज्ञानता पर कोई कमेंट नहीं करूंगा क्योंकि यह जानबूझ कर किया जा रहा कुप्रयास है क्योंकि वह बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास ने कब और किस संदर्भ मे कहा है। आचार्य दीक्षित ने कहा कि मैं अपनी बात को दो तरह से कहूंगा कि क्या इन नेताओं ने कभी कबीर दास को पढ़ा है? क्या ये कबीर को मानते हैं? कबीर के द्वारा लिखित दोहों का अध्ययन किया है?
उन्होंने कहा कि कबीर कहते है कि 'नाई कि झाई पड़त अंधा होत भुजंग... ये कबीर हैं जिनकी सामाजिक स्वीकार्यता असंदिग्ध है। उन्होंने दूसरा विवरण आक्सफोर्ड डिक्शनरी ऑफ़ प्रूवर्ब्स के आधुनिकतम अंक का जिक्र किया और कहा कि इन संदर्भ से समझा जा सकता है कि यदि किसी भी संदर्भ में उसके शब्द को हटाकर अर्थ देखने का प्रयास करेंगे तो अनर्थ ही निकलेगा।
 
उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने एक रचना नहीं लिखी है। अनेक रचनाएं लिखी हैं। रामचरित मानस उनमें से अंतिम रचनाओं मे से एक है, जो उन्होंने वृद्धावस्था में लिखी थी। उन्होंने कहा कि क्या तुलसीदास ने उसमें कुछ अपने बारे मे लिखा है? क्या तुलसीदास ने उन चरित्रों से बाहर आकर समाज के बारे में कुछ लिखा है? रामचरित मानस एक ऐसा महाकाव्य है जो एक भक्त ने अपने आराध्य को अपनी भाषा में समर्पित किया है और आधार लिया था बाल्मीकि रामायण के प्रसंगों का। उनके आधार पर यह रचना कि थी, सामान्य अवधि भाषा में।
 
अब चिंता का विषय शायद इन लोगों का यही है कि रामचरित मानस कि जो जनस्वीकार्यता है, वह अद्भुत है और उन्हें बांटने का प्रयास करने वाले लोग अंततः असफल होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्होंने कहा कि क्या ये तथाकथित राजनीतिक विद्वान ये जानते हैं कि अयोध्या मे 62 जातियों के अपने पंचायती मंदिर हैं, जो कि राम मंदिर है या यूं कहें कि ये वर्तमान में काफी विलुप्त हो चुके हैं। हमने अध्ययन किया था जिसमें पता चला था लेकिन सभी 62 जातियों के आराध्य श्रीराम ही हैं।
 
उन्होंने कहा कि यह इन नेताओं कि असफलता ही है कि वे विभाजन की राजनीति नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि उनकी बौखलाहट का और इसी कारण से वे महाग्रंथों, महाकाव्य का उपयोग अपनी राजनीति के लिए कर सकें और इन सभी के बारे में कुछ भी कहना व्यर्थ है। इन्हें ख्याति प्राप्त करना है क्योंकि ये मूख भी नहीं हैं और विद्वान भी नहीं हैं। ये शैतान की सोच रखने वाले लोग हैं, जिन्हें समाज को विभाजित करने में आनंद आता है। ये मानने वाले नहीं हैं, लेकिन मैं प्रार्थना करूंगा कि ईश्वर करे कि इन्हें सद्‍बुद्धि दे।